संपादकीय

मन चंगा त’ कठौतीमे गंगा

धर्मेन्द्र कुमार झा (प्रबंध संपादक)
*

“जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।” कबीरदास जी कहैत छथि कि, साधु संतक जाति नहि होइत छैक, हुनकर जाति नहि पुछबाक चाही, हँ साधुसँ ज्ञान ग्रहण करबाक चाही। साधु – संतक ज्ञान, हुनका सभकेँ जाति – पातिक बंधनसँ मुक्त करैत अछि। तात्पर्य ई जे, व्यक्तिक रूप, वैभव आ वर्णसँ बेसी मूल्यवान, ओकर ज्ञान होइत छैक। भारत देश त’ सद्गुरुक देश रहल अछि, एहि ठाम एकसँ एक सद्गुरु भेलाह, एहि ठामक कण – कणमे करुणाक संदेश छुपल अछि। एहेन महान विभूति सभक विचार एखनहु प्रभावी अछि। संत समाज, सदिखन जीवमात्रक कल्याण हेतु प्रयास करैत रहलाह, एखनहुँ एहेन संत छथि, जे समाज एवं मानव कल्याणक दिशामे प्रयासरत छथि। अनाथ, आ निर्धन धिया – पुताक शिक्षाक व्यवस्था कएनिहार, महिलाक सम्मान, सुरक्षा एवं शिक्षाक प्रबंध कएनिहार, संगहि समाजके जागरूक कएनिहार लोक एहि श्रेणीमे अबैत छथि। कहल गेल अछि कि, संतक वाणी आ हुनक विचार पर जौं लोक चलए, त’ निश्चित रूपसँ मनुष्य अप्पन जीवन सुखमय बना सकैत अछि। देशक महान संत, एहि राष्ट्रके विश्व गुरु बनौलनि, जखन कखनहुँ आवश्यकता पड़ल तखन – तखन एहि देशक प्राचीन मनीषि सभ, अपना हिसाबेँ समाधान प्रस्तुत क’ स्वयंकेँ सिद्ध कएने छथि। एहि राष्ट्रक वृद्धिमे, विकासमे, राष्ट्रनिर्माण संगहि जनकल्याणमे संत समाजक महत्वपूर्ण भूमिका रहल अछि। एहने एकटा महान संत भेलाह, गुरु रविदास, जे एकटा महान कविक संग – संग, समाज सुधारक सेहो छलाह। संत रविदास, अप्पन जीवनकालमे समाजमे व्याप्त कुरीति आ भेदभावके विरुद्ध स्वर उठौने छलाह। समाजक उन्नतिमे हुनक सराहनीय योगदानके देखैत, हर वर्ष देशमे गुरु रविदास जयंती, खूब धूमधामसँ मनाओल जाइत अछि। 15 म शताब्दीमे रविदासजी द्वारा लिखल गेल दोहा, एखनहुँ लोककेँ लेल प्रेरणादायी अछि। संत रविदासजीक जीवन, भक्ति आ ज्ञानके लेल समर्पित रहल अछि। संत रविदासजीक स्मृतिमें वाराणसीमें श्री गुरु रविदास पार्क बनल अछि, जे नगवामें बनाओल गेल अछि। गंगा तट पर गुरु रविदास घाट, पंचकुलामे श्री गुरु रविदास स्मारक सेहो प्रस्तावित अछि। ज्ञानपुर जिलाक निकट संत रविदास नगर सेहो अछि, जे पहिने भदोहीक नामसँ जानल जाइत छल। संत रविदासक सम्मानमे गोवर्धनपुर, वाराणसीमे श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर सेहो अछि, जे हिनक अनुयायी द्वारा चलाओल जाइत अछि जे, आब प्रधान धार्मिक कार्यालय के रुपमें सेहो अछि। सम्पूर्ण भारतवर्षमे अत्यंत ख़ुशी आ अत्यधिक उत्साहक संग, माघ मासक माघ पूर्णिमा पर, हर वर्ष संत रविदासक जयंती मनाओल जाइत अछि, वाराणसीमे विशेष उत्सव अथवा त्योहारक भांति मनाओल जाइत अछि। प्रधानमंत्री मोदी अप्पन वाराणसी दौराके क्रममे वृहस्पतिदिन, सीरगोवर्धनमे संत गुरु रविदासक 647 म जयंती समारोहमे शामिल भेलाह। पीएम मोदी द्वारा एहि ठाम, संत रविदासक 25 फीट ऊंच प्रतिमाक अनावरण सेहो कएल गेल। पुनः पीएम मोदी, मंदिरमे पूजा-अर्चना करैत सामुदायिक भोजमे प्रसाद सेहो ग्रहण कएलनि। पीएम मोदी अप्पन सम्बोधनमे कहलनि कि, “आई हमरा संत रविदास जीक नव प्रतिमाक लोकार्पणक सौभाग्य प्राप्त भेल अछि”। पीएम मोदी, संत रविदास म्यूजियमक आधारशिला सेहो रखलनि, आ अप्पन वक्तव्यमे ओ आगू कहलनि कि, ‘भारतक इतिहास रहल अछि, जहन देशके आवश्यकता भेलैक, कोनो न कोनो संत, ऋषि, महान विभूति, भारतमे जन्म लैत छथि। संत रविदास त’ ओहि भक्ति आंदोलनक महान संत छलाह, जे कमजोर आ विभाजित भेल भारतके नव ऊर्जा प्रदान कएने छल। संत गुरु रविदास एहेन संत छलाह, जिनका मजहब, पंथ आ विचारधाराक सीमामे नहि बान्हल जा सकैत अछि।” ओना त’ देशमे हर क्षेत्रमे विकास कार्य भ’ रहल अछि, आ पछिला दस वर्षमे स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अप्पन कुशल नेतृत्वसँ भारतक विकास संगहि आध्यात्मिक विरासतके, देशक एकताक संग जोड़बाक कार्य कएलनि अछि। धर्मके प्रति अटूट प्रतिबद्धताक माध्यमे ओ, अनेको एहेन कार्यक्रम शुरू कएलनि, जे नीक अवसरके संग – संग भारतके उज्ज्वल भविष्यक रुपरेखा तैयार क’ रहल अछि। हर क्षेत्रमे देश तरक्की करैत, आध्यात्मिकता, तकनीक आ अर्थव्यवस्थाके क्षेत्रमे सेहो एखन दुनियाक अग्रणी लोकतंत्र बनल अछि। पछिले वर्ष अगस्तमे पीएम मोदी, सागर (मध्यप्रदेश) पहुँचल छलाह। जाहि ठाम ओ, संत श्री रविदास स्मृति स्थलक भूमि पूजन कएने छलाह, संगहि संत शिरोमणि रविदास स्मारकक शिलान्यास सेहो कएलनि। लगभग 100 करोड़क लागतसँ ई मंदिर-स्मारक बनाओल जा रहल अछि। संत रविदास मंदिर-स्मारक 11.29 एकड़ जमीन पर बनाओल जा रहल अछि। एहि निर्माणमे, नागर शैलीक झलक देखल जा सकैत अछि। एहि परिसरक देवाल पर संत रविदासक दोहा आ शिक्षा अंकित कएल जाएत। मंदिर परिसरमे भक्त निवासक संग – संग तमाम सेवा – सुविधाक आनो आन भवन बनएबाक कार्य शुरू अछि। संत रविदास, जिनका गुरु रविदासक नामसँ सेहो जानल जाइत अछि, एकटा श्रद्धेय संत, कवि आ आध्यात्मिक विचारक छलथि जे, 14 म शताब्दीके अवधिमे भारतमे रहैत छलाह। ओ, भक्ति आंदोलनक एकटा प्रमुख संत छलाह जे, कठोर धार्मिक संरचनाके त्यागि, भक्ति आ ईश्वरक संग व्यक्तिगत संबंध पर जोर देलनि। संत रविदासक शिक्षा, प्रेम, समानता आ सामाजिक सद्भाव पर केंद्रित छल आ अप्पन काव्यके माध्यमे, ओहि समयक जाति-आधारित भेदभाव आ असमानताक आलोचना करैत रहलाह। मध्यकालीन भारतमे, भक्ति आन्दोलनक किछु एहेन संत सब भेलाह जिनकर विचार आ देखाओल गेल मार्ग पर चलि मनुष्य एखनहु अपन जीवन सुखमय बना रहल अछि। मध्यकालीन भारतक सांस्कृतिक इतिहासमे, भक्ति आन्दोलनक एकटा महत्वपूर्ण स्थान अछि। इहो एकटा क्रांतिक रूप छल, जहिमे, एहि कालक महान संत आ समाज सुधारक द्वारा अनेको प्रकारसँ ईश्वरक भक्तिक प्रचार – प्रसार कएल गेल। ओहि समयमें अनेको संत द्वारा भक्ति मार्गके ईश्वर प्राप्तिक साधन मानैत ‘ज्ञान’भक्ति’आ ‘समन्वय’ के स्थापित करबाक प्रयास भेल। संत कबीरक समकालीन एहने एकटा संत भेलाह सतगुरु रविदास (संत रैदास) जी। हिनक जीवन काल पर अनेको लेखक, अन्वेषककेँ अप्पन अप्पन मत छैन्ह। किछु अध्येताक अनुसार एहेन अनुमान लगाओल गेल कि रविदासजिक सम्पूर्ण जीवन काल 1450 सँ 1520 के मध्य छल, मुदा सर्वमान्य इएह अछि जे हिनक जन्म काशीमें, माघ पूर्णिमा रवि दिन संवत 1433 के भेलनि। हिनक माता श्रीमती कालसा देवी जी आ पिता श्री संतोक दास जी छलखिन्ह। अलग अलग शोध ग्रन्थ तथा भक्तमालमें हिनक परिवारिक विवरण पर मतभेद अछि, किछु अध्येताक अनुसार हिनक माताक नाम घुरविनिया आ पिताक नाम रघ्घू छलैन्ह, जे पेशासँ चर्मकार छलाह। जूता चप्पल बनएबाक कार्य, हिनकर पैतृक व्यवसाय छलैन्ह जाहिके ई सहज स्वीकार कएने रहथि। अप्पन कार्य पूर्ण लगन आ परिश्रमसँ करैत संत रविदास, अनेको साधु संतक सान्निध्यमें पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान अर्जित कएलनि। संत रविदास भारतक ओहि महापुरुषमेंसँ एक छथि, जे अपन आध्यात्मिक वचनसँ समस्त संसारके आत्मज्ञान, एकता, आ भाईचारा पर जोर देलनि। जगतगुरु रविदास जीक अनूप महिमाके देखि अनेको राजा आ महाराजा सब हिनकर शरणमें आबि भक्ति मार्गसँ जुड़लाह । संत रैदास, जीवन भरि समाजमें व्याप्त कुरीति, जाति – पातिक अन्तक लेल कार्य कएलनि। रविदास जीक सेवक हिनका “सतगुरु” “जगतगुरु”आदि नामसँ सत्कार करैत छथि । लाखो लोक हिनक सान्निध्य पाबि, अप्पन जीवन धन्य कएलनि। संत रैदास काशीक छलाह तैं हिनका रामानंदक शिष्यक रूपेँ सेहो जानल जाइत अछि। अनेको शोधार्थी द्वारा ईहो तर्क देल जाइत अछि, जे संत कबीर आ संत रैदास दुनू रामानंदक शिष्य छलाह। रामानंद ओहि समयक अत्यंत प्रतिष्ठित संत रहथि, रैदास हिनके शिष्यमंडलीक महत्वपूर्ण सदस्य छलथि। रैदास शुरुएसँ दयालु आ परोपकारी स्वभावक छलाह, साधु संतक सेवामें हिनका अत्यधिक प्रसन्नता भेटनि, तैं बेसीकाल ई साधु संतक सान्निध्यमें ज्ञानार्जन करथि। नाभादासकृत भक्तमालमें हुनक स्वाभाव आ चारित्रिक उच्चताक प्रतिपादन भेटैत अछि। किछु मत एहनो अछि जे मीराबाई सेहो संत रविदासक शिष्यत्व ग्रहण कएने रहथि, कारण मीराबाई केर अनेको पदमे, रैदासकें गुरु रूपमे स्मरण कएल गेल अछि। “गुरु मिलीया रविदास जी दीनी ज्ञान की गुटकी, चोट लगी निजनाम हरी की महारे हिवरे खटकी। रैदासक बचनबद्धताक अनेको कथामे एकटा प्रचलित कथा अछि, जे एकबेर कोनो विशेष पर्व पर पड़ोसक लोक गंगा स्नान लेल जाइत रहैथ त’ भाववश कोनो शिष्य हिनकासँ गंगा स्नान लेल आग्रह कएलखिन्ह त’ रैदास साफ़ मना करैत कहलखिन्ह जे गंगा स्नान लेल अवश्य अबितौंह, मुदा आई एक गोटेकेँ जूता बना देबाक अछि, जौं आई हम ओकरा जूता नहि देब त’ हमर वचन भंग भ’ जाएत। स्वयं गंगा स्नानक यात्रामें रहब, मुदा मन त’ एहि ठाम टाँगल रहि जाएत त’ पुण्य कोना प्राप्त होयत ? रैदास आगू कहलनि जे, मन जाहि कार्य लेल अन्तःकरणसँ तैयार हो, वएह कार्य करबाक चाही। जौं मन सही अछि त’ एहि कठौतीक जल गंगाजलक सामान अछि। मानल जाइत अछि, जे रैदासक इएह व्यवहार देखि ई कहावत प्रचलित भेल जे “मन चंगा तो कठौतीमें गंगा” । संत रैदास भारतीय अद्वैत वेदान्तक समर्थक छलाह, हिनका अनुसार आत्मा आ ब्रह्म दुनू अछि आ दुनूमे कोनो भिन्नता नहि अछि, आत्मा मायामे लिप्तताक कारणे जीव कहाइत अछि। जीव मायामे लिप्त रहैत अछि, नाशवान अछि, चंचल अछि, अस्थिर अछि। ब्रह्म निर्गुण, अटल आ अचल अछि। अनेको संत द्वारा संत रैदासके पूर्व जन्मक ब्राह्मण मानल गेल, भक्त कवि नाभादास अपन ग्रंथ ‘भक्तमाल’ में रैदास जीकें पूर्व जन्मक ब्राह्मण घोषित कएलनि। कहल गेल अछि जे, चूंकि ओ अपन पछिला जन्ममें मांस-भक्षण कएने रहैथ, तैं एहि जन्ममें हुनका कथित ‘अछूतक’ घर जन्म लेबए पड़लनि। संत श्री गुरुदास जी लिखैत छथि –
‘पूरब जन्म विप्र ही होता, मांस न छाड़यो निस दिन श्रोता।
तिहि अपराधि नीच कुल दीना, पाछला जनम चीन्ही तिन लीना।।
आधुनिक अध्येता द्वारा इहो स्पष्टीकरण देल गेल जे संत रैदासक सिद्धि, प्रसिद्धि आ लोकप्रियताके देखैत हुनका पछिला जन्मक ब्राह्मण मानि लेल गेल होयत। एकटा एहेन समाज, जे कहियो कथित ‘अछूत’के पूजा-उपासना त’ दूर पढ़बा – लिखबाक अधिकार नहि देने छल, ओहि ठाम वएह समाज एकटा ‘अछूत’ के अराध्य संतक रूपमें उदारतासँ सेहो स्वीकार कएलक। संत द्वारा जतय – जतय संतक महिमाक गान कएल गेल अछि, ओहि ठाम रैदासक भक्तिक एहि तरहसँ चित्रण भेटैत अछि जेना – रैदास, सदैव अप्पन आराध्यमें विलीन रहैत छलाह। हुनका अंतर्मनमे एहेन भक्ति प्रवेश कएने छल, जेना बुझाए जे स्वयं रैदास भक्तिमें प्रवेश कएने रहैथ। संत दादू दयाल एक ठाम कहैत छथि –
दादू कहां लीन शुकदेव था, कहां पीपा रैदास।
दादू साचा क्यों छिपे, सकल लोक परकास।।
संत रैदास अत्यंत सहिष्णु संत छलाह, जे बात हुनका लेल कष्टदाई होइत छलैन्ह ओहु बातकेँ वो सहजतासँ, सहिष्णुतासँ बुझबैत छलाह। जेना भक्तिक क्षेत्रमे ओ जाति पातिके भेदभाव आ भ्रमपूर्ण मानैत छलाह, तैयो वर्णाश्रम व्यवस्था पर टिका टिपण्णी नहि करैत, ओ एहि बातके चरितार्थ कएलनि जे भक्ति पर चलनिहार तमाम व्यक्ति, बराबर अछि, चाहे ओ कोनो जाति अथवा व्यवसायके होय। नीचसँ नीच व्यक्ति सेहो अनन्य भक्तिक कारण परम पद पाबि सकैत अछि। ईश्वरक दरबारमे सब समान अछि, हम सब हुनके संतान छी।
“एक बिंदु से ब्रह्म रच्यौ है, को बामन को सूद।
कवि की “जिनि पिया सार रसु, तजै आन रस होइ।
रसमन डारै बिखु होइ।।
वास्तविक धर्मके रक्षा करबाक लेल संत रविदासजी, ईश्वर द्वारा धरती पर पठाओल गेल छलाह, किएक त’ ओहि समयमे सामाजिक आ धार्मिक स्वरुप अत्यंत कुरूप छल । मनुष्य द्वारा मनुष्यक संग रंग, जाति, धर्म तथा सामाजिक मान्यताक भेदभाव होइत छल। रविदास बहादुरीक संग तमाम भेदभावके स्वीकार करैत लोकके वास्तविक मान्यता आ जातिक सन्दर्भमे बुझबैत छलाह। संत रविदासक कहब छलैन्ह जे, कियो अप्पन जाति अथवा धर्मक आधार पर नहि जानल जाओत, मनुष्य अपन कर्मसँ पहचानल जाओत। रविदास जी समाजमें अस्पृश्यताक विरुद्ध सेहो लड़ैत छलाह, जे उच्च जाति द्वारा निम्न जातिक लोकक संग कएल जाइत छलैक। हुनका समयमे निम्न जातिक लोकक उपेक्षा होइत छलैक, अनेको तरहक पाबन्दी छलैक, निम्न जातिक लोक पर, एहि तरहक सामाजिक समयस्याके देखि संत रविदास जी निम्न जातिक लोकक कठिन परिस्थितिके दूर करबाक लेल सदैव प्रयत्नशील रहैत छलाह, एहि क्रममे रविदास जी प्रत्येक वयक्तिके आध्यात्मिक संदेश देनाइ प्रारम्भ कएलनि। हुनक सन्देश छलैन्ह जे “मनुष्य ईश्वर द्वारा बनाओल गेल अछि, नहि कि ईश्वर मनुष्य द्वारा”, अर्थात एहि धरती पर सबके भगवान बनौलनि आ सभक अधिकार समान अछि। एहि सामाजिक परिस्थितिके संदर्भमें, संत रविदास जी लोककेँ, वैश्विक भाईचारा आ सहिष्णुताक ज्ञान देलनि। संत रैदास जीक संपूर्ण भक्तिमय काव्यके देखि एहि बातक अनुमान लगाएब सहज भ’ जाइत अछि कि ओ अप्पन जातिक वर्णन अपन भावप्रवणतामें अपन आराध्यक प्रति भक्तिविभोर भ’ करैत छथि, नहि कि कोनो तरहक आत्महीनता या सामाजिक द्रोहभावसँ वशीभूत भ’ । संत रैदास ईश्वर आ दासक अटूट सम्बन्धके अप्पन पदमे एहि तरहेँ व्यक्त करैत छथि।
“प्रभु जी तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग अंग बास समानी। प्रभुजी तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा। प्रभुजी तुम दीपक हम बाती, जाकि जोति बरै दिन राती। प्रभुजी तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहि मिलत सोहागा। प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा।
संत रैदासक उपर्युक्त पदमे आराध्यक प्रति पूर्ण समर्पण भावक अभिव्यक्ति अछि, भगवानक प्रति सत्य प्रेम, मात्र सर्वोपरि अछि, तथा भक्तकेँ सदैव ईश्वर भक्तिमे लीन रहबाक चाही। संत रैदासक विनम्रता एहि दोहासँ व्यक्त होइत अछि, जे एकबेर ओ गोपीवत प्रेममें डूबि कृष्णसँ कहैत छथि –
“कहै रैदास सुनिं केसवे, अंतःकरण बिचार। तुम्हारी भगति कै कारनैं, फिरि ह्वै हौं चमार।।
(रैदास कहैत छथि कि, हे केशव, हमर अंतःकरणक बात सुनु, अहाँक भक्तिके खातिर हमरा एक बार फेरसँ चमार बनए दिय’)
रैदासक वाणी भक्तिक सत्यता आ भावना, समाजके व्यापक हितक कामना तथा मानव प्रेमसँ ओत-प्रोत होइत छल। तैं ओकर श्रोताक मन पर गंभीर प्रभाव पड़ैत छल। हुनकर भजन तथा उपदेशसँ लोककेँ एहेन शिक्षा प्राप्त होइत छल जाहिसँ लोकक शंकाक सन्तोषजनक समाधान होइत छल, आ परिणामस्वरूप लोक स्वतः हुनकर अनुयायी बनि जाइत छल। हुनकर वाणीक एतेक व्यापक प्रभाव पड़ल कि समाजक हर वर्गक लोक हुनक श्रद्धालु छलैथ। एखनहु सन्त रैदासक उपदेश समाजक कल्याण तथा उत्थानक लेल अत्यधिक महत्वपूर्ण अछि । ओ अपन आचरण तथा व्यवहारसँ ई प्रमाणित कएने छथि कि मनुष्य अपन जन्म तथा व्यवसायक आधार पर महान नहि होइत अछि, विचारक श्रेष्ठता, समाजहितक भावनासँ प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार, एहि तरहक गुण, मनुष्यके महान बनएबामे सहायक होइत अछि। एहि तमाम गुणक कारण सन्त रैदासके ओहि समयक समाजमें अत्यधिक सम्मान भेटलनि आ एहि कारणसँ आइयो लोक हिनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करैत अछि।
संत रैदासक 40 पद गुरु ग्रन्थ साहबमे सेहो भेटैत अछि, जाहिके सम्पादन गुरु अर्जुन साहिब द्वारा 16 म सदीमें कएल गेल। सिखक चारिम गुरु रामदास कहलनि – साधू सरणि परै सो उबरै खत्री ब्राहमणु सूदु वैसु चंडालु चंडईआ। नामा जैदेउ कबीरु त्रिलोचनु अउजाति रविदासु चमिआरु चमईआ।। (आदि ग्रंथ, अंग-835/6) अर्थात साधुक शरणमें जे जाइत अछि ओ मुक्ति पबैत अछि, चाहे ओ क्षत्रिय हो, ब्राह्मण हो, शूद्र हो अथवा वैश्य हो, या कथित अछूतसँ अछूत कियैक नहि हो जेना – नामदेव, जयदेव, कबीर, त्रिलोचन आ कथित नीच जातिक रविदास चमार। सामान्यत: रविदास जीक अध्यापनक अनुयायीकेँ रविदासीया कहल जाइत अछि, आ रविदासीया समूहक अध्यापनकें रविदासीया पंथ कहल जाइत अछि। गुरु ग्रंथ साहिबमें हुनक लिखल 41 पवित्र लेख अछि, जाहिमे प्रमुख अछि “रागा-सिरी (1), गौरी(5), असा(6), गुजारी(1), सोरथ(7), धनसरी(3), जैतसारी(1), सुही(3),आदि। भक्तक मानब छैन्ह कि संत रविदासजीक मृत्यु प्राकृतिक रुपसँ 120 – 126 सालमें भेलनि, किछु अध्येता द्वारा कहल गेल जे हुनक निधन वाराणसीमें 1540 में भेलनि।

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