संवैधानिक अधिकार आ मातृभाषाक माध्यमसँ प्राथमिक वर्गमे अनिवार्य पढ़ौनीक अधिकार रहितौह राज्य सरकार बलात प्राथमिक वर्गमे मैथिलीक माध्यमसँ पढ़ौनी नहिं होबय दैत अछि, पाठ्यक्रम सामग्री उपलब्ध नहिं कराबैत अछि, शिक्षक उपलब्ध नहिं कराबैत अछि, अर्थात मैथिली केर जड़िये समाप्त करय केर ध्येय छैक, तथापि मिथिलावासी सुन्न भेल अछि, तऽ एकरा मैथिली केर समाप्त होएब नहिं कहतै तऽ की कहतै ?
छः टा जिला झारखंडमे गेलाक बादो एखनहुँ बिहारक ३८ जिलामे लगभग दू तिहाई अर्थात २४ टा जिला मिथिला क्षेत्रीय अछि, मुदा एतय हिन्दी-अंग्रेजी पत्र-पत्रिका केर सरकारी सहायता भेटैत छैक, मुदा बलात् राज्य सरकार मैथिली केर बंद कयने छैक ताकि मैथिलीक जड़ि पूर्ण रुपसँ समाप्त भऽ जाए, मुदा मिथिलावासी लेल धनसन, तऽ एकरा मैथिली केर समाप्त होएब नहिं कहतै तऽ की कहतै ?
लोकतांत्रिक प्रक्रियामे ३८ जिलामेसँ २४ टा जिलावाला मैथिलीभाषी रहितौह, मैथिली केर राजकीय व्यवहारमे प्रथम भाषाक दर्जा नहिं छैक, बल्कि कोनो भाषाक दर्जा नहिं छैक, बलात राजकीय व्यवहारमे नहिं आबय देने अछि, मुदा मिथिलावासी पर कोनो फर्क नहिं, एकरा मैथिली केर समाप्त होएब नहिं कहतै तऽ की कहतै ?
गाम-घरमे एखनौंह बहुतो मैथिली बाजैत छथि, मुदा कनी दुर बाजार जाइत बस-गाड़ी-रिक्सामे बोल बदलि जाइत छनि, मैथिली ओछ लागय लगैत छनि, बाजारक दोकानमे, बैंक, पोस्ट ऑफिस आदि कार्यालयमे, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन आदि सभठाम बोल बदलि हिन्दी भऽ जाइत छनि जेना मैथिली अछोप होए, सरकारी गैर-सरकारी कार्यालय, कोर्ट-कचहरी, थाना आदि सभठाम हिन्दीमे लिखित व्यवहार करैत छथि, जखनि की गौरवक संग मैथिली केर व्यवहार करथिन तऽ कियो रोकि नहिं सकैछ, रोकनाहरक विरुद्ध आवाज उठाओल जा सकैछ, प्रमाणित भेला पर संवैधानिक उल्लंघनक, कानूनी उल्लंघनक मामिला चलि सकैत छैक, मुदा नहिं, लोके केर मस्तिष्कमे ई घर कऽ गेल छैक जे मैथिलीक अस्तित्व खत्म भऽ गेल छैक, मैथिली आपराधिक भाषा भऽ गेल छैक, मैथिली लिखब-बाजब तऽ पुलिस पकड़ि लेत, सरकार जहलमे डालि देत, कोनो काज नहिं होबय देत। तऽ एकरा मैथिली केर समाप्त होयब नहिं कहतै तऽ की कहतै ?
कतेको पोथी लिखा रहल अछि, छपि रहल अछि, मुदा बिका नहिं रहल अछि, लेखक प्रकाशक हारि कऽ ओहिना बाँटि दैत छथि, कते तऽ जबरदस्ती धरा दैत छथि, पठा दैत छथि, अधिकसँ अधिक ३०० पोथी छपैत अछि, मुदा ३० टा बिकाईत नहिं अछि लेनहारक स्वरुचिसँ, तऽ एकरा मैथिली केर समाप्त होएब नहिं कहबै तऽ की कहबै ?
मैथिली सिनेमा अपन गुणवत्ताक कारण राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार पाबि लैत अछि मुदा सीनेमा हाॅलमे दर्शकक आभावमे आब प्रायः रीलिजो नहिं भऽ पाबैत अछि आ जे रीलिज भेबो कयल तकरा कतेको प्रचार-प्रसारक बादो एकसँ दोसर-तेसर शो तक जाइत-जाइत हकन्न कानय लागैत अछि, सप्ताह धरि चलब तऽ छोरु। ओना आबक कनी परिस्थिति प्रायः सभ भाषाक सिनेमाक मामिलामे परिवर्तित भेलैक अछि, मुदा वास्तविकता सभकेँ ज्ञात अछि, कियो कोनो मैथिली सिनेमाकेँ अलग प्लेटफार्म पर सफलताक बात कऽ सकैत छथि, तऽ तकरा अपवादे टा बुझल जा सकैछ। तऽ तखनि एकरा मैथिली केर समाप्त होएब नहिं कहबै तऽ की कहबै ?
एखनि अधिकसँ अधिक ३५ वर्षसँ उपरक किछु लोक मैथिली ठिकसँ लिखि-बाजि सकैत छथि, ३५ बरखक निंचा वालाक मैथिली लिखब-बाजय केर कतौह परीक्षा लऽ लिअ, सभटा ज्ञात भऽ जाएत। अर्थात एखनुक प्रायः ३५ वर्षवालाकेँ मैथिली भाषीक अंतिम पीढ़ी समझि सकैत छी, जखनि ७०-७५ बरखसँ मैथिलीक अस्तित्व समाप्त करय केर सरकार प्रतीक्षा कऽ रहल अछि आ बिना कोनो विशेष प्रतिकारक अपन योजनामे सफल भऽ गेल अछि, तऽ की आर २०-२५ वर्ष प्रतीक्षा नहिं कऽ सकैत अछि, तकर बाद तऽ सम्पूर्ण अखंड बिहारक सपना पुरा भइए जयतैक आ हिन्दीसँ भोजपुरीक रंगमे रंगैत तखनि कतेक काल लगतै, एखनहिंसँ तकर मिथिलो क्षेत्रमे प्रचार-प्रसार शुरू भऽ गेल छैक, अन्यथा मिथिला क्षेत्रक सरकारी कार्यक्रमक बैनरमे भोजपुरी किएक रहत, जखनि कि भोजपुरी कोनो संवैधानिको भाषा नहिं अछि। तऽ तखनि एकरा मैथिली केर समाप्त होएब नहिं कहबै तऽ की कहबै ?
आठ-दस करोड़ जनसंख्या वाला मिथिलावासीक मध्य एकटा मैथिली अखबार ठिकसँ चलि नहिं पाबैत अछि, अखबार निकालनाहर तीन-तीन बरख धरि प्रतीक्षा करैत छथि जे मिथिलावासी एकरा समग्र रुपसँ अपनेताह, मुदा ऑफ-लाइन, ऑनलाइन कतहु कोनो प्रकारक समग्र सहयोग नहिं भेटैत छैक, मिथिलावासी मानू एकरा स्वीकार करय लेल तैयारे नहिं, वैऽह सस्ता भाव जे ‘धुर! मैथिली केर के पुछै छै’ अथवा ई कहू जे छैके नहिं मैथिली, अन्यथा जँ मैथिली रहितै तऽ एकटा के कहैत अछि एक सय अखबार चलि सकैत छैक, मुदा से नहिं चलि पाबैत छैक, तऽ एकरा मैथिली केर समाप्त होएब नहिं कहतै तऽ की कहतै ?
आर की-की मैथिली केर समाप्त होबय केर उदाहरण देल जाय, देश-दुनियामे अनेक तथाकथित समर्थ मिथिलावासी छथि, ‘तथाकथित’ एहि लेल जे सम्मान पाबय केर भूखल सभ रहैत छथि अपन मिथिलावासीसँ , मुदा मैथिली केर परवाह किनको ने, ई धधक किनकोमे नहिं जे हमरा सभकेँ रहैत मैथिली केर ई दुर्दशा, मैथिली समाप्त भऽ जाएत आ आबयवाला पीढ़ी कलंक लगाओत एहि पीढ़ी केर जे जखनि एहेन-एहेन समर्थ लोक सभ छल, तखनि मैथिली समाप्त भऽ गेल। मुदा ई आइन-अबगराइन कोनो समर्थ व्यक्तित्वमे नहिं, बस औपचारिकता निभायब मैथिली केर प्रति, बाकी किछु होउ मैथिली केर। तऽ जँ मैथिली केर अस्तित्व जीवंत रहितैक तऽ एहि प्रकारक भाव उत्पन्न होइतैक, कथमपि नहिं, मैथिलीक अपमान सहन नहिं होइतैक। मुदा सभ सुन्न अछि, तऽ एकरा मैथिली केर समाप्त होएब नहिं कहबै तऽ की कहबै ?
एतबहि नहिं मिथिला केर बात करयवाला बहुत रास शीर्षस्थ व्यक्तित्व जे अपना अनुसार सालोंसँ मिथिला-मैथिली कऽ रहल छथि, ताहू सभमे बहुतो कहैत छथि जे मैथिलीसँ की हेतै, मिथिला केर मैथिलीसँ कोनो लेना-देना नहिं, तऽ आब एकरा की कहबै, मानसिक दिवालियापन, घतहपन आ कि छलिया ? मिथिला लेल काज करयवावाला मिथिलोवासीक बीच मिथिलोवासीक लेल हिन्दीक व्यवहार करैत जाइत छथि, कहैत छथि जे मिथिला लेल मैथिली किछु माने नहिं रखैत छैक। तऽ की एकरा मैथिली केर समाप्त होएब नहिं कहबै तऽ की कहबै ?
आ अंतिम बात जे एहि तरहसँ बिकछा कऽ वस्तुस्थिति बताओल जाइत अछि, तऽ किछुओ गोटे लग रहैत मैथिली तऽ की स्पदंन नहिं होइत आ तखनि ओ सभ एहि सभ बातकेँ अधिकसँ अधिक व्यक्ति तक पहुंचाबय केर प्रयास नहिं करितथि ताकि जिनका सभ लग अछि बाँचल मैथिली ओ सभ किछु प्रयास करितैथ एकरा पुनः समग्र जीवन्त करय केर, मुदा से नहिं भऽ रहल अछि, तऽ एहिसँ स्पष्ट भऽ जाइत छैक ने जे मैथिली वास्तवमे बांचले नहिं छैक, मैथिली रुपी खजाना समाप्त भऽ गेल छैक। अर्थात किछुओ लोकमे एहि सभ बातक स्पदंन नहिं होयब की कहैत अछि। तखनि की एकरा मैथिली केर समाप्त होएब नहिं कहबै तऽ की कहबै ? की कहबै ? कहू ने की कहबै ?