संपादकीय

मैथिली भाषी क्षेत्रक परिसीमन निर्धारण कतेक आवश्यक

अजय नाथ झा शास्त्री
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विद्यालयमे प्राथमिक वर्गक पढ़ौनीक माध्यम मैथिली भाषा करयमे राज्य सरकारकेँ की सभ कठिनाई अछि ?
पहिल कठिनाई परिसीमनक होएत। तऽ ताहि लेल ग्रियर्सन द्वारा भाषायी आधार पर तय तीस जिलावाला मिथिला क्षेत्र तऽ कयले अछि। जाहिमे ०६ टा जिला झारखंडमे अछि आ बिहारमे २४ टा जिला अछि।

भाषायी आधार पर बिहारमे मुख्य रूपसँ मैथिली भाषी क्षेत्र, मगही आ भोजपुरी क्षेत्र अछि। तऽ बिहार सरकार बिहारक २४ जिलामे प्राथमिक वर्गमे पढ़ौनीक माध्यम मैथिली तऽ कइए सकैत अछि ने ?

आब एतय प्रश्न उठत मैथिलीक विभिन्न शैलीक। तऽ ई तऽ प्रायः प्रत्येक भाषाक संग अछि जे कोस-दू कोस पर शैलीमे अर्थात बोलीमे थोड़-बहुत परिवर्तन होइत छैक, मुदा मूल भाषा तऽ जे छैक, सेऽह कहाइत छैक। मानक तय करय लेल साहित्य सृजन आदि देखल जाइत छैक। जाहि शैलीमे शुरुआतसँ साहित्य सृजन होइत आयल अछि आ जकर प्रचुरता अछि तकरा मानक बनाओल जाइत अछि। मैथिलीमे सेहो प्रायः साहित्य सृजन शुरुआतसँ अधिकतर एक्कहि प्रकारक होइत आयल अछि आ से सभ शैली वाला लोक साहित्य प्रायः एक्कहि शैलीमे लिखलनि अछि। आब किछु समय पुर्वसँ जखनि मैथिलीक किछु शैली केर बाँटि देल गेल तऽ अंगिका, बज्जिका, सुरजापुरी आदि शैलीमे सेहो साहित्य सृजन होबय लागल। मुदा ई मैथिली केर बाँटय केर षड्यंत्रक अंतर्गत भेल अछि। एना जँ बाँटल जाए तऽ बंगाली, मराठी, गुजराती आदि सभमे सेहो अनेक शैलीक साहित्यक सृजन भऽ सकैत अछि।

आब एतय मिथिलावासी पर सेहो निर्भर अछि, हमरा सभक बुद्धि विवेकक सेहो परीक्षा अछि जे की हमसभ बँटब अथवा एक रहब ? बँटय केर इतिहास बुझले अछि जे, बँटयवाला बेरा-बेरी काटल गेल, तऽ तखनि नंबर सबहक आओत। अन्यथा समस्त तीसो जिलावाला मिथिलावासी एक होबय पर जोर देब तऽ मैथिली भाषाक मानक तय होबयमे समस्या नहिं हेतै।

सभसँ पैघ बात छैक जे प्रायः आजादीक बादेसँ सरकारक मनसा नहिं रहलै जे समस्त मिथिलावासी एक होय, अन्यथा सरकार साहित्यक आधार पर मानक तय कय लागू कय दैत। मुदा सरकार केर बिहारमे २४ जिलावाला मिथिलावासी आ बाकी १४ जिलामे भोजपूर आ मगध क्षेत्रवाला बिहार कहायब पसिन्न नहिं। सरकार चाहैत अछि जे बिहारमे बँटल मैथिली पकड़ि मैथिलीभाषी, अंगिका भाषी, बज्जिका भाषी, सुरजापुरी भाषी, खोरठा भाषी आ मगध भाषी एवं भोजपुरी भाषी आदि कुल मिला-जुला कऽ सात-आठ टा भाषायी क्षेत्र देखाओल जाए ताकि सभकेँ बिहार बना कऽ राखल जा सकय। तें ने आगू बढ़ि कऽ अंगिका, बज्जिका आदिकें भाषायी मान्यता देलक।
तऽ सोचय केर सभटा मिथिलेवासीकेँ पड़त, एकताक सूत्र नहिं अपनायब तऽ सभगोटे भुगतब।

तऽ एहि लेल थोड़ेक प्रयास करय पड़तै। कथित मैथिली एवं एकर विभिन्न शैली अंगिका, बज्जिका, सुरजापुरी, खोरठा, आदि क्षेत्रक बुद्धिजीवीकेँ आपसमे सलाह-मशवरा करय पड़त आ एकटा निष्कर्ष पर आबय पड़त। एहि सलाह-मशवरा लेल एकटा अभियान चलाबय पड़त, मुदा तकरा एकटा समय निर्धारित कय तय समयमे एकरा निबटाबय पड़त।

संभवतः सभगोटे एक भऽ जाए आ संभवतः दुर्भाग्यवश नहिंयो होय, तऽ ताहि परिस्थितिमे की होयत ? ताहि परिस्थितिमे अखंड मैथिली भाषीक सपना टूटत, मुदा तथापि परिसीमन निर्धारण कमसँ कम भऽ जाएत। एक नहिं रहै जाएब तऽ कमसँ कम जेना बाँटि देल गेल अछि, तीन टुकड़ामे मैथिली भाषी क्षेत्र भऽ जाएत – मैथिली, अंगिका आ बज्जिका भाषी, एवं भोजपुरी आ मगधी पकड़ि बिहारमे पांच टा भाषायी क्षेत्र होएत। यद्यपि मैथिली भाषी सभकेँ बँटब बहुत महग पड़त, मुदा परिसीमन निर्धारण भऽ गेलासँ सरकार पर दबाव बनाओल जा सकैछ विद्यालयक प्राथमिक वर्गक पढ़ौनीक माध्यम स्थानीय भाषा बनाबय लेल। अन्यथा हमरा लोकनि त्रिशंकुक भांति मध्यमे डोलैत रहब आ ककरो किछु नहिं बांचत – नहिं भाषा नहिं लिपि आ नहिं संस्कृति, सम्पूर्ण अस्तित्व समाप्त भऽ जाएत। तऽ नहिं किछुसँ किछु निक, फलतः परिसीमन तय करय केर अभियानमे मिथिलावासी शिघ्र लागि जाइ।

परिसीमन तय भेलासँ ऑकलनक लेल सेहो एकटा आधार भेटि जाएत। अपन तय परिसीमनकेँ पकड़ि ओकर कल्याणक राहमे काज शुरू कयल जा सकैछ। ओकर अधिकार सभक प्राप्तिक राहमे आगा बढ़ल जा सकैछ, जेना आब तय परिसीमनमे प्राथमिक वर्गमे पढ़ौनीक माध्यम मैथिली लेल सरकार पर दबाव बनाओल जा सकैछ जे परिसीमन तय भऽ गेल अछि आ एहिमे आब स्थानीय भाषामे प्राथमिक वर्गमे पढ़ौनीक लेल सभटा सुविधा उपलब्ध कराओल जाए, पाठ्य-पुस्तक सामग्री, शिक्षक आदि, जे से अपन परिसीमनक लक्ष्य बना सभटा स्थान-मान-सम्मान प्राप्त कयल जा सकैछ, मुख्य कठिनाई समाप्त भऽ जाओत।

ओना सभसँ अधिक बुद्धिमानी देखाबय पड़त कथित अंगिका आ बज्जिका शैलीक लोकक बुद्धिजीवीक, कारण मैथिली आ मिथिला नाम एकटा धरोहर अछि, तकरा छोड़ब अपन पुरखा ओ अपन एकटा अमूल्य निधि केर छोड़ब होयत, ई मात्र किछु लोकक षड्यंत्र होयत अन्यथा बाकी पुरा जनमानस अपनाकेँ मैथिलीए भाषी आ मिथिलावासी मानैत होएत। समस्त मिथिलामे सभक पारस्परिक सभ तरहक संबंध बनल अछि। पश्चिम चंपारण, वैशाली, भागलपुर सभ ठामक लोकक संबंध मधुबनी, दरभंगा, सहरसा, बेगुसराय आदि सभ ठामक लोकसँ अछि, की राजनीतिक षड्यंत्रमे पड़ि सभ बँटि जाएब ? हम सदासँ अखंड मिथिला-मैथिलीक बात करैत रहलौंह अछि, मुदा किछु निराकरण नहिं निकलि रहल अछि, सभ अपनामे मस्त अछि। मतलब किछु निर्णायक भइए नहिं रहल छैक मिथिला-मैथिली लेल, बस निर्जीव जँका मानू सभ दहा रहल अछि, सभटा आधारहीन, लक्ष्यहीन, अपने ताले सभ मस्त, अपन औकाते सभ तौलि लेने अछि जे एहि सभसँ अधिक लेल हमरा सभ छीहे नहिं। हमरा सभ मात्र शासित रहि सकैत छी।

तऽ समस्याक समाधानक लेल आगू बढ़य लेल एकटा आधार स्वरूप ई परिसीमन निर्धारण आवश्यक अछि, ताकि एकटा सूत्र पकड़ि आगा बढ़ल जाए, ताहि लेल पटल पर ई बात राखल गेल अछि। आब एकर जतेक संज्ञान लेल जाए ?

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