संपादकीय

महग होइत चुनाव आ चुनावी बांड

धर्मेन्द्र कुमार झा (प्रबंध संपादक)
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चुनावी बांडके जारी भेला लगभग पांच वर्ष भेल अछि, मुदा एखनहुँ एहि सन्दर्भमे लोककेँ जानकारी नहिए सन छैक। किछुए लोक छथि जे चुनावी बांडके बारेमे विस्तृत जानकारी रखैत छथि। देशमे राजनीति आ चुनाव आब पाइयक खेल सिद्ध भ’ रहल अछि। राजनीतिक दलके जे पाई, चंदा आ दान स्वरुप भेटैत छलैक ताहि पर नाना प्रकारक आरोप – प्रत्यारोप होइत रहलैक त’ सरकार द्वारा चुनावी बांडके, राजनीतिक दलके देल जाएवला नकदी चंदाक विकल्पके रूपमे आनल गेल आ कहल गेल कि, एहि प्रक्रियामे राजनीतिक फंडिंग, पारदर्शी रहत। मुदा जहन राजनीतिक दलके प्राप्त चंदाक अनुपात देखल गेल त’ ज्ञात भेल कि, एकर सभसँ बेसी लाभ सत्ताधारी दलके भ’ रहल छैक। मतलब, दानदाता द्वारा देल गेल चंदाक अधिकांश भाग भाजपाके प्राप्त भेल। विपक्षी दलक अप्पन तर्क अछि कि, दानदाता भाव अथवा प्रभावमे जे दान करैत अछि ओकर अधिकांश हिस्सा भाजपाके भेटैत छैक आ ई पछिला पांच वर्षल कुल प्राप्त चंदासँ साफ होइत अछि। आब जौं कोनो उद्योगपति चंदा देत त’ निश्चित छैक कि, चंदाक एवजमे ओकर निजी हित रहबे करतैक। विपक्षी पार्टी आरोप लगा रहल अछि कि, चंदा देनिहार व्यक्ति वा संस्थानक नाम सार्वजनिक कएल जाए, किएक त’ ई ज्ञात करब आवश्यक छैक कि, कोन दानदाता कतेक चंदा द’ कोन तरहक लाभ अर्जन कएलक। उद्योगपतिके सहूलियत चाही आ राजनीतिक दलकेँ दान, मुदा जौं एकर जानकारी सार्वजानिक नहि कएल जाइत अछि त’ निश्चित रूपसँ संदेह उत्पन्न होयत। किएक त’ भारत सन विशाल लोकतान्त्रिक देशमे चुनाव, कोनो उत्सवसँ कम नहि मानल जाइत अछि। चुनाव प्रक्रियाके, भारतीय राजनीतिमे लोकतंत्रक सभसँ पैघ पावनिक संज्ञा देल गेल अछि। मुदा, राजनीतिमे एखन स्वार्थ, पदलोलुपता आ नीजी हित महत्वपूर्ण मानल जा रहल अछि। देशमे एखन अति महत्वाकांक्षी राजनेताक भरमार अछि। लोकतान्त्रिक प्रक्रियाके अंतर्गत, देशमे चुनाव कराओल जाइत अछि, आ तमाम मतदाता अप्पन मताधिकारक प्रयोग करैत, अप्पन प्रतिनिधि त’ चुनैत अछि। मुदा वर्तमान राजनीतिके देखैत, मतदाताक कार्य मात्र एतहि धरि सिमित अछि। अधिकांश राजनेता, जीतलाक उपरांत अप्पन स्वार्थसिद्धि मे लागि जाइत छथि। कहबाक तात्पर्य ई जे आब, धीरे धीरे सही मुदा, देशक राजनीतिसँ विचारक विदाई भेल जा रहल अछि, आब कोन नेता कहिया धरि कोन दलमे रहत, से कहब कठिन अछि । मिडिया रिपोर्ट्सके आधार पर कहल जाए त’ स्थापित दलक टिकट प्राप्त करबाक लेल प्रत्याशीके, अत्यधिक धन सेहो व्यय करए पड़ैत छैक। सोझा भषामे कहल जाए त’ राजनीति आब गरीब आ निर्धनक लेल उपयुक्त नहि रहल अछि। पहिने टिकट प्राप्त करबाक लेल धनक आवश्यकता, पुनः वोटक जोगाड़ लेल, अर्थात प्रचार – प्रसार लेल सेहो अत्यधिक धन आवश्यक मानल जाइत अछि। मतलब चुनाव आब अत्यधिक खर्चीला भेल जा रहल अछि, आ एहि प्रक्रियामे पाई, पानिक भांति बहाओल जाइत अछि। कालाधन आ भ्रष्टाचारसँ एकत्र कएल गेल धनक उपयोग सेहो आब चुनावमे खर्च कएल जाइत अछि। कएक ठाम त’ प्रायोजित प्रत्याशी सेहो देखल जाइत अछि, मतलब चुनाव लड़बाक लेल प्रत्याशीकें प्रायोजक सेहो उपलब्ध कराओल जाइत छैक। चुनावके दौरान करोड़ों रुपैया नकद जब्त होयबाक चित्र आ विडिओ त’ लगभग हर चुनावमे देख जाइत अछि। त’ अंदाज लगाओल जा सकैत अछि कि, कोनो राज्य अथवा लोकसभाक चुनावमे कोना पानिक भांति बहाओल जाइत अछि। मिडिया रिपोर्ट्सके मानी त’ कहल गेल अछि कि, पछिला लोकसभा चुनाव (2019) के दौरान लगभग 8 अरब डॉलर अर्थात 55 हजार करोड़ रुपैया व्यय कएल गेल। तदुपरांत ई चुनाव, खर्चक दृष्टिकोणसँ दुनियाभरिक देशक तमाम कीर्तिमान ध्वस्त कएलक। वर्ष 2019 मे संपन्न भेल लोकसभा चुनावमे भाजपा आओर बेसी बहुमतसँ सत्तामे वापसी कएलक, आ नरेंद्र मोदी दोसर बेर प्रधानमंत्री बनलाह। ओहि चुनावके ल’ क’ सेंटर फॉर मीडिया स्टडीजक एकटा रिपोर्ट प्रकाशित भेल, जाहिमे ई कहल गेल कि, चुनाव खर्च पछिला 20 वर्षमे (1998 सँ 2019 धरि) 9 हजार करोड़सँ लगभग 6 गुना बढ़ि क’ 55 हजार करोड़ रुपैया धरि पहुँचि गेल। रिपोर्टमे इहो कहल गेल कि, मात्र सत्ताधारी भाजपा द्वारा कुल खर्चक आधा पाई, चुनाव पर खर्च कएल गेल। मतलब, अन्य दलक अनुपातमे मात्र भाजपा द्वारा चुनाव पर एतेक खर्च कएल गेल कि, पूर्वक तमाम कीर्तिमान ध्वस्त भ’ गेल। ओहि चुनावमे लगभग 90 करोड़ मतदाता सहभागी भेल छल, आ ई प्रक्रिया लगभग 75 दिन धरि चलल। एहि अवधिमे अनेको रैली, व्यापक स्तर पर विज्ञापन आए सोशल मीडिया कैंपेन पर खूब धन खर्च कएल गेल। चुनाव प्रक्रियामे, जे पाई खर्च कएल जाइत अछि ओकर एकटा पैघ भाग, विज्ञापन, प्रचार – प्रसार, चुनावी रैली, संगहि मतदाता धरि प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूपसँ पाई पहुँचएबाक कार्यमे व्यय कएल जाइत छैक। चुनाव लड़बाक आ जीतबाक लेल राजनीतिक दलक प्रत्याशी हर तरहक प्रयास करैत देखल जाइत छथि, जाहिमे साम, दाम आ दंड भेद सेहो समाहित अछि। वर्तमान परिप्रेक्ष्यमे देशमे चुनाव लड़बाक लेल धनबल आ बाहुबल अत्यधिक आवश्यक सिद्ध भ’ रहल अछि। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्रमे, उम्मीदवारके प्रचार आदिके लेल प्रचुर मात्रामे धनक आवश्यकता होइत छैक। चुनावी प्रक्रियामे त’ अधिकांश उम्मीदवार, खर्चक स्वीकार्य सीमासँ आगू सेहो टपि जाइत छथि। देशक किछु भागमे मतदानके दौरान हिंसा, धमकी, बूथ कैप्चरिंग आदि सनक अवैध आ अप्रिय घटनाक रिपोर्ट सेहो सोझा अबैत अछि, जाहि लेल बाहुबलक बेगरता होइते छैक। मुदा एहि तरहक गतिविधि एकटा स्वच्छ लोकतंत्र लेल कखनहुँ उचित नहि कहल जा सकैत अछि। एकर दुष्प्रभाव सेहो देखल जाइत अछि, राजनीतिमे अपराधीकरण आ अपराधीक राजनीतिकरण, एकर उपयुक्त उदहारण अछि। कएक बेर त’ इहो देखल जाइत अछि कि, सत्ताधारी पार्टी द्वारा सरकारी तंत्रक दुरूपयोग सेहो कएल जाइत अछि। उदाहरणार्थ, प्रचार आदिके लेल सरकारी वाहनक उपयोग करब, सरकारी तिजोरीक मूल्य पर विज्ञापन बाँटब, संगहि संभावनाके आओर बेसी मजगूत करबाक लेल आनो आन साधनक उपयोग करब प्रमुख अछि। आब जौं, उपरोक्त तथ्य पर गंभीरतापूर्वक विचार करी त’ प्रश्न ई उठैत अछि कि, आखिर राजनीतिक पार्टी लग एतेक धन अबैत कोना अछि ? राजनीतिक दल त’ कोनो व्यापार आदि नहिए करैत अछि त’ आखिर राजनीतिक पार्टीक धनक स्रोत की अछि ? चुनाव लेल जे खर्च कएल जाइत अछि, ओ पाई कतयसँ अबैत अछि ? त’ किछु समय पूर्व, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्सक एकटा रिपोर्ट प्रकाशित भेल छल, जाहिमे कहल गेल कि, देशक पाँच राष्ट्रीय राजनीतिक दलके जे किछु पाई प्राप्त भेल अछि, ओहिमे सँ 53 प्रतिशत आमदनीक स्रोत ज्ञात नहि छल। अर्थात ई धन अज्ञात स्रोतसँ प्राप्त कएल गेल। सामान्यतः राजनीतिक दल, स्वैच्छिक दान, क्राउड फंडिंग, कूपन बेचि, पार्टीक साहित्य बेचब, सदस्यता अभियान संगहि कॉर्पोरेट चंदासँ धन जुटबैत रहल अछि। मुदा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्सक रिपोर्टके मोताबिक कहल गेल कि, पाँच राष्ट्रीय पॉलिटिकल पार्टीके जे धन प्राप्त भेल, ओहिमे मात्र 11 प्रतिशत धन सदस्यता शुल्कके रूपमे प्राप्त भेल मतलब, पार्टी फंडमें बेनामी चंदा प्रचुर मात्रामे प्राप्त भेल। चुनावी चंदामे, पारदर्शिताके नाम पर मोदी सरकार द्वारा राजनैतिक चंदाक प्रक्रियामे किछु पैघ बदलाव सेहो कएल गेल। जाहिके अंतर्गत, राजनैतिक पार्टी आब विदेशी चंदा सेहो ल’ सकैत अछि। कॉर्पोरेट चंदाक सीमा बाध्यता हटाओल गेल संगहि कोनो व्यक्ति अथवा कंपनी, गुप्त रूपसँ चुनावी बॉन्डके माध्यमे कोनो दलके चंदा द’ सकैत अछि। मुदा, चुनावी बॉन्ड योजनाक वैधताके, चुनौती सेहो देल गेल, उच्चत्तम न्यायालयमे सुनवाई सेहो भेल। वर्ष 2017 मे रिप्रेजेंटेशन ऑफ़ पीपल्स एक्ट 1951 (आरपीए) केर धरा 29 (सी) मे बदलाव करैत ई प्रावधान कएल गेल छल कि, कोनो दाता जे, राजनीतिक दलके चंदा देबय चाहैत अछि, ओ बैंकसँ चुनावी बॉन्ड किन सकत। पेमेंटक मोड इलेक्ट्रॉनिक रहत आ दाताके अप्पन जरुरी जानकारी उपलब्ध करएबाक प्रावधान सेहो छलैक। यद्यपि, राजनीतिक दल चुनाव आयोगकेँ, ओहि दाताक संबंधमे जानकारी देबाक लेल बाध्य नहि रहत। नव प्रावधानके अंतर्गत दाता 1 हजारसँ 1 करोड़ रुपैया धरिक बॉन्ड खरीद सकैत अछि, आ ई बॉन्ड, ख़रीदक तिथिसँ 15 दिन धरि वैध रहत। बॉन्ड पर किननाहरक नाम नहि होइत छैक। बस इएह एकटा प्रमुख कारण छलैक जे, ई मामिला शीर्ष न्यायालय धरि पहुँचल। राजनीतिक दल आसानीसँ एहि बॉन्डके नकदी करा सकैत अछि, आ ई रकम ओहि राजनीतिक दलक आमदनीमे शामिल भ’ जाएत । पहिल बेर वर्ष 2017 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के तरफसँ चुनावी बॉन्डके विरुद्ध कोर्टमे याचिका दायर कएल गेल छल। बादमे, माकपा, एनजीओ कॉमन कॉज आ किछु आनो याचिका दायर भेल। सभक तर्क छलैक कि, एहि व्यवस्था पर कोनो प्रशासनिक नियंत्रण नहि छैक त’ एहिसँ राजनीतिक दल (विशेष रूपसँ सत्ताधारी दल) द्वारा, आम जन मानसक बदले, व्यापारी वर्गक हितके प्राथमिकता देबाक आशंका बढ़ि जाएत। वर्ष 2019 मे ई मामिला पुनः प्रकाशमे आयल, मुदा ताधरि अधिकांश चुनावी बॉन्ड बेसाहि लेल गेल छल। 12 अप्रैल 2019 के एहि मामिलाक सुनवाई भेल, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता आ जस्टिस संजीव खन्नाक पीठ द्वारा कहल गेल कि, 30 मई धरि दाताक ब्यौरा सीलबंद लिफाफमे कोर्ट लग जमा कराओल जाए। ओना चुनाव आयोग सेहो एहि योजनाके, एहि बात पर अनुचित कहैत अछि कि, एहिमें दानदाता के अछि, से पता नहि चलैत अछि। हालाँकि केंद्र सरकारक कहब छैक कि, चुनावी बॉन्डसँ राजनीतिक दलक फंडिंगसँ संबंधित मामिलामे आओर पारदर्शिता आओत। एहि प्रक्रियामे कालाधनक कोनो सम्भावना नहि अछि। एहि योजनाक विरुद्ध दायर तमाम याचिकाक सुनवाईमे पहिनहि बहुत विलंब भेल अछि, मुदा आब एहि विषय पर शीर्ष न्यायालय गंभीर प्रतीत भ’ रहल अछि। एनजीओ एडीआर आ आन याचिकाकर्ता द्वारा अपारदर्शी होयबाक चलते, 2 जनवरी 2018 के शुरू कएल गेल केन्द्रक चुनावी बॉन्ड योजनाक वैधताके, राजनीतिक चंदाके स्रोतक रूपमे चुनौती देल गेल छल । योजना पूर्णतया अपारदर्शी अछि, एहि विषय पर शीर्ष न्यायालय असहमत छल, शीर्ष न्यायालय द्वारा, 27 मार्च 2021 के जारी एकटा आदेशके द्वारा अस्वीकार क’ देल गेल। याचिकामे त’ इहो आशंका व्यक्त कएल गेल छल कि, विदेशी कॉर्पोरेट घराना बॉन्ड खरीद सकैत अछि, आ चुनावी प्रक्रियाके प्रभावित करबाक प्रयास क’ सकैत अछि, मुदा न्यायालय द्वारा एहि आशंका के सेहो गलत ठहराओल गेल। ई मानल गेल कि, योजनाके खंड 3 के अंतर्गत, बॉन्ड मात्र ओहि व्यक्ति द्वारा ख़रीदल जा सकैत अछि जे भारतक नागरिक होय, अथवा एहि ठाम निगमित वा स्थापित कंपनी अछि। न्यायलय द्वारा इहो देखल गेल कि, मात्र बैंकिंग चैनलक माध्यमसँ बॉन्डक खरीद आ नकदीकरण सदैव, ओहि दस्तावेजमे परिलक्षित होइत अछि, जे अंततः सार्वजानिक होइत अछि। देशमे भ्रष्टाचारक दुष्चक्रके तोड़बाक लेल, आ लोकतांत्रिक राजनीतिक गुणवत्ताक कमीके लेल साहसिक सुधारक संग – संग राजनीतिक वित्तपोषणके प्रभावी विनियमनक दरकार अछि। संपूर्ण शासनतंत्रके बेसी जवाबदेह आ पारदर्शी बनएबाक लेल मौजूदा कानूनमे खामिके दूर करब महत्त्वपूर्ण अछि। मतदाता, जागरूकता अभियानक मांग करैत पर्याप्त बदलाव आनयमे सहायक सिद्ध भ’ सकैत अछि। जौं मतदाता, ओहि उम्मीदवार आ दलके अस्वीकार करए जे, मतदाता पर बेसी खर्च करैत अछि अथवा घुस दैत अछि, त’ निश्चित रूपसँ लोकतंत्र एक डेग आओर आगू बढ़त। सरकारक तर्क अछि कि, राजनीतिक चंदामे पारदर्शिता अनबाक प्रयासके अंतर्गत राजनीतिक दलके देल जाएवला नकद चंदाक विकल्पके तौर पर चुनावी बॉन्डके प्रस्तुत कएल गेल अछि। चुनावी बॉन्डक पहिल खेपक बिक्री मार्च 2018 मे भेल छल। कांग्रेसक वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम त’ चुनावी बांडके “वैध घुसखोरी” कहलने छलाह, आ हुनक दवा छलैन्ह कि, ई भाजपाके लेल स्वर्णिम फसल सिद्ध भ’ रहल अछि। आरोप प्रत्यरोपक अप्पन आधार सेहो छैक किएक त’ चुनावमे सभसँ बेसी खर्च भाजपा द्वारा कएल जाइत अछि आ चुनावी बांडके माध्यमे चंदा जुटाबयवला राजनीतिक दलक सूचीमें सेहो भाजपा शीर्ष पर अछि। त’ मामिलाक गंभीरता आ आगामी आम चुनावके देखैत, अंततः सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चुनावी बॉन्ड पर निर्णय आबि चुकल अछि। राजनीतिक दलक लेल चंदाक एकटा पैघ स्रोत चुनावी बांडके, मुख्य न्यायाधीशक अध्यक्षता वला न्यायाधीश पीठ द्वारा वृहस्पतिदिन के अवैध कहैत रद्द क’ देल गेल। पीठ द्वारा कहल गेल कि, ई असंवैधानिक अछि, किएक त’ ई सूचनाक अधिकारक संग – संग बाजब आ अभिव्यक्तिक स्वतंत्रताक उल्लंघन करैत अछि। शीर्ष न्यायालयक एहि निर्णयके सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टीके लेल एकटा झटका मानल जा रहल अछि।

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