भागवत प्रचार सेवा प्रतिष्ठान द्वारा विरारमे सहस्र चंडी यज्ञ एवम् देवी भागवत कथा यज्ञक आयोजन
मुंबई समदिया
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‘त्वं वैष्णवी शक्तिरन्तवीर्या विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत् त्वं वै प्रसन्ना भूमि मुक्तिहेतु:।।’
भागवत प्रचार सेवा प्रतिष्ठान अपन तेरहम स्थापना दिवसक अवसर पर विगत् १५ दिसम्बर, २०२४ सँ सहस्र चंडी यज्ञ एवम् श्रीमद् देवी भागवत महापुराण कथा यज्ञक शुभारंभ कयने अछि। ई आयोजन विरार (पूर्व) स्थित वर्तक बाड़ी, आर. जे. नाका, फूलपाड़ामे आगामी २५ दिसम्बर धरि आयोजित अछि। एहि अवधिक दरम्यान विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान तथा सत्संगादि द्वारा आध्यात्मिक उत्सवक वातावरणक प्रवाह प्रवाहित होएत रहत।
सहस्र चंडी यज्ञक आयोजनक मूल हेतु अछि समाजमे शान्ति, सद्भावना, सात्विकता, परस्पर प्रेम, प्रसन्नता तथा विविध प्रकारक ताप-संताप एवम् आपत्ति-विपत्तिसँ निवृति। कलियुगक कलमषसँ निवृतिक लेल भगवती दुर्गाकें आह्वान कयल जाएत अछि। भगवतीक आराधनासँ सात्विक शक्तिक प्रादुर्भाव होएत अछि तथा आसुरी चिंतनक दमन होएत अछि। स्वयं भगवती कहैत छथि -‘एकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा।’ सत्संगक महिमा अद्भुत अछि। अनेकों जन्ममे कयल गेल सुकृति एवम् भगवानक असीम अनुकम्पाक फलस्वरूप व्यक्तिकेँ सत्संगक परम लाभ प्राप्त होएत अछि। कलियुगमे सत्संगरूपी सुधा केर पान कयला उपरांत व्यक्ति लौकिक जीवनक कलमषसँ सदाक लेल मुक्त भऽ भगवत धाम प्राप्त करैत छथि। इएह सत्संगक महिमा अछि। श्रीमद्भागवत महापुराणमे महर्षि वेदव्यास सत्संग महिमाक विषयमे कहैत छथि – “भाग्योदयेन बहुजन्म समर्जितेन सत्संगमम् च लभते पुरूषो यदा वै। अज्ञान हेतुकृत मोह मोहान्धकारनाशं विधाय हि तदो दयते विवेक।”