संपादकीय

सीएए केर अन्तर्गत नागरिकता : शरणक जटिलताक प्रति भारतक दृष्टिकोण

सीएए केर अन्तर्गत नागरिकता : शरणक जटिलताक प्रति भारतक दृष्टिकोण
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शरण एकटा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त स्थिति अछि जे कोनो व्यक्तिक जीवनकेँ कवच अर्थात सुरक्षा प्रदान करैत छैक, सङ्गहि सहायता आ स्वास्थ्य सुविधा सन किछु सामाजिक विशेषाधिकार तक पहुँच प्रदान करैत अछि। चुँकि वैश्विक स्तर पर शरण चाहनिहारक प्रश्न नीतिगत बहसमे सबसँ आगू रहल अछि। एहि तथ्यकेँ देखैत जे पछिला पचास सालमे राज्यविहीन लोकक संख्यामे भारी वृद्धि भेल अछि, जकर आधार पर ई निष्कर्ष निकालल जा रहल अछि जे कोनो विशेष देशमे एकटा विशिष्ट समयावधि बितायलाक बाद हुनका औपचारिक नागरिकता देल जाय कि नहिं, अंततः, शरण चाहनिहारकेँ औपचारिक नागरिकता देनाइ कोनो देशक संप्रभु अधिकार अछि आ एकरा वैश्विक निकाय द्वारा लागू नहिं कयल जा सकैत अछि। उदाहरणक लेल, यूरोपीय देशसभमे, शरण चाहनिहार या शरणार्थीसभकेँ समाजमे सहज रूपसँ एकीकृत करय केर बदला ओ कानून द्वारा अपन दैनिक गतिविधि पर लगायल गेल प्रतिबन्धक अधीन कयल जाइत अछि। यूरोपीय राज्यक तर्क अछि जे “शरणार्थी आ शरण चाहनिहारकेँ औपचारिक नागरिकता देबासँ जनसांख्यिकीय परिवर्तन आबि सकैत अछि, मूल निवासी अल्पसंख्यक भऽ सकैत छथि आ संसाधन एवं नौकरी पर प्रतिस्पर्धा बढ़ि सकैत अछि, जाहिसँ संभावित रुपसँ सामाजिक संतुलन बाधित भऽ सकैत अछि।”

भारतमे म्यांमार, श्रीलंका, बांग्लादेश, अफगानिस्तान आ पाकिस्तानक शरणार्थीसभकेँ नागरिकता देबाक प्रश्नपर नीतिगत पहलू, शिक्षा जगत आ संसद पर बहस भेल अछि। १९७० आ ८०क दशकमे बांग्लादेशी शरणार्थी असम आ बङ्गालमे जनसांख्यिकीय असन्तुलनक खतरा उत्पन्न कयलनि। आइ भारतमे म्यांमारक शरणार्थीसभकेँ अपन अस्तित्वक लेल खतरा एवं आतंकवाद आ अस्थिरताक सम्भावित माध्यम मानल जाइत अछि। कतेको सालसँ पाकिस्तान आ अफगानिस्तानक शरणार्थी भारतमे स्थायी नागरिकताक माँग कऽ रहल छथि, जे नागरिकता कानूनमे संशोधन सहित शरणार्थीक मुद्दासभक समाधानक लेल एकटा सक्रिय राजनीतिक आ नीतिगत प्रतिबद्धताक संकेत दैत अछि। श्रीलंकाक तमिल, युगांडा शरणार्थीसभकेँ नागरिकताक विस्तार, आ असममे एनआरसीक कार्यान्वयन, नागरिक आ अवैध आप्रवासीसभक बीच औपचारिक समावेश आ अंतरक लेल अतीतमे उठायल गेल कदमक प्रतिनिधित्व करैत अछि। एहि बातकेँ उजागर करब महत्वपूर्ण अछि जे भारत सरकार लक्षित दृष्टिकोणक संग विशिष्ट चुनौतिसभक समाधान करैत, एहि महत्वपूर्ण मुद्दा पर अपन प्रतिक्रिया देलक अछि।
जखनि श्रीलंकाक शरणार्थीक मुद्दाक सामना कयल गेल, तखनि विधायिका हुनकर सभक चिन्ताकेँ दूर करबाक लेल विशेष रुपसँ उपाय अपनौलक, जाहिमे विशेष रूपसँ श्रीलंकासँ आबयवला शरणार्थीसभक लेल बनाओल गेल कानूनी प्रावधान शामिल छल। ई क्षेत्रीय चुनौतीसँ निपटबामे एकटा सूक्ष्म आ केंद्रित रणनीति केर प्रदर्शित करैत अछि। २०१९ केर नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) अफगानिस्तान, बांग्लादेश आ पाकिस्तानक निकटवर्ती देश सभमे अल्पसंख्यकसभक विरुद्ध भऽ रहल धार्मिक उत्पीड़नकेँ संबोधित करबाक लेल बनायल गेल छल।

अफगानिस्तान (अनुच्छेद २), बांग्लादेश (अनुच्छेद २(क), आ पाकिस्तान (अनुच्छेद २) केर संविधानमे कहल गेल अछि जे इस्लाम एहि गणराज्यसभक धर्म अछि, जे हुनक धर्मग्रंथक आधार पर ओकर कानूनकेँ उचित ठहराबैत अछि। ई कानून ओहि मुस्लिम नागरिकक पक्षमे अछि, जे सिख, बौद्ध, हिन्दू, पारसी आदि रहयवला अल्पसंख्यकसभकेँ हुनक हितक विरुद्ध कानूनक व्याख्याक प्रति संवेदनशील बना देलक अछि। हुनकालोकनिक अस्तित्वक लेल ई खतरा हुनका लोकनिकेँ एहि देशसभसँ भागि भारतमे शरण लेबाक लेल बाध्य करैत अछि। उदाहरणक लेल, दिल्लीमे सिखक पैघ आबादी रहैत अछि, जतय २१ हजारसँ अधिक सिख अफगानिस्तानसँ आयल अछि।सबसँ चुनौतीपूर्ण पहलू अफगानिस्तान आ पाकिस्तानमे राजनीतिक अस्थिरता अछि, जे लोकसभकेँ पलायन करय लेल मजबूर कऽ रहल अछि। १९७१ मे भारत मानवीय आधारपर बांग्लादेशी शरणार्थीसभकेँ स्वीकार कयलक, यद्यपि हुनका सभकेँ नागरिकता देलासँ किछु अभूतपूर्व घटना घटि सकैत छल। आब समय बदलि गेल अछि आ जनसंख्या कतेको गुना बढ़ि गेल अछि आ ओकर आवश्यकता सेहो बढ़ि गेल अछि जकरा सरकारकेँ पूरा करय पड़ैत अछि। १९४७ केर बादसँ लगातार क्रमिक सरकारसभ राजनीतिक सम्बद्धताक बावजूद, श्रीलंकाक नागरिकसभकेँ विभिन्न अवसरपर नागरिकता प्रदान कयलक अछि। लगभग ४,६१,००० व्यक्तिकेँ नागरिकता देल गेल, जाहिमे सँ २,१६,००० शरणार्थी १९८३ केर बाद श्रीलंका घुरि आयल, जखन कि ९५,००० एखनो एतहि रहि रहल अछि। ई ध्यान राखब आवश्यक अछि जे समान नागरिकताक प्रावधान बांग्लादेश वा पाकिस्तानक व्यक्तिसभक लेल नहिं बढ़ायल गेल छल।

एहिसँ एहि देशक प्रताड़ित अल्पसंख्यकसभकेँ नागरिकता देबाक भारतक निर्णय नैतिक दृष्टिकोण अपनबैत प्रासंगिक भऽ जाइत अछि। पड़ोसी देशसभमे अल्पसंख्यकसभक समस्याक समाधान करबाक लेल सेहो ई एकटा उचित निर्णय अछि। चूँकि भारत एकटा सभ्य राष्ट्रक रूपमे उभरि रहल अछि, तेँ ओ ओहि सम्प्रदायक अधिकारक देखभाल करबाक नैतिक जिम्मेदारी लऽ रहल अछि जे अपनाकेँ हिन्दू धर्मसँ परिचित करबैत अछि। पाकिस्तानमे रहनिहार हिन्दू आ सिखक प्रश्न पर गांधीवादी दृष्टिकोणसँ प्रेरणा लैत ओ एहि बातपर जोर देने छलाह जे ‘जँ ओ ओतय नहिं रहय चाहैत छथि तँ निस्सन्देह हुनका भारत घुरि जेबाक चाही’। ओ एहि बातपर जोर देने छलथि जे ई भारत सरकारक कर्तव्य अछि जे ओ नहिं मात्र हुनकर स्वागत करथि बल्कि रोजगार, मतदानक अधिकार सेहो प्रदान करथि आ हुनक खुशी सुनिश्चित करथि। गाँधी एहि सन्दर्भमे विशेष रूपसँ हिन्दू आ सिखक उल्लेख कयलनि।

-अल्ताफ मीर
पीएचडी स्काॅलर
जामिया मिल्लिया इस्लामिया

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