आपातकालक 50 साल पूरा भेला पर भाजपाक ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाबय पर मल्लिकार्जुन खड़गे नाराज भऽ गेलाह। कांग्रेस अध्यक्ष कहलनि, “भाजपा हमर सबहक संविधान बचाओ यात्रा’सँ डरा रहल अछि। ओ सब 50 साल पहिने केर इमरजेंसीक बात कय रहल अछि, जे अपन कार्यकालमे किछु नै कय सकल। जिनका लग बेरोजगारी, महंगाई आ विमुद्रीकरणक मुद्दा पर कोनो जवाब नै अछि। ओ सब आइ ई नाटक कय रहल छथि (आपातकालक 50 साल पूरा भेला पर “संविधानक हत्या दिवस” केर रूपमे मना रहल अछि) झूठ नुकाबय लेल।
मल्लिकार्जुन कहलनि जे सरकारक दिसिसँ प्रधानमंत्री एकटा सर्कुलर जारी कयने छथि जाहिमे इमरजेंसीक 50 साल पूरा भेला पर संविधानक हत्या दिवसक रूपमे मनाबय केर निर्देश देल गेल अछि। हम बस एतबे कहय चाहैत छी जे आब जे लोक संविधानकेँ बचाबय केर बात कय रहल छथि ओ सिर्फ ओहि मुद्दाकेँ उठाबय केर कोशिशमे छथि। जिनकर पहिने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन आ संविधानमे कोनो भूमिका नहिं छल ओ संविधान बचेबाक बात करैत छथि। ओ गांधीजी, अम्बेडकरजी आ अन्य लोकनिक चित्र सेहो जरा देलनि।
25 जूनके 50 वर्ष – लोकतंत्र के‘आपातकाल’, भारतक इतिहासमे सबस अन्हार दिन ।
जनतब जे 25 जून 1975 केँ ओहि राति जखनि भारतक लोकतंत्र हिलल छल। एहि दिन संविधानकेँ कुचलल गेल, अभिव्यक्तिक स्वतंत्रताकेँ दबा देल गेल आ लोकतंत्रकेँ जंजीरमे बान्हल गेल। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मध्य रातिमे रेडियो पर आपातकालक घोषणा कयने छलीह।
समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायणक नेतृत्वमे देशमे भ्रष्टाचार आ महंगाईकेँ खिलाफ आन्दोलनक गति बढ़ि रहल छल। इलाहाबाद हाईकोर्ट इंदिराक लोकसभा सदस्यता रद्द कय देने छल, जाहिसँ हुनकर सीट खतरामे पड़ि गेल छल। जयप्रकाश नारायण सन नेताक आवाज जनताकेँ एकजुट कय रहल छल। एहेन स्थितिमे आपातकाल एकटा एहेन हथियार बनि गेल जे लोकतंत्रकेँ बंधक बना लेलक।
एहि तनावक बीच 25 जूनक राति इंदिरा गांधी संविधानक अनुच्छेद 352 केर तहत आपातकालक घोषणा कयलनि। ई फैसला बिना मंत्रिमंडलक मंजूरीक रातों-रात लेल गेल। राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद आधा रातिमे हस्ताक्षर कयलनि आ देश आपातकालक अन्हारमे डूबि गेल।
आपातकालक दौरान नागरिकक मौलिक अधिकार पर रोक लगा देल गेल छल। बजबाक स्वतंत्रता छीनि लेल गेल। प्रेसकेँ सेंसरशिपक तहत राखल गेल। अखबारमे छपल हर खबरकेँ सरकारी सेंसरक मंजूरी लेबय पड़ैत छल। कतेको पत्रकारकेँ गिरफ्तार कय अखबारक कार्यालयमे ताला लगा देल गेल।
लोक सच्चाई जानय लेल तरसैत छल। ओहि समयक एकटा प्रसिद्ध कथा अछि जे किछु अखबार सेंसरशिपक विरोधमे अपन संपादकीय पन्ना खाली छोड़ि देलक।
विपक्षी नेता जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, एलके आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस राति भरि जेलमे बंद रहलाह। जेल सब एतेक भरि गेल जे जगहक कमी भऽ गेल। पत्रकार, साहित्यकार आ कलाकार धरिकेँ नहि बख्शल गेल। ओहि समयक बहुत रास प्रसिद्ध व्यक्तित्व दमनक शिकार भऽ गेलाह आ आपातकालक बोझ भोगय पड़लनि।
हर गाममे इमरजेंसीक खबरि पहुंचल। इमरजेंसी सिर्फ अपराधीक खिलाफ नहि छल बल्कि सरकार पर सवाल उठाबय वाला हर आवाजक खिलाफ छल। इंदिरा गांधीक एहि तानाशाही रवैया केर खिलाफ हर गली, कोना, चौक आ चौराहा पर लोकतंत्रक पुनर्स्थापनक नारा उठय लागल।
21 महीना धरि चलल इ आपातकाल 21 मार्च 1977 केँ समाप्त भऽ गेल, जखनि इंदिरा गांधी चुनावक घोषणा कयलनि। शायद हुनका विश्वास छलनि जे जनता हुनका संग अछि। मुदा, 1977 केर चुनावमे जनता कांग्रेसकेँ कुचलि कय हारा देलक। जनता पार्टीक सरकार बनल।
एहि जीतमे लाखों लोकक योगदान छल जे जेलमे यातनाक शिकार भेल, सड़क पर प्रदर्शन कयलक आ आवाज उठौलक। जनता इंदिरा गांधीक सरकारकेँ सत्तासँ बेदखल कयलक आ मोरारजी देसाईक नेतृत्वमे जनता पार्टीक सरकार बनल।