कहै छी मैथिली बाँचल अछि, तऽ कहू जे कतेक बाँचल अछि आ ककरा कहबै बाँचल ? गाम घरमे व्यवहारिक भाषा प्रायः छै एखनो, मुदा गामो-घरमे कोनो अनठिया आबि जाय, अथवा दू-चारियो किलोमीटर पर बाजार आदि अछि, मैथिली छुटि जाइत अछि, अपना मिथिलामे एतेक लाज वा छोटपनक एहसास होबय लगैत अछि मैथिली बाजयमे, लगैत छैक जेना कियो बुझि गेल जे मैथिली बाजैत अछि तऽ देहाती-गंवार बुझय लागत जे देखियौ हिन्दीयो नहिं आबैत छैक, एहि तरहक भाव घर कऽ गेल छैक दिमागमे, अर्थात ई मानू स्वभाव बनि गेल छैक। अधिकतर मैथिली तऽ कुचेष्टाक कारण आ एकर भयसँ खतम भेल जे फलावां एना बजैत अछि, शुद्ध नहिं बजैत अछि, तऽ फलांवा सोचलक जे अपने लोकसँ एहेन उपहास तऽ जो बजबे नहिं करब मैथिली, हिन्दीए बाजब, अपन घर-आंगनमे जेना बाजब कियो किछु नहिं कहत, आ बाहर खास कऽ तथाकथित स्वघोषित कोनो बुद्धिजीवी लग बाजब तऽ हँसय लागत, उपहास उड़बय लागत, तऽ एहिसँ नीक बजबे नहिं करब, तऽ आम जनमानससँ मैथिली उठय केर कारणमे बहुत रास ई तथाकथित स्वघोषित बुद्धिजीवी सभ सेहो छी, आ ई ‘तथाकथित स्वघोषित’ केर प्रयोग एहि लेल जे ई बुद्धिमानक काज नहिं भेलै, बुद्धिमानक काज तऽ ओ भेलै जे अपन भाषाकेँ समग्र रुपसँ बचा लिअ, आ तकर व्यवहारसँ क्षेत्रक संरक्षण होई, नहिं की एहेन व्यवहार हमरा लोकनिक होय जे हराशंख बनि जाय आ चट कय जाय, आम जनमानस दोसर भाषा अपना लिअ। तऽ एकरा जँ मैथिलीक बाँचब बुझब तऽ बुझैत रहू आ अपने मोने गुड़-चुड़ा फाँकैत रहू।
आब आउ मैथिलीक दावेदार दिसि। ई सभ एतबहिमे खुश जे हमरा खुब मैथिली लिखय-बाजय अबैत अछि, हम बहुत रास पोथी-पुराण लिखने छी, तऽ से कतेक दिन धरि आब आर, से कहू। पिछला दिन एकटा प्रश्न रखलौंह जे ‘कतेक एहेन मैथिलीक रचनाकार एखनि बाँचल छी, जिनकर धिया-पूता सेहो मैथिलीमे रचना कय रहल होय, उत्तर नदारद, आ ई सच्चाई छैक, सभक धिया-पूता एडवांस शिक्षा ग्रहण कय रहल छनि, जाहिमे मैथिलीक कोनो काज नहिं, आ एहि पाई प्रधान युगमे शिक्षा शिक्षित होबय लेल नहिं, बल्कि पाई कमाबय केर मात्र उद्देश्यसँ ग्रहण कयल जाइत छैक, तऽ प्रायः तथाकथित सभ मैथिली पर गुमान करयवाला आ मैथिली पर लेक्चर देबयवालाक घरमे मैथिली बस अपने तक सीमित, अर्थात अपने प्रस्थान करैत-करैत अपना संगे मैथिली सेहो नेने जयथिन। आ एहू रचनाकार सभमे औसत पचास बरख पकड़ि लिअ, तथापि एखनि ३५ बरख तक मानल जा रहल अछि, अर्थात एखनुक ३५ बरख वाला पीढ़ी समाप्त होइत-होइत मैथिली बस अपवाद रुपमे रहत आ किछु वर्ष पुर्व जेना कहल जाइत छलैक जे फल्लां गाममे फल्लां बाबू मिथिलाक्षर जनैत छथि, तहिना कहल जाय लागत जे फल्लां गाममे फल्लां बाबू एखनो मैथिली जनैत छथि। मुदा एखनुक भोगी समुदाय केर एहिसँ कोन लेना-देना, ओ ताधरि थोड़बे जीबैत रहतै, भले ही आबयवाला पीढ़ी गारि-फज्झति दौ, थोड़बे सुनय लेल आओत। एखनि मैथिली बलें मंच, सम्मान सभ भेटि रहल छै, काफी छैक। मनोरंजनक संग मिथिला-मैथिलीक धरोहरक तगमा सेहो भेटैत छैक, भोज-भात होइते छैक, आर की , भलेही ७५-८० बरखसँ असफलता भेटैत आबि रहल होय, मुदा ओहि असफलताक समारोह तऽ मनाओल जाईत अछि ने, बाकी ककरा कोन चिंता। तऽ की एकरा कहब जे मैथिली बाँचल अछि ?
मुदा बाँचत आ एखनो बाँचय केर पुरा संभावना अछि, बस थोड़े हृदय परिवर्तन करय पड़त, अन्तसक ओ ज्वाला केर शांत कय सद्भावना आनय पड़त आ सोचक सभ दृष्टिकोण सार्वजनिक हित दिस आनय पड़त, ठिक छैक जे जँ सैऽह मोनमे आबैत अछि आ तकरो कनी काल लेल मानि लिअ जे एहिसँ कियो टाटा-बिड़ला, अडानी-अंबानी भऽ जयतैक तऽ होबय दियौ ने, की फर्क पड़ैत छैक, आखिर टाटा-बिड़ला अडानी-अंबानी सेहो एही देशमे भेलै ने, तऽ एकटा अपन कोनो मिथिलोवासी भऽ जयतैक आ ताहिसँ मिथिलाक सभ हेतु प्राप्त भऽ जायत, मिथिलो क्षेत्र संरक्षक बनि जायत तऽ एहिसँ की फर्क पड़ैत छैक, आखिर पेट सभक ओतबे रहतै आ जायत सभ खालीए हाथ। खैर ई तऽ एकटा उदाहरण देलौंह ओहि सोचक लेल जे सोच सभ पर भारी पड़ि जाइत अछि आ आपसी सहयोग समाप्त भऽ जाइत अछि, अन्यथा के की बनि सकैत छैक सेहो मोनक एकटा कोन कहिते होयत, जकरा जबरदस्ती दाबि झुठलाबय केर प्रयास करैत छी।
तें कहलौंह जे वास्तविक केर परखू आ ई दृष्टिकोणमे आनू कि जे सभ दिन-राति परिणामक लेल, लक्ष्यक सिद्धिक लेल चुपचाप प्रयास कय रहल अछि, नव-नव योजना बना सपना साकार करय केर लेल दृढ़ प्रतिज्ञ अछि, जे सभ समाप्तप्राय भेल पर्यंत मिथिलाक्षर केर व्यवहार पथ पर दौड़ा देलक आ तत्पश्चात मैथिली अखबार एहेन असंभव काज केर तेसर सालमे नियमित दौड़ा देलक, जकर सभक वास्तविक उद्देश्य छैक, जे माया नहिं परिणाम पटल पर राखि रहल अछि, से सभ जँ किछु कहि रहल अछि, तऽ निश्चित बातमे दम छैक, आ ई सभ निश्चित रुपसँ सभ प्रकारक सहयोग प्राप्त करय केर अधिकारी अछि, लाजो पक्षे परोक्ष-अपरोक्ष रुपें एकरा सभकेँ सहयोग करय केर चाही, अन्यथा ई कहू जे की इएह पीढ़ी सभटा कलंक लेत, की ईएह पीढ़ी केर कृतघ्नक धब्बा लगतै, कारण जँ पुर्वज वा एहिसँ पहिलुक पीढ़ी सभटा सुविधा प्रदान नहिं कयने रहितथि तऽ जे मिथिला-मैथिलीक प्राप्त कयलौंह, से की कय सकैत छलौंह, जँ ओहो सभ इएह सोचितैथ जे हम की देखय लेल रहब तऽ की हमरा लोकनिकेँ सभ सुविधा प्राप्त होइत, तऽ कमसँ कम पुर्वजक ऋणे सधाबय केर खातिर हमरा लोकनि आगुक पीढ़ीक लेल काज करी, कमसँ कम कृतज्ञते ज्ञापित करय केर खातिर हमरा लोकनि आगुक पीढ़ीक लेल काज करी, अन्यथा की हमरा लोकनि कृतघ्न नहिं कहायब ?
बहुत रास तैयारी क्रमशः धीरे-धीरे भऽ चुकल छैक, आब बस आवश्यकता छैक, जिनकासँ जतबे जहिना संभव होय से सहयोग करै जाउ, सहयोगक अनेक प्रकार छैक, असमर्थसँ समर्थ तक सहयोग कय सकैत छी, एहेन सुविधा अछि। ‘मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश फोरम’ पटल पर राखि देल गेल अछि आ ई हवामे बस नहिं छैक, एकर फाउंडेशन मजगुत छैक, एकर नींव मजगुत छैक, ई सभटा विधि-व्यवस्थाक अनुरुप छैक आ प्रायः सभ तैयारीक संग गतिमान होबय लेल तैयार अछि, तऽ एहिमे जुड़ै जाइ जाउ, एकर सांगठनिक ईकाईक सदस्य बनै जाइ जाउ, ई पहिल सहयोगक विन्दु कहलौंह।
आब सहयोगक किछु एहेन विंदु कहि रहल छी जाहिमे नाम मात्र आर्थिक भार पड़त अथवा ओहो नहिं, बिना कोनो आर्थिक भारो केर सभगोटे कहल मोताबिक सहयोग करबै तैयो हेतुक पूर्ति होइत जायत, हँ बिना आर्थिक सहयोगक, आ जँ एतबौह सभगोटे नहिं करबै, तऽ कहू कि कियो की मिथिला-मैथिलीक अस्तित्व बचा सकैत अछि ?
मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश (राष्ट्रीय मैथिली दैनिक) केर वेवसाईट दू साल धरि प्रायः प्रायः निःशुल्क अखबार पढ़ा आब नाम मात्र मेंबरशिप रखलक अछि, मात्र १२५ टका भरि सालक, की ई सभगोटे नहिं लऽ सकैत छी ?
ठिक छैक ईहो नहिं लिअ, वेवसाईट पर मात्र ई-पेपर पर पाबंदी छैक, यद्यपि ई-पेपरमे सभटा सम्पूर्ण समाचार रहैत अछि, अतः ई-पेपर सभकेँ प्राप्त करय केर चाही, मुदा जँ सेहो नहिं तऽ वेबसाइट पर बहुत रास समाचार सभ सेहो अपलोड होईत अछि, आ ताहिपर एखनो पाबंदी नहिं छैक, लिंक पर्यंत उपलब्ध कराओल जाईत अछि, जाहि लिंकक माध्यमे बिना कोनो पाई खर्च कयने निःशुल्क समाचार पढ़ि सकैत छी, जँ एतबौह समग्रतासँ सभगोटे पढ़य लागब आ ई बात गुंजतै जे लाख-दू लाख मिथिलावासी प्रति दिन अखबार पढ़ि रहल छथि, तऽ अहीँ सभक बाद जे अखबारमे प्रकाशित होईत अछि, सरकार पर्यंत एक-एक टा बात प्राथमिकतासँ आगू बढ़ि सुनय लागत, एकर कारण सहज समझि सकैत छी जे सरकार बस वोटक बात बुझैत छैक आ जखनि ओ ई बुझतै जे ई समाचार सभ लाख-दू लाख मिथिलावासी प्रतिदिन पढ़ैत छथि आ तकर असरि स्वाभाविक रुपसँ वोट पर पड़त तऽ अहाँ सभक बात सुनत की नहिं सुनत ? तऽ कहू जे बिना पाई खर्च कयने सभटा स्वतः सभकें प्राप्त होबय लागत की नहिं , आ जँ एतबो नहिं सभगोटे करै जयबै तऽ की सोचल जाय, से अंही सभ विचार करु, आ कि अहूमे डाटाक खर्चक बात कहब ?
आ वेबसाइट पर एहि निःशुल्क समाचार पढ़य लेल की करय पड़त, बस एतबा मात्र :-
मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश आब ब्रांड बनि गेल छैक, गुगलसँ लऽ कऽ प्रायः-प्रायः शोसल मिडियाक कोनो प्लेटफार्म पर मात्र ‘मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश’ वा mppdainik.com सर्च करब तऽ ओतहि ई उपस्थित भऽ जायत, जानकारीक लेल बस मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश केर ई प्रोफाइल आ चैनल सभसँ जुड़ल रहू, कोनो प्लेटफार्म पर बस मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश सर्च करब भेटि जायत :- ह्वाट्सएप पर ‘मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश’ चैनल, फेसबुक पर ‘मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश’ प्रोफाइल , ट्विटर पर ‘मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश’ एकाउंट, तहिना फेसबुक पर ‘मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश’ पेज, समूह आदि-आदि, जे जतय छी सभठाम जुड़ि सकैत छी वा जतहि छी ततहि जुड़ू, सभटा समाचारक लिंक अपडेट आदि एहि सभ ठाम भेटत, जाहिसँ निःशुल्क समाचार वेबसाइट पर पढ़ि सकैत छी अथवा प्रतिदिन सिधे वेबसाइट पर जा सेहो निःशुल्क समाचार पढ़ि सकैत छी।
आब कहू जे मिथिला-मैथिलीक खातिर जँ एतबौह नहिं करबै तऽ की करबै आ तखनि के की कय सकैत अछि ?
आ की हेतै एहि मैथिली अखबारसँ ?
तऽ घर-घर मैथिलीक स्वाभिमान बढ़य लागल आरो बढ़त, मिथिला ओ मिथिलावासी मैथिलीमय हेथिन, रचनाकारक मैथिली पोथी दहाईसँ सैकड़ा, हजार ओ लाखोंमे बिकाय लागत, मैथिली सिनेमा अन्य भाषाक सिनेमा जँका देखल जाय लागत, प्राथमिक पढ़ौनी आगूसँ सरकार लागू करत, मिथिलाक अस्तित्व बाँचत, समर्थ मिथिला क्षेत्र बनत, संरक्षक मिथिला क्षेत्र बनत, पलायन रुकत, एक्कहि ठाम ई बुझू जे हर ओहि क्षेत्रक समान, जाहि क्षेत्रमे अपन भाषा व्यवहारमे छैक आ फलतः सभकिछु ओहि क्षेत्र केर प्राप्त छैक, अपनेमे ओ सभ मस्त रहैत अछि, अपना बदौलत, अपने टा नहिं आन क्षेत्रक लोकक सेहो भरण-पोषण करैत अछि, जेना हमरा लोकनिकेँ आ से की ककरोसँ छुपल अछि जे तकर कारणक मूलमे बस ओकर अपन भाषाक व्यवहार छैक, तऽ बस वैऽह होयत एहि मैथिली अखबारसँ मिथिलोमे मैथिलीक समग्र व्यवहारसँ ।
तऽ निर्णायक क्षण अछि, आ निर्णयक बात सभ कहल गेल, किछु बात किछु गोटेकेँ जँ ठिक नहिं लागय तऽ अनठा देबै, मुदा जे सभ वास्तविक रूपें मिथिला-मैथिलीमे पैसल अछि, वास्तविक रंग देखने छथि, वास्तविक स्वाभिमानक आगि धधकि रहल छनि जे माटिक अपमान आ अधिकारसँ वंचित होबय केर कारण करेजमे धधकैत छैक, तिनका सभकेँ कोनो बात खराब नहिं लागत, सभ बातसँ सहमत हेथिन। एतय प्रश्न छैक एखनौंह चेतय केर, एतय प्रश्न छैक एखनौंह बुझय केर, एतय प्रश्न छैक बुद्धिजीवीक बुद्धिक परख केर, जे बुद्धिजीवी सभ जाति-धर्म वर्ग-समुदायमे छी, एतय प्रश्न छैक जे सभ अपना स्तरसँ एहि बात सभकेँ केना पसारी ताकि सर्वत्र चर्चामे आबय आ असर करय, अमल करय, तऽ एतय प्रश्न अछि मिथिला-मैथिलीक अंतिम प्रयासक, आ जे प्रयास बस मोन देलासँ संभव छैक, आ एहि लेल एतय प्रश्न अछि हृदयक कोन ज्वाला जीतैत अछि – मैलवाला वा स्वच्छ वाला, अंधकार वाला वा प्रकाश वाला, जँ प्रकाशवाला केर जीताबय चाही तऽ अपनाबय पड़त ‘मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश’ केर, हँ , मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश’ केर, बस…….।