अजय नाथ झा ‘शास्त्री’
संस्थापक : मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान
प्रकाशक/संपादक : मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश (राष्ट्रीय मैथिली दैनिक)
प्रबंध निदेशक : मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश फोरम
*
कोनो भाषाक अपन लिपि ओहि भाषाक विशिष्ट पहिचान होइत छैक , ओहि भाषाक भविष्य होइत छैक । भाषा-लिपि-संस्कृतिक माध्यमसँ क्षेत्रक अस्तित्व स्थापित रहैत अछि, जानल जाइत अछि, पहचानल जाइत अछि , बल्कि ई कहि सकैत छी जे सुदृढ़ीकरणक लेल क्षेत्रक अपन भाषा ओ भाषाक अपन लिपि , ओहि क्षेत्रक अस्तित्वकेँ युग-युगक लेल अमर कय दैत अछि। बंगाल, गुजरात, पंजाबमे प्रवेश करैत प्रथमे दृष्टिमे ओतय केर पहिचान ज्ञात भऽ जायत, जे ई बंगाल, गुजरात वा पंजाब अछि, कारण ओतय केर भाषाक अपन लिपिमे सबकिछु दृष्टिगोचर होयत, वा ई कही जे आनहु ठाम ओतय केर व्यक्ति सभकेँ अपन परिचयमे पहिले ई नहिं बुझाबय पड़ैत छनि जे आहां कतय केर छी, कारण हुनक हाथमे वा मुँहमे बल्कि अपन सम्पूर्ण व्यक्तित्वमे अपन भाषा-लिपिक झलक स्वयं देखाई दऽ दैत अछि ।
मैथिलीयो भाषा जँ एखनि तक अपन लिपिक माध्यमसँ जानल जाइत रहैत तऽ मिथिलावासीकेँ आय इ हाल नहिं रहैत, हमरो लोकनिकेँ आन प्रदेश जँका अपन स्वतंत्र अस्तित्व रहैत , हमरो लोकनिकेँ अपन क्षेत्रिय परिचय परदेशमे बेर-बेर ई कहि कऽ नहिं देबय पड़ैत जे – ‘कहां के हो ?’ मिथिला के , ‘कहां आया मिथिला ?’ बिहार में , ‘अच्छा -अच्छा बिहारी हो ?’
कहबाक तात्पर्य जे मैथिली भाषाक अपन लिपि छुटल तऽ मिथिलावासीकेँ अस्तित्व डगमगा गेल, बल्कि अनाथ भऽ गेल ई कहब कोनो अतिशयोक्ति नहिं हेतै , यौ प्रत्यक्षक की प्रमाण , सबटा तऽ सामने उपस्थिते अछि , हमरा लोकनिक सब दुर्दशाक मुख्य इएह कारण अछि जे हमरा लोकनि अपन मातृभाषा मैथिलीक लिपि मिथिलाक्षर छोड़लौंह , पुनः भाषा छुटल, पलायनक होड़ लागि गेल, मिथिला क्षेत्र मिथिला कहाय, तकर पर्यंत आब प्रमाण देबय पड़ैत अछि, कहि कऽ बतबय पड़ैत अछि, आन क्षेत्रक लोक जतय अपन दिनानुदिन सर्वोच्च विकासमे लागल अछि, ओतय मिथिलावासी अपन अस्तित्वक खोजमे छथि , आखिर कोन कारणसँ ? मात्र आ मात्र एकटा कारण जे आन क्षेत्रक लोक सभसँ पहिने अपन विशिष्ट पहिचान अपन भाषा ओ लिपि नहिं छोड़लक आ तकर परिणाम सम्मूख अछि जे ओ सभ अपन क्षेत्रमे अपन मर्यादा आ स्वाभिमानक संग रहि रहल अछि, अपन पालन-पोषण तऽ करिते अछि , संगहि संग हमरा लोकनिक सेहो पालक बनल अछि, बल्कि ई कहियौ जे देशक संरक्षक राज्य बनल अछि। मुदा मिथिलावासी अपन मैथिली केर छोड़लनि, अपन मैथिलीक लिपि मिथिलाक्षर केर छोड़लनि , बल्कि ई कहू जे अपन दृश्य पहिचानकेँ छोड़लनि तऽ दुर्गति भोगि रहल छथि , कतेक पाछू छथि जे एखनि तक अपन अस्तित्वे केर लड़ाई लड़ि रहल छथि। तऽ ई होइत छैक अपन लिपिक महत्व , मैथिलीक अपन लिपि छुटल तऽ मैथिली ओ मिथिलावासीक भविष्य अंधकारमय भऽ गेल , मुदा पुनः एहि एक्कैसम शताब्दीमे हमरा लोकनि मैथिलीक अपन लिपि केर पकड़लौंह तऽ देखू एखने यत्र-तत्र-सर्वत्र, धरती-गगन-सदनमे मिथिलाक्षरेक चर्चा भऽ रहल अछि, की ई बिना एहि लिपि केर एहि तरहसँ पुनः जीवंत भेने संभव छल ? एहि लेल विशेष रूपसँ अनंतानंत धन्यवादक पात्र छथि मिथिलाक्षर साक्षरता अभियानक अभियानीगण , जे आइ पुनः ई दिन आयल , हमरा लोकनिक अस्तित्व, विशिष्ट पहचान पुनः स्थापित भऽ रहल अछि , तऽ मैथिलीक लेल मिथिलाक्षरक ई महत्व छैक ।
आब मैथिलीक लिपि मिथिलाक्षरक स्वरूप ओ दशा-दिशा पर उपलब्ध संकलित जानकारीक आधार पर प्रारंभसँ संक्षिप्त प्रकाश दैत एखनुक अर्थात एक्कैसम सदीमे मिथिलाक्षरक पुनः उदय पर यथासाध्य प्रकाश डालय चाहैत छी।
मानव अपन मोनक भावकेँ उत्पन्न करयवाला शब्द-ध्वनि केर कोनो रंग-रेषा द्वारा कल्पित चिन्ह, प्रतीक व आकृतिक रूपमे – शिलाखंड , भित्ति, तालपत्र, ताम्रपत्र वा कागज पर आन लोकक अवलोकन ओ समीक्षाक लेल , जे चिह्नित रुपें उकेड़ल जाइत अछि, प्रस्तुत कयल जाइत अछि , से भेल लिपि । “लिप्यते अनया (रित्या) इति लिपि:” , अर्थात मुंहसँ उच्चारित शब्द-ध्वनिकेँ रुपायित करवाक प्रकृया लिपि कहाइत अछि।
लिपिक प्रारंभिक स्वरुप चित्रात्मक छल , जकर प्राचीनतम उदाहरण मिश्र आ चीन देशक हिरोग्लिफ्स वा पिक्टोग्राफ्स अछि । चित्रात्मक स्वरुपमे वस्तु आदि , अर्थात दृश्य ओ दृश्यमान जे किछु छल तकरा ओहिना आकार दऽ देल जाइत छलैक, जेना अरिपन आ मिथिला पेंटिंग आदिमे आकार दऽ देल जाइत छैक। जेना-जेना मानव सभ्यताक विकास होइत गेल चित्रात्मक लिपिक स्थान भावात्मक आ प्रतीकात्मक लिपि लैत गेल। विकासक एही चरणमे आर्य लोकनि ब्राह्मी लिपिक आविष्कार कयलनि , जाहि माध्यमे पठन-पाठन आ ग्रंथ लेखनक परंपरा चलि पड़ल। एही ब्राह्मी लिपिसँ क्रमशः विकासात्मक प्रकृयामे मिथिलाक्षरक उद्भव भेल अछि आ संगहि संग प्रायः भारतक अन्य लिपि सबहक उद्भव स्थान ई ब्राह्मीये लिपि अछि ।
एही परिवर्तनक प्रकृयामे रेखा, विन्दु ,तिर्यक रेखा, त्रिभुज, चतुर्भुज, वृत्त, अर्द्धवृत्त, रेखा-गणित, तंत्र, मंत्र, यंत्र आदिक निर्माण होबय लागल।
आर्य सभ्यताक परिणिति सिन्धु सभ्यतामे भेल, मिथिलाक्षर जे वैदेही वा तिरहुता लिपिसँ सेहो जानल जाइत छल , अपन क्रमिक विकासक संग परिवर्तित एवं परिमार्जित होइत प्रायः ईसासँ १५०० ईस्वी पूर्व (BC) सँ १००० ईस्वी पूर्व (BC) तक आधुनिक मिथिलाक्षरक रुप ग्रहण कय लेने छल ।
*मिथिलाक्षरक प्राचीनता पर एक दृष्टि :* पौराणिक मान्यताक अनुसार यद्यपि मिथिलाक्षरक प्रायः उपस्थिति ‘वृहदारण्यक उपनिषद’मे वर्णित जनक – याज्ञवल्क्य आ गार्गी याज्ञवल्क्य संवादमे दृष्टिगत होइछ कि विदेह (मिथिला) केर अपन स्वतंत्र भाषा ओ लिपि छल ।
मुदा हमरा लोकनि एतय किछु उपलब्ध आधुनिक युगक प्रमाणिक साक्ष्य पर संक्षिप्त चर्चा करी । हमरा स्वयं केर जानकारीक आभावमे आओर बहुत साक्ष्य एतय छुटय केर संभावना अछि, जतेक जानकारी हमरा संकलित भऽ सकल, हम मात्र ओतबे एतय राखि रहल छी।
उपर बताओल गेल जे आधुनिक युगमे क्रमशः विकासात्मक प्रकृयामे *डेढ़ हजार ईसापूर्व सँ एक हजार ईसापुर्व तक* मिथिलाक्षर आधुनिक मिथिलाक्षरक रुप लऽ लेने छल।
अन्य प्राप्त जानकारीक अनुसार मिथिलाक्षरक उल्लेख *३०८ ईस्वीमे* चीनी भाषामे प्रकाशित बौद्ध ग्रंथ ‘ललित विस्तार’मे भगवान बुद्धक समकालीन प्रचलित ६४ लिपिक सूचीमे अछि, जे एकरा ब्राह्मीयें लिपिक समान मिथिलाक्षरक विकास वैदिक युगमे होयबाक संकेत दैछ । प्राचिन पांडुलिपि “बौद्धगान एवं दोहा नामक पोथीमे सेहो मिथिलाक्षरक साक्ष्य उपलब्ध अछि।
पटना स्थित ‘बिहार रिसर्च सोसायटी’मे, तहिना दरभंगाक कामेश्वर सिंह संसकृत विश्वविद्यालयक संग्रहालय आ पुस्तकालयमे, तहिना दरभंगा ओ नेपाल दिसक आसपासक क्षेत्रमे अनेक पांडुलिपि सभ उपलब्ध अछि।
पुनः *सातम शताब्दीक आदित्य सेनक ‘मंदारगिरि शिलालेख’मे* मिथिलाक्षरक साक्ष्य उपलब्ध अछि ।
पुनः मिथिलाक्षरमे *राजा नान्यदेवक मंत्री श्रीधरक ‘अन्धराठाढी शिलालेख १०९७ ईस्वी* केर उपलब्ध अछि।
एहिना मिथिलाक कतेक प्राचीन मंदिर, शिव मंदिर आदिमे शिलालेख आ शिवलिंगक आधारमे वर्णयंत्र आदि मिथिलाक्षरमे अछि।
आगू *१२६५ ईस्वीक मधुबनी जिलाक जीतवारपुर निवासी चन्द्रमणि दत्तक मैथिली भाषा रामायण एवं मैथिली महाभारत* मिथिलाक्षरमे उपलब्ध अछि।
पुनश्च *१४१८ ईस्वीक महाकवि विद्यापतिक ‘भागवत पोथी’* मिथिलाक्षरमे उपलब्ध अछि जे प्रायः कामेश्वर सिंह संसकृत विश्वविद्यालय दरभंगाक पुस्तकालय वा संग्रहालयमे अछि।
एहि तरहें *सत्यनारायण पोथी तथा अनेकानेक विद्वानक प्रायः १९०० ईस्वी तकक अनेक पोथी* मिथिलाक्षरमे उपलब्ध छैक।
यद्यपि नागरी वा देवनागरी लिपिक प्रभाव मिथिलामे उन्नैसम शताब्दी तक प्रायः नहिंये केर बराबर रहल , तथापि कहल इ जाइछ जे १८६० ईस्वीसँ देवनागरी लिपि मिथिलामे दरवाजा खटखटा देने छल ।
बीसम शताब्दी मिथिलाक्षरक लेल अंधकारमय रहल आ धीरे-धीरे मिथिलाक्षर लुप्तप्राय भऽ गेल, एकर कारण जे होय, तकर चर्चा बादक विषय ।
आब एक्कैसम शताब्दीमे पुनः मिथिलाक्षरक उदयक संक्षिप्त चर्चा करी । तऽ एहि प्रकारें मिथिलाक्षरक कहानी प्रायः समाप्ते जँका भऽ गेल छलैक , मुदा एक्कैसम शताब्दीमे *मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान* केर अभियानीगण मानू चमत्कारी प्रयास कय मिथिलाक्षर क्रांति आनि देलनि , जकर परिणाम एखनि देखाई दैत अछि , यद्यपि एखनो मिथिलाक्षर व्यवहारमे एक तरहसँ आबिये गेल, ई कहब अतिशयोक्ति नहिं हेतै । कतेक पोथी, गद्य-पद्य, कथा-पुराण, काव्य-महाकाव्य , रामायण आदि-आदि एखनि मिथिलाक्षरमे मिथिलाक्षर साक्षरता अभियानक अभियानीगण लिप्यंतरण कय देलनि वा लिखि देलनि, सबहक साक्ष्य प्रमाण अछि, मिथिलाक्षर साक्षरता अभियानक फेसबुक समूह पर प्रतिदिन हजारों पृष्ठ मिथिलाक्षर लिखा कय अभियानी द्वारा पोस्ट भऽ रहल अछि, एकटा उदाहरण कहैत छी जे रामायण लिखय केर आह्वान होइत छैक तऽ अभियानीगण मात्र एक-एक पृष्ठ लिखि एक दिनक किछुए अवधिमे पुरा रामायण लिखि दैत छथि , आब एहिसँ एखनुक मिथिलाक्षरक स्थितिक अंदाज लगा सकैत छी। एतबे नहिं मिथिलाक्षर, एखनि मिथिलावासीक एकीकरणक सूत्रधार बनल अछि, प्रत्येक जाति-पाति, वर्ण-धर्म, वर्ग-उपवर्गक मिथिलावासी एक सुर एक नियम ओ सिद्धांतक अन्तर्गत मिथिलाक्षर सिखि रहल छथि । देश-विदेशमे रहयवाला अनेक देशसँ लगभग १९-२० देशसँ मिथिलावासी २४ घंटा चलयवाला ऑनलाईन विश्वविद्यालयसँ निःशुल्क मिथिलाक्षर सिखि रहल छथि आ पुनः सिखा रहल छथि। ऊंच-नीच, अमिर-गरीब, उच्चाधिकारी आ आम मिथिलावासी एहि तरहें घुलल मिलल छथि जे एहि सबहक अन्तर बुझाइतो नहिं छैक । प्रायः समस्त तीसो जीला वाला मिथिला क्षेत्र भारतक एवं नेपालक मिथिला क्षेत्रक मिथिलावासी तऽ सिखते छथि बल्कि आन प्रदेशक लोक , जेना उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, दक्षिण आदिक प्रदेशक लोक सेहो मिथिलाक्षर सिखि मिथिलाक्षर प्रवीण भऽ चुकल छथि आ सिखि रहल छथि । ५५ टा एखनि आनलाईन विद्यालय छैक एहि मिथिलाक्षर साक्षरता अभियानमे, त्रैमासिक कोर्स प्रति सप्ताह शुरू होइत छैक आ तहिना प्रति सप्ताह परिणाम आबैत छैक जे नाम एवं फोटोक संग फेसबुक पर प्रकाशित होइत अछि, संगहि ‘मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश (रजि.) त्रैमासिक पत्रिका, जकर उपक्रम अछि ई मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान, ताहिमे सबटा परिणाम प्रकाशित होइत अछि, जे दस्तावेजक रुपमे बुझू सभ अंकमे समाहित अछि। मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश (राष्ट्रीय मैथिली दैनिक) मे सेहो रेकार्ड प्रकाशित होइत अछि।धरातलीय प्रयासमे सेहो जगह-जगह कार्यशाला लगाओल जाइत अछि आ प्रायः प्रत्येक तीन महिनामे धरातल मिथिला व नगर-महानगरमे जतय मिथिलावासी छथि, ओतय सम्मान समारोह ओ शोभायात्रा आदिक द्वारा ओहि क्षेत्र केर मिथिलाक्षरमय बना देल जाइत अछि, अभियानीगणकेँ उत्सिहित करय केर लेल समारोहमे सम्मानित कयल जाइत छनि। एखनि तक एग्यारह टा सम्मान समारोह विभिन्न जिला, नगर, महानगरमे भऽ गेल जे सर्वविदित अछि आ चर्चाक विषय अछि ।
तऽ ई सब केना भेलै आ कोन तरहसँ मिथिलाक्षर साक्षरता अभियान काज करैत अछि, जकर चमत्कार एहि रुपें अछि कि देशमे कतहु कोनो जगह चलि जाउ, एक बुलावा पर शताधिक स्त्री-पुरूष, बाल-वृद्ध मिथिलाक्षर साक्षरता अभियानी उपस्थित भऽ जयथिन , ताहि मिथिलाक्षर साक्षरता अभियानक संक्षिप्त विवरण जानू।