धर्म-संस्कृति

भारतक सर्वमान्य दुनू नववर्ष विक्रम संवत आ शक संवतकेँ बिसरि रहल लोक, सांस्कृतिक पुनर्जागरणक नितांत आवश्यकता

अजय नाथ झा शास्त्री
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जेना प्रमुख रुपसँ सौरमास आ चांद्रमास होइत छैक, तऽ स्वाभाविक रुपसँ सौर वर्ष आ चांद्र वर्ष सेहो हेतैक। प्रमुख रुपसँ चांद्र वर्षक गणना विक्रम संवत् केर रुपमे होइत अछि जे चैत्र मासक शुक्लपक्षक प्रतिपदासँ शुरू होइत अछि जे एहि बेर ०९ अप्रैल २०२४ कऽ छल आ एहि दिनसँ विक्रम संवत २०८१ शुरु भेल।
तहिना सौर वर्षक गणना शक संवतक रुपमे प्रचलित अछि, जे मेष संक्रान्तिसँ शुरू होइत अछि जाहि दिन मिथिलामे सतुआईन पावनि होइत छैक। मिथिलावासी आ संगहि देशक आर कतेको क्षेत्रक लोक नव वर्षक रुपमे शके संवत् पकड़ैत अछि। ओना भारत वर्षमे सूर्य आ चंद्र दुनूक गणना पकड़ल जाइत छैक आ ताहि लेल दुनूक बीच तालमेल सेहो बैसाओल जाइत छैक, जकरा अधिकमासक रुपमे जनैत छी। कहय केर अर्थ ई जे भारतवासी दू टा नववर्ष पकड़ैत छथि चंद्र अनुसार विक्रम संवत् आ सूर्य अनुसार शक संवत्। दुनू संवत्सर समान रुपसं सर्वमान्य अछि। क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्यमे मनाबय केर परंपरामे अपन-अपन विशेष परिपाटी छैक। ताहि परिप्रेक्ष्यमे मिथिला क्षेत्रमे शक संवत्सरसँ नव वर्ष मनाबय केर परिपाटी छैक, जे मेष संक्रान्ति कऽ होइत छैक, ई दिन सतुआईन केर रुपमे प्रसिद्ध अछि, दोसर दिनकेँ बसिया पावनि कहैत छैक जे ‘जुड़िशीतल’क रुपमे मिथिलामे प्रसिद्ध अछि। यद्यपि सतुआईने दिन नव वर्षक आगमन भऽ जाइत अछि, मुदा एहि दिन पातरि, पितरकेँ निमित्त उत्सर्ग, आदि देवता-पितरक निमित्त अनेक कर्म होइत छैक, फलतः दोसर दिन लोक नववर्षक उत्सव जुड़िशीतलक रूपमे मनबैत अछि। एहि बेर इ नवीन शक संवत् १३ अप्रैल २०२४, शनि कऽ अछि, शकाब्द १९४६ एहि दिनसँ शुरू होयत, मेष राशिमे सूर्यक प्रवेश एही दिन छैक, अर्थात मेष संक्रान्ति एही दिन अछि, फलतः एही दिन सतुआईन पावनि छैक, दोसर दिन अर्थात १४ अप्रैल २०२४, रवि कऽ बसिया पावनि अर्थात जुड़िशीतल अछि, नव वर्षोत्सव अछि।

मुदा दुर्भाग्य जे भारतक इ दुनू सर्वमान्य संवत्सरकेँ भारतवासी बिसरि रहल छथि, आ आयातित अंग्रेजी वर्ष लोकक जिह्वा पर रहैत अछि। संस्कृति संरक्षण दिसि जँ हमरा लोकनि नहिं बढ़लौंह तऽ स्वतंत्र मात्र कहय लेल रहब, क्रियारुपें परतंत्रता घर कऽ जाएत जे आबयवाला पीढ़ी आ अस्तित्वक लेल बहुत चिंताक बात, तें एखनि एहि पर चिंतन आ सांस्कृतिक पुनर्जागरणक नितांत आवश्यक अछि।

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