मधुबनी समदिया
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क्लासिकल अर्थात शास्त्रीय भाषाक मानक पूरा करयमे मैथिली भाषा प्रायः शीर्षस्थ श्रेणीमे आओत। जँ मात्र प्राप्त साक्ष्ये केर बात करी तऽ नवम शताब्दीक बौद्धगान आ दोहा कोषक मैथिली भाषाक प्रारंभिक स्वरूप अछि, तथापि बारहम शताब्दीक कविशेखराचार्य ज्योतिरीश्वर ठाकुर’क ‘वर्णरत्नाकर’ मैथिलीक प्रथम साहित्यिक स्वरूप ग्रहण करय केर रुपमे जानल जाइत अछि। पुनः चौदहम शताब्दीमे महाकवि विद्यापतिक अवहट्टमे ‘कीर्तिलता एवं ‘कीर्तिपताका’ मैथिली साहित्यक भंडारक अनमोल रचना अछि। तऽ एतेक प्राचीन मैथिली भाषाक प्रमाणिक साहित्य अछि। तहिना मैथिलीक अप्पन लीपि मिथिलाक्षर ओतबे प्राचीन छैक। दुर्भाग्य देखू जे मैथिली भाषाक लिपि मिथिलाक्षरकेँ बंगाली आ आसामी ग्रहण कयलक आ तकर भाषा आइ शास्त्रीय भाषाक दर्जा पाबि लेलक, मुदा जननी मैथिली भाषा वंचित रहि गेल, अर्थात एहनेमे मैथिलीमे कहबी छैक ‘बाप छल पेटमे पुत गेल गाया।’
कहय केर अर्थ जे क्लासिकल भाषाक दर्जाक लेल सभ अर्हताकेँ पूरा करयवाला मैथिली भाषा मात्र आ मात्र बिहार सरकार द्वारा प्रस्ताव नहिं भेजलाक कारण दर्जा नहिं पओलक आ ओहो जानि-बूझि कऽ प्रस्ताव नहिं भेजल गेल, कारण विधानसभामे पुछला पर मंत्री विजय चौधरी कहलनि जे ‘एकर आवश्यकता नहिं छल।’
मुदा प्रायः दस-बारह करोड़ मिथिलावासीक भाषा मैथिली जे भारतक एकटा निधि अछि, एतेक प्राचीनतम उत्कृष्ट ओ मिठगर भाषा भारतक गौरव अछि, तकरा संग एहि तरहक दुर्व्यवहारक विरूद्ध मिथिलावासीक आवाज प्रखर होबए लागल अछि आ ई कखनि विकराल रूप ग्रहण कऽ लेत से कहल नहिं जा सकैछ, कारण मिथिलाक माटिक अस्मिता आ अस्तित्वक प्रश्न अछि।
एही केर विरोध स्वरूप वरिष्ठ साहित्यकार भीमनाथ झा शोशल मिडिया केर माध्यमे आह्वान कयलनि अछि जे ‘क्लासिकल भाषा बनबामे बाधक बिहार सरकारक विरोधमे मंत्री, एमपी, एमएलए, एमएलसीकेँ मिथिला-मैथिलीक मंच पर आमंत्रित नहिं कयल जाए।’
शोसल मिडिया प्लेटफार्म पर प्रस्ताव दैत निवेदन करैत भीमनाथ झा लिखैत छथि, “हमर प्रस्ताव अछि जे मैथिलीकेँ ‘क्लासिकल’ भाषा बनबामे बाधक बिहार सरकारक अरुचि आ उदासीनताक विरोधमे एहि बेरक विद्यापति पर्व समारोहक मंच पर उपस्थिति आ भाषणक हेतु बिहार सरकारक मंत्री, बिहारक एमपी, एमएलए, एमएलसीकेँ आमंत्रित नहिं करबाक निर्णय लेल जाय।”
एकर समर्थन ओतहि अनेको गणमान्य लोकनि कयलनि अछि आ आक्रोश देखौलनि अछि। वरिष्ठ प्रसिद्ध कवि ओ साहित्यकार उदय चन्द्र झा ‘विनोद’ प्रतिक्रिया दैत लिखलनि, ‘प्रयास कैल जयबाक चाही।’ तहिना वरिष्ठ साहित्यकार बुद्धिनाथ झा कटाक्ष करैत लिखलनि, ‘भाइ ! तखनि फेर देख’ देखाबक उद्यमक अर्थ निरर्थक भऽ जेतैक।’ साहित्यकार कुनाल लिखलनि, ‘प्रस्ताव संज्ञानमे लऽ कऽ आयोजक संघ-समिति सब अपना पेट पर लात मारत ? भ नइ सकैया।’ तहिना राजीव कुमार लिखलनि, ‘हिनका सभकेँ बजाउ आ अपना बातकेँ राखि लौबीइंग करब बेसी उचित।’
अनेको रचनाकार, साहित्यकार आ आमजन जेना राजा राम प्रसाद, दीलीप कुमार झा, वन्दना मिश्रा, कमलेश झा, गिरिजा नंद झा, बिष्णुकान्त ठाकुर, बैद्यनाथ झा, कन्हैया झा, ज्योतिरमन झा, चंदेश्वर खान, मिथिलेश कुमार सिन्हा, शिव कुमार मिश्र, सोनू कुमार झा, नारायण जी, रघुबीर मिश्र राकेश, बिरेन्द्र नारायण झा, अजित झा, मालती मिश्रा, विनोदानंद झा, खुशबू मिश्रा, गौरीचरन झा, अरविन्द सुन्दर झा, विवेकानन्द झा, नबो नाथ झा, प्रकाश झा, मुकेश आनंद, रंजू मिश्रा, मुरारी, संजीव कुमार झा, वैद्य गणपति नाथ झा, इन्द्र मोहन झा, अभिषेक आनंद झा, सुरेन्द्र भारद्वाज आदि सहमतिमे प्रस्ताव केर समर्थन कयलनि।
मणिकांत झा ‘मणि आमारुपी’ लिखलनि, ‘उचित निर्णय, संस्था मनन करथि।’ हिरेन्द्र कुमार झा लिखलनि, “सभ आयोजन स्थल पर प्रवेशद्वार पर कारी पृष्टभूमि पर लालसँ लिखल हो – मैथिलीक असहयोग कयनिहार सरकारक हमसभ विरोध करैत छी।’ गंगेश गुंजन लिखलनि, ‘स्वागत पूर्वक सादर समर्थन योग्य प्रस्ताव अछि।’ विश्वनाथ झा लिखलनि, ‘राजनति आ लोकतंत्रमे पलायनसँ काज नहिं चलत।’ सती रमन झा लिखलनि, ‘विचार उत्तम किन्तु आयोजकलोकनिक आन्तरिक लक्ष्य पर कुठाराघात सह्य हेतनि ? ई तऽ मास मध्ये स्पष्ट भए जाएत।’ प्रकाश झा लिखलनि, ‘मुश्किल अछि, लोटिए डुबि जेतैक।’ उदय शंकर झा लिखलनि, ‘बात त बड़ दीव मुदा अपने मे कै फांक भ जायत।’ भोली बाबा लिखलनि, ‘मैथिलीक एहेन कोनो संस्था नहिं अछि जे एहेन डेग उठाबय, होइत त नीक।’ हरिश चन्द्र हरित लिखलनि, ‘स्वागत अशेष। अभिनंदन विशेष।’ अजीत आजाद लिखलनि, ‘अनुकरणीय विचार।’
विनय कुमार झा लिखलनि, ‘बहुत उत्तम प्रस्ताव! विद्यापति समारोहक मंच पर राजनेता, मंत्री वा सरकारी उच्चाधिकारी (जे कि ब्यूरोक्रेट टा केँ मानल जाइत अछि) केॅं आयोजक लोकनिक व्यक्तिगत लोभ-लाभक कारण बजाओल जाइत अछि आ तकरा बाद सम्पूर्ण कार्यक्रम मे हुनके लोकनिक आव-भगत ओ विरुदावली चलैत रहैत अछि । आ ओम्हर, भाषा-साहित्यक संग-संग एकात मे राखल महाकविक फोटो पर्यंत उपनेनियाँ बरुआक केश परिछनिहारि जकाँ भोजक पेपच सँ दूर अनोने गुजर करबा के नियम आ नियति मानि संतोष कऽ लैत छथि।’ शशिबोध मिश्र शशि लिखलनि, ‘निर्भीक विचारक लेल भीम भाइकेँ नमस्कार।’
आइ महाकवि विद्यापतिक स्मृति दिवस अछि। ‘मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश (राष्ट्रीय मैथिली दैनिक) महाकविक प्रति अनंत कृतज्ञता ज्ञापित करैत अछि एवं नमन् करैत अछि। देखा चाही आजुक विद्यापति समारोहक मंच सभ पर ?