बीपीएससी डंकाक चोट पर कहैत अछि कि मैथिली बोली अछि, मुदा अगुआ सभ चुप – मुख्तार आलम
मधुबनी समदिया
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विगत दस दिसम्बर कऽ भेल बीपीएससी परीक्षामे मैथिली भाषाकेँ बोली कहि प्रश्न पुछल गेल अछि, “प्रश्न संख्या ११ ‘मैथिली बोली’ के कवि हैं…. विकल्पमे अमीर खुसरो, नंद दास, विद्यापति….” ।
एहि बातकेँ लऽ कऽ शोसल मिडियाक फेसबुक/मेटा प्लेटफार्म पर वाक् युद्ध छिड़ल अछि। साहित्यकार मुख्तार आलम पोस्ट करैत संग-संग मिथिला-मैथिलीक अगुआ सभकेँ सेहो निशाना बनबैत कहैत छथि -“बीपीएससी डंकाक चोट पर बिहारी विद्यार्थीसँ कहैत अछि जे मैथिली ‘बोली’ अछि, मुदा कोनो भी गोधियागिरी करयवाला कुंठित सभक मूँहसँ आवाज तक नहिं निकलि रहल अछि। कियो आपत्ति तक दर्ज करबय केर साहस नहिं कयलक, एकटा पोस्ट तक नहिं देखायल, जखनि कि अन्य मामिलामे विषवमन करयमे आगू रहैत छथि।”
एहि बात पर बीपीएससीक विरुद्ध तीक्षण प्रतिक्रिया आयल अछि। नवो नारायण मिश्र लिखैत छथि – साधुवाद! ई विस्मयकारी समाचार पर ध्यानाकर्षण हेतु।” मधुबनीसँ साहित्यकार दिलीप कुमार झा लिखैत छथि -‘निंदनीय’। सुपौलसँ बैद्यनाथ झा लिखैत छथि – “बीपीएससी तऽ आगुक वास्तें मैथिली भाषाक लेल वर्ग ९-१० केर लेल एकटा रिक्ति तक नहिं देलक, जखनि कि प्रत्येक वर्ष मैट्रिक बोर्ड परीक्षामे एक लाख छात्र सम्मलित होईत अछि। एहि बेर मात्र ८० टा सीट देबो कयलक तऽ बीपीएससी साईट पर आवेदन नहिं लऽ रहल छल। कतेक प्रयासक बाद १४ तारीख कय आवेदन लेलक। सभ मिथिला विभूति पुरस्कार पाबयमे व्यस्त छथि, वर्ग ९ सँ विश्वविद्यालय तक सिलेबसक किताब नहिं भेटैत अछि। भाषा, अनुसंधान, बोर्ड आ शिक्षा विभागमे मैथिलीक नाम पर बनल सदस्य कखनो एहि भाषाक उत्थानक लेल कोनो डेग नहिं उठबैत छथि। कोनो संस्था वा मंच पर मैथिली भाषाक उत्थानक लेल प्रस्ताव पारित नहिं होइत अछि।” प्रशांत कुमार मिश्र कहैत छथि -“मैथिली भाषा अछि वा बोली, एकर निर्णय करय केर अधिकार बीपीएससी लग अछिए नहिं, जहाँतक बात विरोधक छैक तऽ जखनि मैथिली भाषा आ साहित्यक विद्वानक बच्चाक रुचि बिहारमे नहिं छनि, तऽ ओ की ध्यान देताह।” साहित्यकार हरिश चंद्र हरित लिखैत छथि -‘भर्त्सना’ । मैथिली अभियानी राम नरेश शर्मा लिखैत छथि -निंदनीय’। दिल्लीसँ मैथिली अभियानी बिनय ठाकुर लिखैत छथि – ‘अहाँक कहब ठिक अछि।’
एहि तरहसँ कतेको तीक्षण प्रतिक्रिया मिथिलावासीक भेल अछि।