ओना त’ देशमे अनेको एहेन विषय अछि, जाहि विषय पर एकटा निश्चित समयांतराल पर चर्चा होइते रहैत अछि। मुदा पुनः एक बेर “एक देश एक चुनाव” पर खूब चर्चा भ’ रहल अछि। नीति निर्माता, लोकसभा आ विधानसभाक चुनाव, एक्कहि संग करएबाक दिशामे चिंतन – मनन क’ रहल छथि। एहि विषय पर राजनीतिक जगत, दू भागमे बँटाएल सन प्रतीत भ’ रहल अछि। आब ई कतेक हद धरि व्यावहारिक आ प्रासंगिक अछि, ओहि पर संशय अछि, मुदा एकरा लागु करएबाक दिशामे डेग बढ़ाओल जा चुकल अछि। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंदक अगुवाईमे ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विषय पर गठित समिति द्वारा ‘‘देशमे एक्कहि संग चुनाव करएबाक लेल वर्तमान कानूनी प्रशासनिक ढांचामे उचित बदलाव करबाक लेल’’ जनतासँ सुझाव मांगल गेल अछि। देशमे, लोकसभा आ विधानसभा चुनावके एक संग करएबाक मुद्दा वर्ष 1983 मे सेहो उठाओल गेल छल, पुनः वर्ष 1999 मे भारतमे ‘लॉ कमीशन’द्वारा लोकसभा आ विधानसभाक चुनाव, एक संग करएबाक परामर्श सेहो देल गेल, मुदा ई संभव नहि भेल। वर्ष 2014 मे भाजपा, लोकसभा आ विधानसभा चुनाव, एक संग करएबाक विषयके अप्पन चुनावी घोषणापत्रमे शामिल कएलक। भरिसक तैं आब केंद्र सरकार द्वारा एहि दिशामे, डेग बढ़ाओल जा रहल अछि, मुदा तमाम विपक्षी दल, सरकार पर आक्रामक अछि। भारत सन विशाल लोकतान्त्रिक देशमे चुनाव, कोनो उत्सवसँ कम नहि मानल जाइत अछि। चुनाव प्रक्रियाके, भारतीय राजनीतिमे लोकतंत्रक सभसँ पैघ पावनिक संज्ञा देल गेल अछि। लोकतंत्रमे, चुनाव एकटा अनिवार्य प्रक्रिया अछि, स्वस्थ एवं निष्पक्ष चुनाव, लोकतंत्रक आधारशिला मानल जाइत अछि। मुदा भारत सन विशाल लोकतांत्रिक देशमे निर्बाध रूपसँ निष्पक्ष चुनाव कराएब, सदैव एकटा चुनौती सेहो रहल अछि। एखन उच्चस्तरीय समिति द्वारा एकटा सार्वजनिक नोटिस जारी करैत कहल गेल अछि कि, 15 जनवरी धरि प्राप्त सुझाव पर विचार कएल जाएत। नोटिसमे कहल गेल अछि कि सुझाव, समितिक वेबसाइट पर देल जा सकैत अछि अथवा ईमेलके माध्यमे सेहो पठाओल जा सकैत अछि। एहि समितिक गठन, पछिले वर्ष सितंबरमे कएल गेल छल, आ गठनक पश्चात् एहि समितिक दू गोट बैसार सेहो संपन्न भ’ चुकल अछि। समिति द्वारा त’ हालहिमे राजनीतिक दलकेँ चिट्ठी लिखि, देशमे एक संग चुनाव करएबाक संबंधमे विचार सेहो मांगल गेल छल। समिति द्वारा छः राष्ट्रीय दल, 22 प्रादेशिक दल संगहि सात पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दलकेँ सेहो पठाओल गेल छल। एहि विषय पर विधि आयोग, सेहो समितिक समक्ष अप्पन विचार राखि चुकल अछि, आ संभवतः विधि आयोगकेँ, एहि विषय पर पुनः बजाओल जा सकैत अछि। ओना त’ एतेक पैघ देशमे कतौह न’ कतौह चुनाव होइते रहैत अछि, किएक त’ लोकतांत्रिक प्रणालीमे पंचायत, नगरपालिका आ राज्य विधानसभाक संग – संग आम चुनाव सेहो होइत अछि। चुनावक एहि निरंतरताके चलते देश, सदिखन चुनावी मोड पर रहैत अछि। एहि क्रममे, भारत निर्वाचन आयोगक अधिकारीक टीम लगातार चुनावी तैयारीक निरिक्षण करबामे व्यस्त सेहो रहैत छथि। कहबाक तात्पर्य ई जे, चुनाव आयोग अपना भरि पूरा प्रयासमे रहैत अछि कि, चुनावमे कोनो तरहक गड़बड़ी नहिं होय, संगहि चुनाव निर्विघ्न संपन्न होय। राजनीतिमे आब जाहि हिसाबेँ, धनबल आ बाहुबलक उपयोग कएल जाइत अछि फलतः चुनावमे धांधलीक समस्या सेहो देखल जा रहल अछि। चुनाव आयोग द्वारा हर ओ डेग उठएबाक प्रयास करैत अछि, जाहिसँ देशमे निर्बाध रूपसँ निष्पक्ष आ स्वस्थ चुनाव संपन्न कराओल जा सकए। चुनावमे संगहि चुनावी प्रक्रियामे पार्दर्शिता अनबाक लेल आयोग, हर संभव उपाय करैत देखल जा सकैत अछि। एहि लेल चुनावक तिथिक घोषणा उपरांत आदर्श चुनाव आचार संहिता लागु कराओल जाइत छैक। प्रयास इएह रहैत छैक कि, एहि तरहेँ कहूना लोकतंत्रकेँ मजगूत कएल जाए। आब सरकारक दायित्व छैक कि, ओ एकरा प्रभावी ढंगसँ लागू करएबाक लेल प्रयास करए। चुनावी प्रक्रियामे सरकारी खजाना त’ खाली होइते अछि, संगहि तमाम राजनीतिक दल आ ओहि दलक तमाम प्रत्याशी द्वारा सेहो बेतहाशा पाई बहाओल जाइत अछि। देशमे निरंतर चुनाव आ चुनावी प्रक्रियासँ नहिं मात्र प्रशासनिक आ नीतिगत निर्णय प्रभावित होइत अछि, अपितु सरकारी खजाना सेहो अत्यधिक प्रभावित होइत अछि। एहि सभसँ बँचबाक लेल नीति निर्माता द्वारा देशमे, लोकसभा संगहि राज्यक विधानसभाक चुनाव सेहो एक्कहि संग करएबाक विचार कएल जा रहल अछि। देशमे एहि दुनू चुनावक अतिरिक्त पंचायत आ नगरपालिकाक चुनाव सेहो होइत अछि, मुदा एक देश एक चुनावमे एकरा शामिल नहिं कएल जाइत अछि। एक देश एक चुनाव, लोकसभा आ राज्यक विधानसभाक चुनाव एक्कहि संग करएबाक एकटा वैचारिक उपक्रम अछि। एहि विचारके ल’ क’ तमाम राजनीतिक दल संगहि आम नागरिककेँ मध्य अनेको प्रकारक भ्रान्ति छैक। ई देशके लेल कतेक हद धरि उपयुक्त होयत, एहि पर सेहो संशय छैक। तहिना, एक देश एक चुनाव, देश पर कतेक हद धरि प्रतिकूल असर छोड़त, इहो विचारक विषय अछि। समाजमे सेहो एहि विषय पर भिन्न – भिन्न मत अछि, एक पक्ष जतय एकर विशेषता गनबैत नहिं थकैत छथि त’ दोसर पक्षकेँ ई भाजपा आ पीएम मोदीक षड्यंत्र प्रतीत होइत छैन्ह। ओना, एक देश एक चुनाव, कोनो अनूप प्रयोग नहिं अछि, किएक त’ पहिनहुँ, वर्ष 1952, 1957, 1962, आ 1967 मे एहेन भेल अछि। ओहि अवधिमे लोकसभा आ राज्यक विधानसभाक चुनाव, एक्कहि संग संपन्न कराओल गेल छल। ई क्रम तहन भंग भेल, जहन 1968-69 मे किछु प्रदेशक विधानसभा अनेको कारणे समय पूर्व भंग क’ देल गेल। त’ एहि सभक आधार पर समर्थक समूहमे उत्साहक वातावरण व्याप्त छैक। कहबो कोनो बेजाए नहि, किएक त’ जहन पूर्वमे एना भेल अछि त’ एखन कोन समस्या ? एहि विचारक विरोधमे सेहो अनेको महत्वपूर्ण तर्क प्रस्तुत कएल जाइत रहल अछि। जानकारक मंतब्य अछि कि, भारत सन विशाल लोकतांत्रिक देशमे, ई संभव नहिं अछि। देशक जनसंख्या बढ़ैत – बढ़ैत आब चीनसँ सेहो बेसी भेल अछि, त’ एहि स्थितिमे एक्कहि संग, सम्पूर्ण देशमे चुनाव कराएब लगभग असंभव अछि। एहि विषय पर किछु जानकार कहैत छथि कि, देशक जनसंख्याक अनुपातमे, तकनीकी आ तमाम तरहक संसाधन सेहो विकसित भेल अछि त’ एक्कहि बेर एहि संभावनाके नकारल नहिं जा सकैत अछि। भरिसक तैं, एहि उच्च स्तरीय समिति द्वारा देशमे एक संग चुनाव करएबाक संभावना पर चिंतन – मनन जारी अछि। मुदा किछुए दिन पहिने, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी द्वारा कहल गेल कि, जौं एक संग चुनाव करएबाक लेल राष्ट्रीय स्तर पर सर्वसम्मति नहिं बनैत अछि त’ एकरा, लोक पर थोपल नहिं जएबाक चाही। कुरैशी, आगामी चुनावके ल’ क’ वर्तमान चुनाव आयुक्तक दृढ़ताके प्रति आश्वस्त छथि। अप्पन वक्तव्यमे ओ, एहि विषय पर जोड़ देलनि कि, निष्पक्ष चुनावक लेल चुनाव अयुक्तक दृढ़ रहब आवश्यक अछि। जौं चुनाव आयुक्त दृढ़ताक संग कार्य करत त’ निश्चित रूपसँ आगामी चुनावमे आचार संहिताक उल्लंघनके मामिलामे कठोर आ तत्काल कार्रवाई संभव अछि। वर्तमान परिप्रेक्ष्यमे देशमे चुनाव लड़बाक लेल धनबल आ बाहुबल अत्यधिक आवश्यक सिद्ध भ’ रहल अछि। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्रमे उम्मीदवारकेँ, प्रचार आदिक लेल प्रचुर मात्रामे धनक आवश्यकता होइत छैक। चुनावी प्रक्रियामे त’ अधिकांश उम्मीदवार, खर्चक स्वीकार्य सीमासँ आगू सेहो टपि जाइत छथि। देशक किछु भागमे मतदानक दौरान हिंसा, धमकी, बूथ कैप्चरिंग आदि सनक अवैध आ अप्रिय घटनाक रिपोर्ट सेहो सोझा अबैत अछि, जाहि लेल बाहुबलक बेगरता होइते छैक। मुदा एहि तरहक गतिविधि, एकटा स्वच्छ लोकतंत्र लेल कखनहुँ उचित नहिं कहल जा सकैत अछि। एकर दुष्प्रभाव सेहो देखल जाइत अछि, राजनीतिमे अपराधीकरण आ अपराधीक राजनीतिकरण, एकर उपयुक्त उदहारण अछि। कएक बेर त’ इहो देखल जाइत अछि कि, सत्ताधारी पार्टी द्वारा सरकारी तंत्रक दुरूपयोग सेहो कएल जाइत अछि। उदाहरणार्थ, प्रचार आदिके लेल सरकारी वाहनक उपयोग करब, सरकारी तिजोरीक मूल्य पर विज्ञापन बाँटब, संगहि संभावनाकेँ आओर बेसी मजगूत करबाक लेल आनो आन साधनक उपयोग करब प्रमुख अछि। आब जौं देशक वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य एहि तरहक अछि त’ एक देश एक चुनाव, निश्चित रूपसँ एकटा कठिन कार्य सिद्ध भ’ सकैत अछि। किछु जानकार त’ एहि विचारकेँ, देशक संघीय ढाँचाक विपरीत आ संसदीय लोकतंत्रक लेल घातक सेहो कहि रहल छथि, कहल जा रहल अछि कि, एहिसँ किछु विधानसभाक मर्जीक विरुद्ध ओकर कार्यकालके बढ़ाओल अथवा घटाओल जाएत, जाहिसँ राज्यक स्वायत्तता सेहो प्रभावित भ’ सकैत अछि। तहिना, जौं लोकसभा आ राज्यक विधानसभाक चुनाव एक संग कराओल जाइत अछि त’ राष्ट्रीय मुद्दाके समक्ष तमाम क्षेत्रीय विषय प्रभावित भ’ सकैत अछि। संभवतः एक देश एक चुनावसँ क्षेत्रीय दलकेँ नुकसान सेहो पहुँचि सकैत अछि। मतदाता वर्ग पर, एक देश एक चुनावक मानसिक प्रभाव सेहो संभव अछि, किएक त’ मतदाता वर्गमे एक्कहि दलकेँ पक्षमे मतदान करबाक सम्भावना सेहो बनि सकैत छैक त’ एकर लाभ निश्चित रूपसँ केंद्रमे सत्ता पर आसीन दलकेँ भेटत, ई तय अछि। तर्कक रूपमे इहो कहल जा रहल अछि कि, एकटा निश्चित समयांतराल पर अथवा, अलग-अलग समय पर चुनाव भेलासँ, क्षेत्रक निम्नस्तरीय जनप्रतिनिधिसँ सांसद धरि, निरंतर अप्पन जवाबदेहीक प्रति ईमानदार रहबाक प्रयास करैत छथि। कोनो दल अथवा राजनेता, मात्र एक चुनाव जीतलाक बादहु निरंकुश भ’ कार्य नहि क’ सकैत अछि। भिन्न – भिन्न प्रकारक चुनावक सामना करबाक चलते, राजनीतिक दलक जवाबदेही निरंतर बनल रहैत छैक। एहि स्थितिमे जौं, लोकसभा आ तमाम विधानसभा चुनाव, एक संग कराओल जाइत अछि त’ निरंकुशता बढ़बाक सम्भावना बनल रहैत अछि। देशक पैघ जनसंख्या आ सिमित संसाधनके देखैत सेहो ई चुनौतीपूर्ण प्रतीत भ’ रहल अछि। एहिसँ देशमे, राजनीतिक अस्थिरताक सम्भावना सेहो बनल रहि सकैत अछि।
तहिना एकर पक्षमे सेहो अनेको तर्क देल जा रहल अछि जेना, देशमे जतेक बेर चुनाव होइत अछि त’ आदर्श आचार संहिता लागू कएल जाइत अछि, मतलब साफ अछि कि, सरकार, कोनो नव परियोजनाक घोषणा नहिं क’ सकैत अछि। देशमे निरंतर चुनावसँ बेर – बेर आदर्श आचार संहिता लागू होइत अछि, जाहिसँ अनेको विकास कार्य प्रभावित सेहो होइत अछि। एक देश, एक चुनावके पक्षमे इहो कहल जाइत अछि कि, बेर – बेर चुनावसँ देशके भारी खर्च उठाबय पड़ैत छैक, मतलब सरकारी खजाना पर अतिरिक्त बोझ पड़ैत छैक। देशक चुनाव प्रकियामे शिक्षक संगहि आनो विभागक सरकारी कर्मचारीकेँ शामिल कराओल जाइत छैक।
मुदा, देशक वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य देखि ई कखनहुँ, उचित नहिं कि, एक देश एक चुनावके लागु कएल जाए। पहिने, देशक नागरिककेँ जागरूक करबाक बेगरता अछि। राजनीतिमे जे, नैतिक मूल्यक आभाव देखल जा रहल अछि, ओकरा पूर्ण करबाक दरकार अछि। राजनीतिमे जे अपराधीकरण बढ़ि रहल अछि, पहिने ओहि पर रोक लगएबाक आवश्यकता अछि। मात्र तखनहिं एक देश एक चुनाव, प्रभावी ढंगसँ लागु कराओल जा सकत।
मुदा, विचारार्थ विषयके अनुसार, एखन समितिक उद्देश्य, भारतक संविधान आ आन वैधानिक प्रावधानक अंतर्गत ‘‘वर्तमान ढांचाकेँ ध्यानमें रखैत लोकसभा, राज्य विधानसभा, नगर निकाय आ पंचायतक एक संग चुनाव करएबाक लेल अनुसंशा करब अछि। संगहि ओहि उद्देश्यकेँ लेल संविधान, जन प्रतिनिधित्व कानून, 1950, जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 आ नियम संगहि आनो आन कानूनमे विशेष संशोधनक अनुसंशा करब अछि जे, एक संग चुनाव करएबाक लेल आवश्यक होयत।