केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्टमे वक्फ संशोधन एक्टक मामिलामे अपन हलफनामा काल्हि दायर केलक। सरकार अपन हलफनामामे कहलक जे पिछला 100 वर्षसँ वक्फ बाय यूजरकेँ मात्र पंजीकरणक आधार पर मान्यता देल जा रहल अछि, मौखिक रूपसँ नहिं। ताहि लेल, संशोधन निरंतर अभ्यासक अनुरूप अछि। केंद्र सरकार कहलक जे सरकारी भूमि जानिबूझि कय वा गलत तरिकासँ वक्फ संपत्तिक रूपमे चिन्हित करब राजस्व रिकॉर्ड सही करबाक लेल अछि आ सरकारी भूमिकेँ ककरो धार्मिक समुदायक भूमि मानल नहिं जा सकैत अछि। केंद्र सरकार इहो कहलक जे अदालत संसद द्वारा बनल कानून पर पूरा तरहसँ रोक नहिं लगा सकैत अछि।
वक्फ संशोधन एक्ट केर समर्थनमे केन्द्र सरकार कहलक की अदालतमे एकरा लम्बित रहिते काल आंशिक वा पूर्ण रोक लगाबय लेल विरोध कएल गेल। केन्द्र कहलक की एहि कानूनमे स्थापित स्थिति अछि कि संवैधानिक न्यायालय ककरो वैधानिक प्रावधान पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूपसँ रोक नहि लगाएत आ मामिला पर अंतिम रूपसँ निर्णय लेत। संवैधानिक एकटा धारणा अछि, जे संसद द्वारा बनाओल गेल कानून लागू होइत अछि। अदालत द्वारा अंतरिम रोक शक्ति संतुलनक सिद्धांतक विरुद्ध अछि।
केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्टमे तर्क कएलक कि ई कानून संयुक्त संसदीय समितिक सिफारिश पर बनाओल गेल अछि, जे संसदक दुनू सदन सभमे व्यापक बहसक बाद तैयार कएल गेल विस्तृत रिपोर्ट अछि। जखनि कि सुप्रीम कोर्टकेँ निस्संदेह कानूनक संवैधानिकताक जाँच करय केर शक्ति अछि। अंतरिम स्तर पर, कानूनकेँ कोनो प्रावधानक संचालनकेँ खिलाफ निषेधाज्ञा प्रदान करब, प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष रूपमे, 3 (बी) (सी) संवैधानिकताक एही धारणाक उल्लंघन होयत, जे राज्यकेँ भिन्न शाखा सभक बीच शक्तिक नाजुक संतुलन केर पहलुमे सँ एक अछि। ई समझल जयबा योग्य अछि कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई कएल जा रहल याचिकामे ककरो व्यक्तिगत मामिलामे अन्यायक शिकायत नहि कएल गेल अछि, जे ककरो विशिष्ट मामिलामे अंतरिम आदेश द्वारा संरक्षित करबाक आवश्यकता होय आ कोनो तथ्य वा विशिष्ट विवरण नहि देल गेल अछि।
वक्फक बढ़ल सम्पत्ति पर केन्द्र सरकार दावा कयलक आ कहलक जे ई कानून निर्वाचित प्रतिनिधिक इच्छाकेँ प्रतिबिम्बित करैत अछि, कारण ई संसदमे पास भेल अछि। एकरा लेल विस्तृत विचार-विमर्श भेल। ई जानि हैरत भेल जे 2013 में लाएल संशोधनक बाद, औकाफ (औकाफ अरबी शब्द वक्फक बहुवचन छी) क्षेत्रमे 116% के वृद्धि भेल अछि। निजी सम्पत्तिक आ सरकारी सम्पत्तिक बीच अतिक्रमण करबा लेल वक्फ प्रावधानक दुरुपयोगक सूचना भेटल अछि। ई जानब वास्तवमे चौंकाबय वला अछि जे वर्ष 2013 मे लाएल संशोधनक बाद, औकाफ क्षेत्रमे 116% केर वृद्धि भेल अछि।
मुगल कालसँ पहिने, स्वतंत्रता-पूर्व काल आ स्वतंत्रता-पश्चात कालमे, भारतक कुल वक्फक संख्या 18,29,163.896 एकड़ छल। चौंकाबय वाला बात ई अछि जे 2013 केर बाद, वक्फ भूमिमे 20,92,072.536 एकड़क वृद्धि भेल अछि। ई लगातार अनुभव भेल अछि जे प्रत्येक वक्फ आ प्रत्येक वक्फ बोर्ड पारदर्शितासँ बचय केर उद्देश्यसँ विवरण सार्वजनिक डोमेनमे अपलोड नहि करैत अछि आ नियामक निरीक्षणसँ बचैत अछि। वक्फ परिषद आ औकाफ बोर्डक 22 सदस्यक मध्य अधिकतम दू गैर-मुस्लिम होयत। ई कदम समावेशिताकेँ प्रतिनिधित्व करैत अछि।
ई वक्फ प्रशासनमे हस्तक्षेप नहिं करैत अछि। ई कानून संविधानक मौलिक अधिकारकेँ उल्लंघन नहिं करैत अछि। ई संशोधन संवैधानिक रूपसँ वैध अछि। वक्फ मुसलमानकेँ कोनो धार्मिक संस्था नहि बल्कि वैधानिक निकाय अछि। वक्फ संशोधन कानूनक अनुसार मुतवल्लीकेँ काज धर्म निरपेक्ष होइत अछि, नहि कि धार्मिक। ई कानून निर्वाचित जन प्रतिनिधिक भावनाकेँ परिलक्षित करैत अछि। सांसद बहुमतसँ एकरा पारित कएलक अछि।
हलफनामे आगा कहल गेल अछि जे एहि बिल केर पारित करएसँ पहिने संयुक्त संसदीय समितिक 36 बैठक भेल आ 97 लाखसँ बेसी हितधारक सुझाव आ ज्ञापन देलनि। समिति देशक दस पैघ शहरक दौरा कएलक आ जनताक बीच जा कय हुनकर विचार जनलक। एहेन बहुत उदाहरण अछि जे देखबैत अछि कि कियैक ‘वक्फ बाय यूजर’ आ ‘वक्फ बोर्ड द्वारा कोनो भूमिकेँ वक्फक रूपमे घोषित करब’ सरकारी संपत्ति आ निजी संपत्तिक अतिक्रमणक एकटा सुरक्षित आश्रय सिद्ध भेल अछि।
संसद द्वारा पारित कानूनकेँ संवैधानिक रूपसँ वैध मानल जाइत अछि विशेष रूपसँ जखन ई संयुक्त संसदीय समितिक सिफारिश आ संसदमे व्यापक बहसक बाद बनल अछि। सुप्रीम कोर्टसँ अनुरोध कएल गेल जे ओ कोनो प्रावधान पर अंतरिम रोक नहि लगाबए। संशोधनसँ कोनो व्यक्तिकेँ वक्फ बनेबाक धार्मिक अधिकारमे हस्तक्षेप नहि होइत अछि, केवल प्रबंधन आ पारदर्शिता सुनिश्चित करबाक लेल कानूनमे बदलाव कएल गेल अछि।
केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्टमे वक्फ (संशोधन) अधिनियम, २०२५ केर संवैधानिक वैधताक खिलाफ याचिकाकेँ खारिज करय केर मांग कएलक। केंद्र सरकार अधिनियमक कोनो प्रावधान पर रोक लगयबाक विरोध कएलक आ कहलक जे कानूनमे ई स्थापित स्थिति अछि कि संवैधानिक न्यायालय कोनो वैधानिक प्रावधान पर प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष रूपसँ रोक नहि लगायत। केंद्र सरकार कहलक वक्फ-बाय-यूजरकेँ वैधानिक संरक्षणसँ वंचित करवाक बादो मुसलमान समुदाय कोनो व्यक्तिकेँ वक्फ बनयबसँ वंचित नहि कएल गेल। हलफनामेमे आगू कहल गेल अछि कि, “जानबूझिकय, उद्देश्यपूर्ण आ जानबूझिकय भ्रामक कहानी” बहुत शरारती तरीकासँ बनाओल गेल अछि, जाहिसँ ई धारणा बनैत अछि कि जे वक्फ (“वक्फ-बाय-यूजर” समेत) लग अपन दावाक समर्थनमे दस्तावेज नहि अछि, ओ प्रभावित होयत। ई नहि केवल असत्य आ झूठ अछि, बल्कि जानबूझि कय अदालतकेँ गुमराह कएल जा रहल अछि। धारा 3(1)(आर) क’ प्रावधान अनुसार ‘वक्फ-बाय-यूजर’ केर रूपमे संरक्षित होबय लेल संशोधनमे वा तकर पूर्वो कियो ट्रस्ट, डीड या दस्तावेजी सबूत पर जोर नहि देल गेल अछि। प्रावधानक तहत संरक्षित होबय लेल एकमात्र अनिवार्य आवश्यकता ई अछि जे एहि ‘वक्फ-बाय-यूजर’केँ 8 अप्रैल, 2025 धरि पंजीकृत होयब जरूरी अछि। कारण ई अछि जे पिछला 100 वर्षसँ वक्फकेँ नियंत्रित करै वाला कानूनक अनुसार पंजीकरण सदा अनिवार्य रहल अछि। केंद्र कहलक कि जे लोक जानबूझि कय ‘वक्फ-बाय-यूजर’क पंजीकृत कराबैसँ बचैत अछि, ओ प्रावधानक लाभक दावा नहि कय सकैत अछि।
सॉलिसिटर जनरल द्वारा सुप्रीम कोर्टमे देल गेल बयानक अनुसार, वक्फ निकाय सभमे अधिकतम केवल दू गैर-मुस्लिम सदस्यकेँ अनुमति देल जायत। केन्द्रक किछु अंतरिम स्थगनक खिलाफ तर्क देल गेल अछि कि विधायिका द्वारा बनायल कानूनकेँ संवैधानिक मानल जायत। कानूनेँ द्वारा स्थापित व्यवस्थाकेँ बदलनाई अनुचित होयत। ई प्रक्रिया, चाहे अंतरिम चरणमे होय वा अंतिम चरणमे, अनुमति योग्य नहि होएत। याचिकाकर्ता सभ द्वारा मांगल कोनो एहेन आदेश, संसद द्वारा विधिवत पारित संशोधन अधिनियमकेँ अंतरिम स्तर पर स्थगित करबाक समान भ’ जायत, जे एकटा अनुचित अभ्यास थिक। अंतरिम राहतक ककरो आधार नहि अछि आ एही संबंधमे याचिकाकर्ता सभक प्रार्थना सभ अस्वीकार कऽ देल जयबाक चाही।
प्रधान कानूनी मुद्दासभकेँ हटाकऽ, संशोधन अधिनियम ई पुष्टि करैत अछि जे वक्फ संपत्तिक पहचान, वर्गीकरण आ विनियमन कानूनी मानक आ न्यायिक निगरानीक अधीन होयबाक चाही। वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 केर विधान संरचना ई सुनिश्चित करैत अछि जे ककरो न्यायालय धरि पहुँचसँ वंचित नहि कएल जाए, आ संपत्ति अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता आ सार्वजनिक धर्मार्थसँ संबंधित निर्णय निष्पक्षता आ वैधताक सीमासभक भीतर कएल जाए। एही बदलावक माध्यमसँ संशोधन अधिनियम न्यायिक जवाबदेही, पारदर्शिता आ निष्पक्षता आनैत अछि। ई संशोधन अधिनियम स्पष्ट रूपसँ ठोस संवैधानिक आधार पर ठाढ़ अछि आ संविधानक भाग तीनक (III) कोनो प्रावधानक उल्लंघन नहि करैत अछि। ई अधिनियम मुस्लिम समुदायकेँ आवश्यक धार्मिक प्रथा सभक सम्मान करैत अछि आ आस्था आ उपासनासँ संबंधित मामिला सबके अछूत छोड़ैत अछि, जखनिकि संविधान द्वारा अनुमोदित वक्फ प्रबंधनकेँ धर्मनिरपेक्ष आ प्रशासनिक पहलू सभकेँ वैध रूपसँ विनियमित करैत अछि।
संशोधन ई पुष्टि करैत अछि जे वक्फ सम्पत्तिक पहिचान आ विनियमन कानूनी मानकक अधीन होयबाक चाहि। संशोधन ई सुनिश्चित करैत अछि जे कोनो व्यक्ति न्यायालय तक पहुंचसँ वंचित नहि होय। संशोधन ई सुनिश्चित करैत अछि जे सम्पत्ति अधिकार आ धार्मिक स्वतंत्रतासँ संबंधित निर्णय निष्पक्षता आ वैधताक सीमामे होय। संशोधन न्यायिक जवाबदेही लेने अछि। संशोधन ठोस संवैधानिक आधार पर ठाढ़ अछि। संशोधन अधिनियम आस्था आ उपासनाक मामिलाके अछूत छोड़ैत अछि। संशोधन मुस्लिम संप्रदायक आवश्यक धार्मिक प्रथाक सम्मान करैत अछि।
वक़्फ बाय यूजर सरकारी आ निजी संपत्ति हड़पबाक लेल सुरक्षित राह छल। 2016 सँ एखनि धरि वक्फक संपदामे 116 गुना वृध्धि भेल अछि। पिछला सौ सालसँ वक्फ बाय यूजर मौखिक नहि बल्कि रजिस्ट्रेशनक जरिए होइत रहल अछि। संशोधन क़ानून संविधानक अनुरूप अछि। संविधानक अनुच्छेदमे वर्णित मौलिक अधिकारक खिलाफ नहि अछि। नहि तँ एहिसँ ककरो अधिकारक हनन होइत अछि। अदालत संसद द्वारा बनाओल क़ानून पर रोक नहि लगा सकैत अछि।