विधि-व्यवस्था

सुप्रीम कोर्ट देशमे सड़क सुरक्षा बोर्डक काज पर जतेलक नाराजगी, कहलक केवल कागज तक सीमित

नई दिल्ली
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सुप्रीम कोर्ट देश भरिमे बढ़ैत सड़क दुर्घटनामे घायल होयबलाक समय पर इलाज आ मुआवजा भेटबाक घटैत संख्या पर नाराजगी जतबैत कहलक जे राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड केवल कागज तक सीमित रहि गेल अछि। कोर्ट कहलक जे अखनि धरि एकर अध्यक्ष आ सदस्यक’ नियुक्ति सेहो नहि भेल अछि। सरकारक उदासीनताकेँ ल’ क’ दोसर मुद्दा ई अछि जे बोर्डक’ सिफारिश सभ केर लागू करबाक प्रक्रिया की हेतै ! ई अखन धरि स्पष्ट नहि अछि।

कोर्टक एही टिप्पणी पर सफाई देत अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल कहलनि जे बोर्डक ई पदसभकेँ भरबाक लेल विज्ञापन 2019 मे जारी कएल गेल छल। नियुक्तिकेँ मंत्रिमंडलीय नियुक्ति समिति द्वारा अनुमोदित कएल जएबाक चाही। मुदा अखन धरि उपयुक्त उम्मीदवार नहि भेटल अछि।

हिट एंड रन दुर्घटनासभ पर जनहित याचिका पर सुनवाई करैत सरकार सभक रवैयासँ नाराज सुप्रीम कोर्ट कहलक की ई एकटा महत्वपूर्ण मुद्दा अछि, जे याचिकाकर्ता सभ उठौलक अछि। देशमे विभिन्न कारणसभसँ सड़क दुर्घटनासभ बढ़ि रहल अछि। सड़क दुर्घटना पीड़ितसभक तुरंत सहायता नहि भेटैत अछि। एहेन मामिला सेहो अछि, जतय पीड़ित घायल नहि होइत अछि मुदा वाहनमे फंसि जाइत अछि। याचिकाकर्ता केर मांग अछि जे एहेन नोटिफिकेशन जारी कैल जाए जे दुर्घटनाक स्थितिमे त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करय।

सरकारक वकील कहलक जे हस्तक्षेप याचिकामे एकर मांग ई अछि जे हिट एंड रन दुर्घटनासभमे जिम्मेदारी निर्धारण हेतु एकटा प्रोटोकॉल बनाओल जाए। ई अत्यंत कठिन अछि, कारण अनेक मामिलामें ई पता लगायब कठिन होइत अछि जे वास्तव मे की भेल। आगू सरकारक वकील कहलनि जे उत्तर प्रदेशमे एकटा विसंगति अछि जे मोटर वाहन अधिनियमक मामिला 10 वर्षक बाद समाप्त भऽ जाइत अछि। एहिसँ ई स्थिति उत्पन्न होइत अछि जे जँ कोनो व्यक्ति जुर्माना भरैत अछि, तऽ ओकरा धनक हानि होइत अछि, मुदा जँ ओ मामिला लंबित रखैत अछि तँ अंततः मामिला समाप्त भऽ जाइत अछि। ई एकटा अत्यंत विचित्र स्थिति अछि। एहेन मामिला जमा रहैत अछि आ फेर कहल जाइत अछि जे बहुत अधिक मामिला अछि, जुर्माना मात्र 500 या 1000 रुपैया अछि, ताहि लेल मामिला बंद कयल जाय।

सुप्रीम कोर्ट आदेश देलक जे हम उत्तर प्रदेशकेँ एहि अंतरिम आवेदन पर जवाब दाखिल करबाक निर्देश दैत छी। प्रथम दृष्टिमे एहेन लगैत अछि जे उत्तर प्रदेश अधिनियमक प्रभाव ई अछि जे जँ कियो मोटर वाहन अधिनियमक अंतर्गत अपराध कयने अछि आ ओ जुर्माना नहि भरैत अछि, तँ ओकर मामिला स्वचालित रूपसँ समाप्त भऽ जाइत अछि। एहिसँ एकटा विकृति उत्पन्न होइत अछि जाहिमे अपराधी बिना सजाक छूटि जाइत अछि।

याचिकाकर्ताक अनुसार, एकरा लेल अलग-अलग प्रकारक प्रोटोकॉल होएबाक चाही। सुप्रीम कोर्ट केर निर्देश अछि जे सभ राज्य आ केन्द्र शासित प्रदेशकेँ निर्देशित कएल जाइत अछि जे ओ सभ त्वरित प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल विकसित करथि, ताकि सड़क दुर्घटना पीड़ित सभकेँ तात्कालिक सहायता भेटि सकय। सुप्रीम कोर्ट एहि कार्य लेल सभ राज्य/केन्द्र शासित प्रदेशकेँ ६ मासक समय देलक अछि, ताकि ओ सभ एकटा प्रोटोकॉल बना सकय आ अपन प्रतिक्रिया दर्ज कए सकथि।

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण कोर्टकेँ बतौलक अछि जे ओ एहि पहलू पर कार्य कय रहल अछि आ एकटा नोट दाखिल कएल गेल अछि, जे हाइवे उपयोगकर्ता सुरक्षा पर आधारित अछि। एकर बाद कोर्ट भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरणकेँ निर्देश देलक जे ओ सड़क सुरक्षा पर आधारित एहि नोटकेँ सभ राज्यक परिवहन सचिवकेँ भेजय। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरणकेँ 6 मासक भीतर एकटा शपथ-पत्र दाखिल करऽ पड़त, जाहिमे ओ प्रोटोकॉलक वास्तविक क्रियान्वयनक जानकारी देत, जे ओ तैयार कएने अछि।

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