आबयवाला १४ जनवरीकेँ तिला संक्रांति अछि। एहि संबंधमे मैपुप्र समदियाक जिज्ञासा पर पं. अजय नाथ झा शास्त्री महत्वपूर्ण जानकारी देलनि अछि।
शास्त्री कहैत छथि, “अगहनमे अन्न भंडारण आ विवाहादि शुभ काजक बाद एक महिना अर्थात पूरा पुस महिना गृहस्थक लेल एक तरहसँ छुट्टीक समय होइत अछि। पुस मास खरमास कहाइत छैक आ प्रायः शुभ काज वर्जित रहैत अछि एहि मासमे। तऽ प्रतीक्षा रहैत छैक तिला संक्रांतिक। तिला संक्रांतिक प्रतिक्षाक मुख्य कारण जे एहि दिनसँ शुद्ध शुरु भऽ जाइत अछि, माघ स्नान एवं प्रयागमे कल्पवास सेहो शुरू होइत अछि, धिया-पुताकेँ पावनिक चुल्लौड़-तिलबाक प्रतीक्षा रहैत छैक, दही-चुरा आ संगहिसंग खिच्चड़िक भोजन सेहो मिथिलामे खुब प्रशस्त अछि, मुदा सभसँ पैघ बाद जे अगहन-पुसक भयंकर शीतलहरीसँ छुटकाराक आस एहि दिनसँ मान्यता अछि जे शुरू होइत अछि, धीरे-धीरे ठंढ़ कम होबय लगैत छैक, यद्यपि प्रायः भरि माघ जाड़े केर समय होइत छैक, मुदा जाड़ कम होबय केर आस तिला संक्रांति दिनसँ लोकक मोनकेँ भरोस दैत छैक। दिन यद्यपि २२ दिसंबरक उपरांते पैघ होबय लागैत अछि, मुदा लोक मान्यतामे कहल जाइत छैक जे तिला संक्रांति दिनसँ एक-एक तिल दिन पैघ होबय लगैत अछि आ रात्रि छोट। पुनः आगू लागले वसंत पंचमी, वसंत ऋतु आदिक समय रहैत छैक, कहय केर अर्थ जे खरमासक बाद तिला संक्रांतिसँ नव ऊर्जाक संचार होइत अछि।”
आगू जानकारी दैत पं. झा कहैत छथि,”एहि बेर १४ जनवरी २०२५ केँ दिनक २०:२४ घटी पर सूर्यक मकरमे प्रवेश भऽ रहल अछि, फलतः दिनक ०२:५५ बजेसँ सूर्यास्त धरि दानादिक हेतु पुण्यकाल रहत।”
अपन बात केर आगा बढ़ाबैत शास्त्री कहलनि, ‘तिला संक्रांति विशेष रुपसँ स्नान लेल जानल जाइत अछि। एहि दिन प्रातः स्नान अत्यधिक पुण्यप्रद कहल गेल अछि। संभव होय तऽ नदी, पोखरि वा घरे पर गंगादि तीर्थक स्मरण करैत प्रातः स्नान करी।”
षट्तिला प्रयोगक विशेष जानकारी दैत शास्त्री कहलनि, “तिला संक्रांतिमे तिलक अत्यधिक महत्व अछि, फलतः ई मकर संक्रांति मिथिलामे तिला संक्रांतिक नामसँ जानल जाइत अछि। एहि दिन छः प्रकारसँ तिलक प्रयोग करी, एहेन विधान शास्त्रमे कहल गेल अछि जे अत्यंत पुण्यप्रद अछि, एकरा षट्तिला विधान कहल गेल छैक।
षट् तिला विधान एहि प्रकारें अछि :-
०१) तिलोदक स्नान : जलमे तिल मिलाकय स्नान करी।
०२) तिलक उबटन : तिलक उबटन शरीरमे लगा कऽ स्नान करी।
०३) तिल होम : तिलक होम (हवन) करी।
०४) तिल तर्पण : तिलसँ तर्पण करी
०५) तिल भक्षण : तिलक भक्षण करी, अर्थात तिलबा, तिलक प्रसाद आदि खाय।
०६) तिलदान : तिलक दान करी।
एहि प्रकारसँ तिलासंक्राति दिन षट्तिला प्रयोग महापुण्यप्रद होइत अछि।”
प्रातःस्नान मंत्र :
“मकरस्थे रवौ माघे गोविन्दाच्युत माधव।
प्रात स्नानेन मे देव यथोक्तफलदो भव।।
दुःखदारिद्र्यनाशाय श्रीविष्णोस्तोषणाय च।
प्रातःस्नान करोम्यद्य माघे पापविनाशनम्।।”
एहि साक्षात्कारक विराम दैत पं. अजय नाथ झा शास्त्री कहलनि, “एहि बेर मंगलकेँ तिला संक्रांति अछि, फलतः पुनः चर्चा होएत जे मंगलकेँ खिच्चड़ि खाय वा नहिं, तऽ निश्चित खाय, ई सालाना पावनि अछि तें एहिमे दिनसँ अधिक पावनिक विधिक महत्व छैक, पारंपरिक विधान एहि दिन खिच्चड़ि खायब अछि तऽ विशेष दिन निमित्त एतय ‘मंगलकेँ खिच्चड़ि नहिं खाय’ ई बात कमसँ कम एहि मंगलमे गौण भऽ जाएत, नहिं धरल जाएत, अर्थात् खिच्चड़ि खा सकैत छी, कोनो शंकाक आवश्यकता नहिं।