संपादकीय

नेपालक मिथिला पर गर्व करु, एतय तऽ बिहार लगभग निगलि गेल मिथिला-मैथिलीकेँ

संपादकीय
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सुगौली संधिसँ मिथिला क्षेत्र दू भागमे बँटि गेल, किछु नेपालमे गेल आ किछु भारतमे। ओना तऽ ई ठिक नहिं भेलै मुदा आब लगैत अछि जे ठिके भेलै। कारण नेपालक मिथिला क्षेत्रक मिथिलावासी अपन अस्तित्व संगहि मैथिली भाषाकेँ आधिकारिक आ व्यवहारिक रूपसँ बचा कऽ रखलक आ ओतय स्थाई रुपसँ मिथिला विद्यमान अछि आ रहत। यद्यपि नाम मधेश कऽ देल गेल अछि, मुदा आधिकारिक रुपसँ मैथिलीकेँ राजकीय भाषा बनाओल जयबाक कारण मिथिला क्षेत्रक लोकमे कोनो अन्य भाषाकेँ लऽ कऽ दबाब नहिं छनि, अर्थात भारतमे जेना महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, बंगाल, आसाम, दक्षिणक प्रदेश सभ अछि अपन भाषा अपन संस्कृतिकेँ अपनेने अपन प्राथमिक पहिचान बनेने तहिना नेपालीय मिथिला क्षेत्रक मिथिलावासीक स्थिति अछि। आब भारतक मिथिलावासीक आस सेहो वैऽह सभ छथि जे मिथिला-मैथिलीक अस्तित्व सुरक्षित अछि। ओहुना जनकपुर नेपालेमे अछि, जनकलली जनकेपुरसँ, की करबै ?

भारतोमे मिथिला-मैथिली अपन जे मानक बना लेने अछि ताहि रुपमे रहतै, गाम-घरमे रहतै व्यवहारमे, मुदा हाट-बाजारमे निकलिते ओ भावना जे मैथिली बाजब तऽ देहाती बुझत से बनले रहतै, अर्थात स्वाभिमान नहिं अओतैक। तहिना पोथी लेखन, कवि सम्मेलन, संगठनक सालाना समारोह आ नेता सभक अभिनंदन करब एवं मैथिली पर होइत प्रहार पर अपन विरोध जता खानापूर्ति करब, कियो आगू बढ़ि वास्तविक रुपसँ अस्तित्व बचा नाम नहिं कमा लिअ ताहि लेल तकरा रोकय हेतु सहजहिं उपजयवाला आंतरिक एकतासँ सभ मिलि तकरा समाप्त कय चैनक सांस लेब आदि चलैत रहत।

नगर-महानगरमे विशेष रुपसँ मिथिला-मैथिलीक नामसँ मनोरंजन आ जाहि रुपेँ अपन-अपन काज बनय ताहि ढंगसँ ‘मिथिला-मैथिलीक’ नामक उपयोग कय लेब आदि बुधियारी सभ चलैत रहतै।

बिहार सरकार कहियो मिथिला क्षेत्रक विद्यालयमे प्राथमिक वर्गक पढ़ौनीक माध्यम मैथिली नहिं होबय देतै कारण तखनि तऽ मैथिली बच्चेमे बसि जयतैक बच्चा सभक मस्तिष्कमे आ ओ हीन भावना जे मैथिली मात्र घरे तकक भाषा अछि, बाहर एकर मोजर नहिं छै से नहिं पनपतै, ताहि खातिर केंद्र कोनो तरहक शिक्षा नीति जारी करय, स्थानीय भाषाक अनिवार्यता लेल किछु नियम निकालि लय, गृहमंत्रीसँ प्रधानमंत्री धरि स्थानीय भाषाक लेल विभिन्न मंचसँ किछु बाजैथ, बिहारक तानाशाह सरकारकेँ कोनो फर्क नहिं पड़तै। ओ कोनो हालातमे मिथिला क्षेत्रीय विद्यालयमे प्राथमिक वर्गक पढ़ौनीक माध्यम मैथिली नहिं होबय देत, पाठ्य-पुस्तक ओ शिक्षक आदि उपलब्ध करा एकरा अनिवार्य रुपसँ चालू नहिं करत।

आ मिथिला क्षेत्रीय दरवारी सभ जे बिहार सरकारमे कहय लेल बड़का-बड़का ओहदा लेने अछि ओ सभ एही मैथिली आ मिथिलाकेँ एहिना समाप्त करय केर शर्त पर ओहदा पओने अछि तऽ ओ सभ उपर-झापड़ मिथिला-मैथिलीक आडंबरसँ अधिक किछु नहिं करत, अधिकतर संगठन सभ जे मिथिला-मैथिलीक ठिकेदारी लेने अछि आ मिथिलावासी तिनका भरोसे रहैत छथि जे ई सभ रक्षक छथि तऽ तिनका सभकेँ सेहो बस ओही दरवारी नेता-मंत्री सभक कृपा चाहियैन आ मिलि-जुलि आडंबर पसारने आ मिथिला-मैथिलीक रक्षक बनि भक्षण करैत रहब एवं मिथिलावासीकेँ भरमेने रहब ताहिसँ अधिक नहिं। सभ अपन-अपन लक्ष्य निर्धारित कय लेने अछि जे मिथिला-मैथिलीक नामसँ पहुँच बना अपन-अपन काज सुतारैत रही।

तहिना मैथिली लेल दोसर सशक्त साधन छैक एकटा मैथिली अखबार घर-घर पहुँचय , तऽ सेहो नहिं होबय देत ई सरकार, एकरा कोनो संरक्षण प्रदान नहिं करत। एकरा कोनो केबिनेट पास नहिं कऽ सकैत अछि, कारण जँ ईहो भऽ गेल आ घर-घर मैथिली अखबार मिथिलावासीक हिस्सक बनि गेल तऽ सबटा कयल-धयल पर पानि फिरि जयतैक सरकारकेँ, तऽ इहो नहिं होबय देत कहियो। आ मिथिलावासीक तऽ बाते छोड़ू, ई बुझय लेल ओहेन स्वाभिमान चाही, आर्थिक समर्थ भेने की, लेबल ताहि स्तरक आ स्वाभिमान ताहि स्तरक होइ तखनि ने।

आब गत्रमे ओ लाजवाला मनुक्ख अपवादे जकर मोनमे ई भाव रहय जे मैथिली ओ मिथिलाक नामसँ जानल जाए ताकि तेहेन युक्ति करी। पुश्त-दर-पुश्त चढ़ल गुलामी ओ दरवारी बनि मक्खन लूटयवाला आदतिक मैल जे मानसिक बिमारी बनि गेल छैक, तकरा धोअब आ उपचार एतय संभव नहिं बुझाइत अछि। एतय केर लोकमे स्वामित्व वाला भाव जागिये नहिं सकैत अछि, बस जाहि रुपें भोगक जोगार लागि जाए ताहीमे तिरपित। अर्थात क्षेत्रीय मर्यादा धरि अपन औकात बनाबय केर सोच केहेन-केहेन अरबपति खरबपति आ विद्वान ओ कथित बुद्धिजीवी सभमे पर्यंत एतय नहिं अछि। अपन-अपन औकातक सीमा होइत छैक जे स्वाभिमानसँ बनैत छैक तऽ ओ सीमा निर्धारणवाला वीर आब भारतक मिथिलामे नहिं बाँचल अछि, तें बस ‘मिथिला-मैथिली’क नामक प्रयोग करैत एतय आनंद लैत रहू, जहिया धरि जतबा-ततबा बाँचैत बिहारक रहमो-करम पर मैथिली वा मिथिला रहय से रहय। बस आनन्द लूटैत रही नाँगड़ि डोलाबैत, आनंदे आनंद…

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