उच्चतम न्यायालय बृहस्पतिकेँ एकटा महत्वपूर्ण फैसलामे कहलक मनी लॉन्ड्रिंग मामिलामे प्रवर्तन निदेशालयक शिकायत पर विशेष कोर्टकेँ संज्ञानमे लेलाक बाद जांच एजेंसी कोनो अभियुक्तकेँ गिरफ्तार नहिं कऽ सकैत अछि।
न्यायमूर्ति अभय एस ओकाक अध्यक्षता वला पीठ कहलक जे जँ एहन मामिलामे आगू जाँचक लेल अभियुक्तक हिरासतक आवश्यकता अछि तँ ईडीकेँ विशेष अदालतमे आवेदन दाखिल करय पड़त। उज्जल भुयान सेहो बेंचमे शामिल छलथि।
शीर्ष अदालत कहलक, “आरोपीकेँ सुनलाक बाद विशेष अदालत अनिवार्य रूपसँ कारण संक्षेपमे बताकऽ आवेदन पर फैसला करत। सुनवाईक बाद अदालत तखन रिमांडक अनुमति देत, जखन ओ संतुष्ट होयत जे हिरासतमे पूछताछ आवश्यक अछि।”
शीर्ष अदालत इहो कहलक जे ईडीकेँ मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए), २००२ केर धारा १९ केर शर्तकेँ पूरा करय पड़त, जाहिसँ एकटा एहन व्यक्तिकेँ गिरफ्तार कयल जा सकय जकर नाम शिकायतमे अभियुक्तक रूपमे नहिं देल गेल अछि। एकर अतिरिक्त कोनो व्यक्ति जकरा धनशोधन मामिलाक जाञ्चक दौरान गिरफ्तार नहिं कयल गेल अछि मुदा धनशोधन रोकथाम अधिनियमक अन्तर्गत जारी सम्मन पर विशेष अदालतमे उपस्थित होइत अछि, ओकरा जमानत लेल सख्त दोहरा शर्त रखबाक आवश्यकता नहिं होयत।
पीएमएलएक धारा ४५ केर तहत जमानत पाबय लेल दोहरा शर्त छैक। पहिल शर्त ई अछि जे अदालतकेँ विश्वास होयत जे आरोपी दोषी नहिं अछि। दोसर शर्त ई अछि जे अदालतकेँ विश्वास अछि जे आरोपी जमानत पर कोनो अपराध नहिं करत।
न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन आ एस.के. कौलक सर्वोच्च न्यायालयक पीठ नवम्बर २०१७ मे पीएमएलएक धारा ४५(१) केँ मनमाना मानैत खारिज कऽ देने छल, जाहिमे जमानत लेल दूटा अतिरिक्त शर्त जोड़ल गेल छल।
ओना विजय मदनलाल चौधरी मामिलामे न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी आ सी.टी. रविकुमारक तीन न्यायाधीशक पीठ जुलाई २०२२ मे ओहि फैसलाकेँ पलटि देलक आ पीएमएलए, २००२मे २०१९ केर संशोधनकेँ बरकरार रखलक। एकर बाद मनी लॉन्ड्रिंग मामिलामे जमानत भेटब लगभग असंभव भऽ गेल किएक तँ अभियुक्तकेँ दोषी साबित करबाक लेल ईडी जिम्मेदार होयबाक बदला, स्वयँकेँ निरपराध सिद्ध करय केर जिम्मेदारी अपराधीए पर डालि देल गेल।
भारतक तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमनाक अध्यक्षतावाला खंडपीठ दूटा प्रमुख कारणसँ पीएमएलएक प्रावधानक समीक्षा करबा लेल सहमत भेल छल – जे ओ गिरफ्तारीक समय अभियुक्तकेँ ईसीआईआर (साधारण मामलामे एफ.आई.आर. जकाँ) प्रदान नहिं करैत अछि, आ ई आरोप सिद्ध होयबा धरि अनुमानित निर्दोषताक सिद्धान्तसँ समझौता करैत अछि।
पिछला साल नवंबरमे जस्टिस एस.के. कौलक नेतृत्ववला पीठ ईडीक शक्तिकेँ चुनौती देबयवला याचिकासभकेँ हुनकर सेवानिवृत्तिक किछु दिन पहिने भारतक प्रधान न्यायाधीशक समक्ष रखबाक आदेश देलक जाहिसँ ओ सुनवाई लेल नव पीठकेँ जिम्मेदारी सौंपि सकथि।