संपादकीय

छठि महापर्वकेँ, राष्ट्रीय पर्व घोषित कएल जाए

धर्मेन्द्र कुमार झा (प्रबंध संपादक)
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ओना त’ प्रकृति संरक्षणके लेल अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) सनक अंतरराष्ट्रीय संगठन मौजूद अछि, जे प्रकृति संरक्षण आ प्राकृतिक संसाधनक सतत उपयोगके क्षेत्रमे कार्य करैत अछि। वर्ष 1948 मे स्थापित आईयूसीएन, प्रकृतिक संरक्षणके लेल दुनिया भरिक समाजके प्रभावित, प्रोत्साहित संगहि सहायता करैत आबि रहल अछि। हर वर्ष 28 जुलाईके दुनिया भरिमे लोक, विश्व प्रकृति संरक्षण दिवसके रूपमे मनबैत अछि। विश्व प्रकृति संरक्षणमे सभक सहयोग आवश्यक मानल गेल अछि। किएक त’ संरक्षण आ स्थिरताके प्रति उदासीन रहि, पृथ्वीके स्वस्थ आ सुरक्षित राखब असंभव अछि। तैं सभक सहयोग आवश्यक अछि, सहयोग चाहे छोट होय वा पैघ, चाहे जाहि स्तर पर होय मुदा, पृथ्वीक प्राकृतिक विरासतके संरक्षित करब संगहि सभक लेल एकटा स्थायी भविष्य सुनिश्चित करबाक लेल महत्वपूर्ण अछि। दुनिया भरिक जानकार आ शोधार्थी लोकनि, एहि गप्प पर सहमत होइत छथि कि, धरती पर व्याप्त बहुमूल्य संसाधनक संरक्षण आ पोषणक एकटा एहेन संस्कृतिके चलनमे आनल जाए जे, प्रकृतिके अंतर्निहित मूल्यक सम्मान करैत होय। प्रकृति संरक्षण पर दुनिया भरिक अनेको वैश्विक संस्था द्वारा, समय – समय पर सराहनीय डेग उठाओल जाइत अछि। संयुक्त राष्ट्र संघ, यूरोपीय संघ, ब्रिक्स, क्वाड, अथवा एससीओ, हर संस्थामे जहन विश्वक शीर्षस्थ नेता एक स्थान पर जुटैत छथि त’ विचारक सूचीमे जलवायु परिवर्तन, प्रकृति संरक्षण आ ग्लोबल वार्मिंग सनक विषयक समावेश रहिते छैक। एकटा निश्चित समयांतराल पर एहिसँ संबंधित विषय पर चर्चा – परिचर्चा होइते अछि। मुदा विकासक रथ पर सवार दुनिया, आबयवला गंभीर संकट पर आँखि मुनने बढ़ल जा रहल अछि। विकास आ जीडीपी सनक शब्द, प्रकृति संरक्षण सनक महत्वपूर्ण विषय पर हावी भ’ जाइत अछि। प्रकृतिसँ प्रेम करबाक लेल लोक स्वयं कोना आगू आओत, एहि दिशामे विचार करब आब आवश्यक अछि। संस्था – संगठन आ सरकार त’ अप्पन कार्य करिते अछि, मुदा व्यक्ति आ समाज जौं सेहो अपना स्तर सँ एहि दिशामे कार्य करए त’ परिणाम निश्चित रूपसँ सुखद होयत। सामाजिक सौहार्द आ प्रकृति संरक्षणक उपदेश दैत एकटा पाबनि अछि छठि, जे आब बिहार, उत्तरप्रदेश आ नेपालक संग – संग दुनिया भरिमे, आस्थाक संग मनाओल जाइत अछि। ओना त’ मिथिलाक हर पाबनि तिहारक पाछा पौराणिक महत्व रहैत छैक, मुदा छठि पूजाक पौराणिक महत्वके संग – संग, वैज्ञानिक महत्व सेहो छैक। छठि पूजाक माध्यमे हमरा सभ, स्वच्छता आ प्रकृति संरक्षणक सन्देश दुनियाके दैत आबि रहल छी। मैथिल कतौह रहथि मुदा, अप्पन परंपरा आ संस्कृतिक संरक्षण लेल सदैव तत्पर रहैत छथि। छठि महापर्वके ल’ क’ लोकक उत्साह चरम पर रहैत अछि। शिक्षा – दीक्षा, नौकरी आ रोजी – रोजगार लेल लोक, कतौह रहए मुदा, इच्छा रहैत छैक कि, छठि पाबनि, अप्पन डीह पर अप्पन लोकक संग मनाबी। आस्थाक संग – संग, शुद्धता आ पवित्रता एहि पाबनिक प्रमुख विशेषता अछि। छठि व्रतीक लेल ई महापर्व, कोनो घोर तपस्यासँ कम नहि होइत छैक। छठि महापर्वक वर्णन, अनेको पुराण आ उपनिषदमे भेटैत अछि, अनेको मान्यता छैक, कथा छैक, मुदा परंपरा एहेन अछि कि, एहि पाबनिक माध्यमे, समाजके एकसूत्रमे बान्हबाक प्रयास कएल जाइत रहल अछि। एहि पाबनिमे किछु कृत्रिम नहि होइत अछि, प्रकृतिक उपासना लेल हर सामग्री आ पद्धति, प्राकृतिक आ पारम्परिक रहैत अछि। जल, जलाशय, आ तमाम विलुप्त होइत वनस्पति, संगहि जीव – जंतुक संरक्षणक उपाय एहि पाबनिक माध्यमे बताओल जाइत अछि। एहि कठिन पूजामे, ओना त’ कोनो विशेष विधान नहि छैक, लोक स्वयं करैत अछि, मुदा पूजा पद्धति आ नियम निष्ठा अति महत्वपूर्ण मानल जाइत अछि। उगैत सूर्यक आराधना त’ संसार करैत अछि, मुदा छठि पूजाक माध्यमे, अस्त होइत सूर्यक आराधना सेहो कएल जाइत अछि। एहि महापर्वक संरचना पर जौं गौर करी त’ ज्ञात होइत अछि कि, पूजामे उपयोगी सामग्री सेहो, समाजके एकसूत्रमे बन्हबाक लेल पर्याप्त अछि। पूजाक उपयोग में आबयवला तमाम सामग्री, एक तरहेँ कहल जाए त’ प्राकृतिक रूपसँ शुद्ध रहैत अछि। एहेन – एहेन सामग्रीक उपयोग कएल जाइत अछि जे लगभग आब विलुप्तिक कगार पर अछि। पूजन सामग्रीक सूची देखला पर ज्ञात होइत अछि कि, एहिमें कोनो एहेन वास्तु नहि अछि जे प्रकृति लेल घातक वा नुकसानदेह सिद्ध होय। माटिक घैल (कुरा), सरबा, फल, फूल संगहि तमाम वनस्पतिक संग, घरमे बनल प्रसाद, कहबाक तात्पर्य ई, जे पूजा में हर सामग्री शुद्ध आ प्राकृतिक चढ़ाओल जाइत अछि। प्रकृति संरक्षणक लेल लोककेँ प्रेरित करैत ई छठि महापर्व आब, दुनिया भरिमे पूर्ण आस्था आ शुद्धताक संग मनाओल जाइत अछि। पहिने छठिव्रती स्वयंकेँ, तदुपरांत घर – आंगन आ आसपासक परिसर, अंतमे पूजा स्थल (छठि घाट) के स्वच्छ करैत छथि। मुख्य रूपसँ, स्वच्छता आ प्रकृति संरक्षण एहि महापर्वक आधार अछि। गाम – घरमे त’ एखनहुँ लोक नदी, पोखरि आ जलाशयमे छठिक अर्घ्य अर्पण करैत छथि, मुदा शहर आ महानगरमे एतेक सहूलियत, छठि व्रतीकेँ नसीब नहि होइत छैन्ह। आधुनिकता आ विकासक दौरमे लोक स्वार्थी बनि, तमाम जल स्रोतक भण्डारके समाप्त करबा पर उतारू अछि। शहर आ महानगरमे पोखरि त’ आब नामहि लेल बाँचल अछि, आ जे नदी, पहिने नदी छल, से आब नगर निगमक अकर्मण्यताक चलते नाला बनल अछि। जल आ जलाशयक महत्व लोक, धीरे – धीरे बिसैर रहल अछि जे समाज आ जीवन लेल अत्यधिक नुकसानदेह सिद्ध भ’ रहल अछि। आब पाबनि त’ पाबनि छैक, ताहूमे छठि पाबनि, त’ लोकके जतय जे सुविधा भेटैत छैक, ओतहि छठिक आराधना करैत अछि। हँ, एहि छठि पूजामे सामाजिक संस्थाक भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण भ’ जाइत अछि, जे महानगरक हर क्षेत्रमे कृत्रिम जलाशयक निर्माण करा, छठि व्रती लेल तमाम तरहक सुविधाक व्यवस्था करैत छथि। दिल्ली होय अथवा मुंबई, हर ठाम मैथिल समाजक अनेको नामी – गिरामी संस्था मौजूद छैक, आ ओ तमाम संस्था एहि पूजाक सार्वजनिक आयोजनमे बढ़ि – चढ़ि क’ अप्पन सहभागिता सुनिश्चित करैत अछि । छठि व्रतीक लेल ठहरबाक व्यवस्था संगहि श्रद्धालु लोकनि लेल भजन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमक आयोजन सेहो कएल जाइत अछि। जहने मनुष्य आधुनिकताक दौरमे शामिल होयत त’ सबसँ पहिने नियम आ निष्ठा खंडित होइत अछि, से एहि महापर्वमे सेहो देखार भ’ रहल अछि। भक्ति संगीतक नाम पर लोकगीत आ तत्पश्चात झमकौआ आ अश्लील गीत आ नाचक सेहो सफल आयोजन कएल जाइत अछि। एहि मामिलामे की गाम आ की शहर, हर ठाम एक्कहि भाव आ एक्कहि दृश्य ! छठि घाटक मंच आब, धीरे – धीरे राजनीतिक मंच बनि रहल अछि। सोझ भाषामे कहल जाए त’ नेता सभकेँ भीड़ चाही जतय ओ, अप्पन बात एक्कहि संग राखि सकैथ, से एहि पाबनि तिहारक चलते उपलब्ध भ’ रहल अछि। छठि पूजाक मामिलामे, दिल्लीमे त’ किछु बेसिए राजनीति होइत अछि। एक मास पहिनहिसँ दिल्लीमे भाजपा आ आपक मध्य वाक्युद्ध शुरू भ’ जाइत अछि, तमाम राजनेता छठि पूजाक माध्यमे मतदातावर्गमे अप्पन स्थान बनाबय चाहैत छथि। त’ हर वर्षक भांति एहि वर्ष सेहो छठि महापर्व, राजनीतिक अखाड़ा सिद्ध भेल। मुदा, नेता राजनीति करए अथवा किछु आओर, मुदा लोककेँ त’ सुविधा चाही, जे भेटि रहल छैक, बस्स आर की चाही ? त’ नेता अप्पन राजनीति करैत छथि आ लोक अप्पन छठि पूजा करैत अछि। गाम घरक जे होय मुदा, शहर आ महानगरमे त’ इएह सभ संकट मोचक छथि, जे कहूना कृत्रिम जलाशयक निर्माण क’ सार्वजनिक छठि पूजाक आयोजन करैत छथि। आब एहि ठाम प्रश्न ई उठैत अछि कि, एहि कृत्रिम जलाशयके देखि प्रसन्नता व्यक्त कएल जाए आ कि दुःख ? कारण, गाम – गाम आ शहर – शहरमे पर्याप्त संख्यामे पोखरि – जलाशय आ नदी उपलब्ध छलैक। पोखरि आ जलाशय त’ भूमाफियाक भेंट चढ़ल आ नदी, नगर निगमक अकर्मण्यताक चलते नाला बनि रहि गेल। दिल्लीक यमुना नदीमे हानिकारक रासायनिक झाग त’ बेसीकाल चर्चामे रहैत अछि। ई हाल मात्र यमुने नदीक नहि छैक, एहि तरहक तमाम नदीक इएह हाल छैक। सरकार द्वारा अनेको योजना आनल जाइत अछि, मुदा परिणाम, वएह ढाकक तीन पात ! केंद्र सरकार नदी सफाई योजनाक प्रति गंभीर प्रतीत भ’ रहल अछि, एहि के अंतर्गत गंगा सफाईके कार्य शुरू कएल गेल, सुनलौंह जे यमुना सफाई लेल सेहो दिल्ली सरकार राशि देने छल, मुदा जे परिणाम चाही से नहि भेटि रहल अछि। भरिसक संबंधित विभाग आ अधिकारी एहि विषयके गंभीरतासँ नहि ल’ रहल छथि अथवा एकर महत्वसँ अनभिज्ञ छथि। जल संचय आ जल भण्डारणक उचित व्यवस्था नहि भेल त’ ई निकट भविष्यमे स्थिति, अत्यधिक हानिकारक सिद्ध होयत। समूचा भारतवर्ष अगिला किछु वर्षमे भारी जल संकटक सामना करत, ई अनेको शोध रिपोर्टसँ तय अछि। नीति आयोगक रिपोर्टके मानी त’ वर्ष 2030 धरि देशक 40 प्रतिशत आबादी जल संकटक चपेटमे रहत। पानिक गुणवत्ताक बात करी त’ दुनिया भरिक 122 देशक आंकड़ामे हम सभ 120 म क्रमांक पर छी, ……. अर्थात सबसँ निचा। अनेको शोधसँ ज्ञात होइत अछि कि, बिहारक 20 जिलामे पानि, पिबय योग्य नहि अछि। मतलब साफ अछि कि, लोक घटिया पानि पीबि रहल अछि, जाहिसँ कैंसर आदि रोगमें वृद्धि देखा जा रहल अछि । मनुष्य सेहो प्रकृतिक अंग अछि, प्रकृति आ मानव एक दोसरक पूरक अछि। प्रकृति बिनु मानव जीवनक कल्पना नहि कएल जा सकैत अछि। प्रकृतिक सबसँ पैघ विशेषता ई अछि कि, प्रकृति किनको संग कोनो भेदभाव अथवा पक्षपात नहि करैत अछि। जहन प्रकृति किनको संग कोनो तरहक भेदभाव नहि करैत अछि त’ प्रकृति संरक्षणमे सेहो कोनो तरहक आलस नहि होयबाक चाही। प्राकृतिक संपदा त’ सीमित मात्रामे उपलब्ध अछि, जौं एकर संरक्षण हमरा सभ नहि क’ सकब त’ एकर उपयोगक अधिकार सेहो नहि अछि। मिथिला क्षेत्रमे त’ पग पग पोखरि पान – मखान आदि, बात प्रचलित छल। हर गाममे 8 सँ 10 अथवा एना कहल जाइत छल कि, हर प्रखण्डमे सौ सँ डेढ़ सौ पोखरि छल, जे आब धीरे – धीरे घटल जा रहल अछि । मात्र दरभंगामे दर्जनों नदीक धारा बहराइत छल, जे आब विलुप्त भेल अछि। पोखरि भरि, अथवा ओहि पोखरिक अतिक्रमण क’ ओकरा आवासीय अथवा व्यावसायिक उपयोगमे आनब भूमिगत जल संरक्षणके मामिलामे अत्यंत खतरनाक डेग अछि। भूमिगत जल स्तर लगातार निचा जा रहल अछि, चैत – बैशाख अबिते क’ल, पोखरि आ नदीक सुखाएब, कोनो पैघ संकटक संकेत अछि। भूमिगत जल स्तरमे लगातार गिरावट, अत्यंत गंभीर विषय अछि। भूमिगत जल जे हमरा सभ दोहन क’ रहल छी, ओ त’ सिमित मात्रामे अछि, आ जल संरक्षणक अभावमे ओ घटैत – घटैत एक दिन समाप्त भ’ जाएत, तहन की ? गाम – गाममे वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाओल जा रहल अछि, आ ओहो भूमिगते जल पर निर्भर अछि त’ भविष्यक चिंता करब स्वाभाविक अछि। हमर सभक पूर्वज नदी देखलनि, हमरा सभ पोखरि आ इनार देखि संतोष कएलौंह मुदा आबयवला पीढ़ी की देखत ? शहरमे अधिक जनसँख्या आ सिमित संसाधन अछि त’ ओहि ठाम पोखरिक विलुप्ति बुझि सकैत छी, मुदा गाम सेहो कहाँ पाछू अछि ! ओहु ठाम पोखरि भरा क’ आवासीय आ व्यावसायिक निर्माण शुरू अछि। कंक्रीट, ढलाई, प्लास्टर, टाइल्स आ मार्बलसँ पाटल गामक दशा त’ शहरोसँ बदत्तर भेल जा रहल अछि । बारी उपैट गेल, आब गाछी बिरछी उपैट रहल अछि हर ठाम निर्माण कार्य जोर पर अछि, मुदा एहि सब विकास कार्यक संग, प्रकृति कहीं पाछू छुटि गेल। जल आ हरियालीक महत्व सभकेँ बुझहे पड़त, जौं नहि बुझब त’ सम्पूर्ण मानव जाति लेल ई खतरनाक सिद्ध होयत, ई तय अछि। परंपरा, संस्कृति आ अप्पन पौराणिक महत्वके संरक्षित करब आवश्यक त’ अछि, मुदा पर्यावरणक संरक्षण सेहो आवश्यक अछि। प्रकृति आ पर्यावरण संरक्षण लेल जे सीख, छठि पूजाक माध्यमे देल जाइत अछि, वएह सीख जौं हर पाबनि तिहारक माध्यमे देल जाए अथवा छठि महापर्वके, राष्ट्रीय पर्व घोषित कएल जाए त’ सकारात्मक परिणाम सोझा आबि सकैत अछि। छठि महापर्वक महत्ता आ उद्देश्य के ध्यानमे रखैत, भारतहि नहि अपितु सम्पूर्ण संसारमे सामूहिक रूपसँ मनाओल जएबाक चाही। छठि महापर्व, सामाजिक भाईचारा कायम करबाक लेल आवश्यक अछि, त’ लोककेँ प्रकृतिक संग जोड़बाक माध्यम सेहो अछि। त’ छठि महापर्वके जौं राष्ट्रीय आ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाओल जाएत त’ पूर्ण विश्वास अछि जे, संसारक आधा समस्या स्वतः समाप्त भ’ जाएत।

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