विधि-व्यवस्था

पटना उच्च न्यायालयक निर्णयक विरुद्ध बिहार सरकार पहुँचल सुप्रीम कोर्ट, चाही आरक्षण ६५%

नई दिल्ली
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जाति आधारित सर्वेक्षण करेलाक बाद नीतीश सरकार पछिला साल आरक्षण ५० प्रतिशतसँ बढ़ा कए ६५ प्रतिशत कए देने छल। केंद्र सरकार द्वारा ईडब्ल्यूएस लेल १० प्रतिशत आरक्षण निर्धारित कयल गेल अछि। आब राज्यमे कुल ७५ प्रतिशत आरक्षण छल। एकर बाद पटना उच्च न्यायालय बिहार सरकारक निर्णय पर रोक लगा देने छल।
बिहार सरकार पटना उच्च न्यायालयक फैसलाकेँ चुनौती दैत सर्वोच्च न्यायालयमे याचिका दायर कयलक अछि।

बिहार सरकार पछिला साल नवंबरमे जाति आधारित सर्वेक्षण रिपोर्टक बाद सरकारी नौकरी आ शैक्षणिक संस्थानमे वंचित वर्गक लेल आरक्षण कोटा बढ़ा देने छल। मुदा बादमे पटना उच्च न्यायालय एकरा रद्द कऽ देलक। एहिमे सार्वजनिक रोजगार आ शैक्षणिक संस्थानमे प्रवेशमे पिछड़ा आ अति पिछड़ा वर्ग (एससी/एसटी) लेल आरक्षण ५० प्रतिशतसँ बढ़ाकऽ ६५ प्रतिशत कऽ देल गेल छल।

आब बिहार सरकारक वकील मनीष सिंहक माध्यमसँ सर्वोच्च न्यायालयमे याचिका दायर कयल गेल अछि। राज्य सरकार एहिमे उच्च न्यायालयक फैसला पर अंतरिम रोक लगाबय केर मांग कयलक अछि आ कहलक अछि जे यदि अंतरिम राहत नहिं भेटल तऽ राज्यमे पैघ संख्यामे भर्ती प्रक्रिया चलि रहल अछि, जाहिमेसँ किछु अग्रिम चरणमे अछि। ई चयन प्रक्रियाकेँ प्रभावित करत। याचिकामे कहल गेल अछि जे उच्च न्यायालयक ई निष्कर्ष सत्य नहिं अछि जे जाति सर्वेक्षणक आंकड़ाक आधार पर पिछड़ा वर्गक पर्याप्त प्रतिनिधित्व अछि। ई राज्यक विवेकक हनन अछि।

मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन आ न्यायमूर्ति हरीश कुमारक पीठ २० जूनकेँ फैसला देलक जे बिहारमे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आ अन्य पिछड़ा वर्गक लेल पद आ सेवामे रिक्त पदक आरक्षण आ बिहार शैक्षणिक संस्थानमे प्रवेशमे संविधानक दायरासँ बाहर अछि। एकर बाद पटना उच्च न्यायालय बिहार सरकारक एहि फैसलाकेँ रद्द कऽ देलक। संगहि कोर्ट कहलक जे जँ आरक्षणक सीमा बढ़ाबय केर जरूरत अछि तऽ एकर फैसला संवैधानिक पीठ करत।

बिहार सरकार पछिला साल नवंबरमे जाति आधारित सर्वेक्षण रिपोर्टक बाद सरकारी नौकरी आ शैक्षणिक संस्थानमे वंचित वर्गक लेल आरक्षण कोटा बढ़ा देने छल। एकर बाद पटना उच्च न्यायालय पछिला मास २० जूनकेँ बिहार सरकारक आदेशकेँ उचित नहिं मानैत रद्द कऽ देलक।

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