सुप्रीम कोर्ट काल्हि सोमदिन एकटा अहम फैसलामे श्रीलंकाई तमिल नागरिक केर शरण याचिका खारिज कय देलक। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता आ न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन केर पीठ स्पष्ट शब्दमे कहलनि, भारत कोनो धर्मशाला नहि अछि जतऽ दुनियाभरिसँ आएल लोककेँ शरण देल जायत। हम पहिनेसँ 140 करोड़क आबादीसँ संघर्ष कय रहल छी, हर जगहसँ आएल शरणार्थी सभकेँ शरण देब संभव नहि अछि।
जनतब, याचिकाकर्ताकेँ 2015मे तमिलनाडु पुलिसक क्यू ब्रांच (क्यू ब्रांच सीआईडी केर एक हिस्सा अछि) द्वारा दु लोककेँ गिरफ्तार कएल गेल छल। आरोप छल कि ओ प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लिट्टेसँ जुड़ल अछि। 2018मे निचला अदालत ओकरा गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम अर्थात् गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम 1967 केर तहत 10 वर्षक सजा सुनेने छल। 2022मे मद्रास हाईकोर्ट द्वारा ओकर सजा घटा कऽ 7 वर्ष कऽ देल गेल आ आदेश देल गेल कि सजा पूरा भेला बाद ओकरा भारत छोड़य पड़त। संगहि, निर्वासन तक ओकरा शरणार्थी शिविरमे राखल जायत।
याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्टमे दलील देलक कि ओ वीजा पर भारत आयल छल आ श्रीलंकामे ओकर जिनगीकेँ खतरा अछि। ओकर कहब छल कि ओ 2009 मे श्रीलंकाई गृहयुद्धक दौरान लिट्टेक सदस्य रहल छल आ ओहि देशक सरकार ओकरा ‘ब्लैक-गजटेड’ अर्थात् वांछित घोषित कएने अछि। याचिकामे कहल गेल अछि कि जँ ओकरा वापस भेजल गेल तँ ओकरा गिरफ्तारी, यातना आ जानसँ मारबाक खतरा अछि। संगहि, ओकर पत्नी बहुत गंभीर बिमारीसँ पीड़ित अछि आ बेटा जन्मजात हृदय रोगसँ जूझि रहल अछि, ताहि लेल भारतमे रहैत अछि।
सुप्रीम कोर्ट सब दलीलकेँ खारिज करैत कहलक जे भारतक सीमा सभक लेल नहि खोलल जा सकैत अछि। कोर्ट टिप्पणी कएलक, भारत कोनो धर्मशाला नहि अछि। हम पहिने 140 करोड़ लोकक संग संघर्ष कय रहल छी। हम हर ओ व्यक्तिकेँ शरण नहि दऽ सकैत छी जे अपन देशमे अपनाकेँ असुरक्षित बूझैत अछि।
जनतब जे एहिसँ पहिने सुप्रीम कोर्ट रोहिंग्या शरणार्थीक डिपोर्टेशनमे हस्तक्षेप करबासँ इनकार कय चुकल अछि। कोर्ट स्पष्ट कहलक जे राष्ट्रीय सुरक्षा, जनसंख्या संतुलन आ सीमित संसाधनकेँ देखैत सरकारक नीति सर्वोपरि अछि।