आइ (१०-११-२०२४) अक्षय नवमी अछि। कार्त्तिक मास अत्यंत पवित्र मास मानल गेल अछि। पुरा मास कोनो ने पावनि-तिहार, व्रत-पूजन प्रायः प्रति दिन रहैत अछि। पुरा कार्तिक मास सिमरिया आदि कल्पवासमे गंगा स्नान करय केर विधान अछि। विशेष रूपसँ दियाबातीक दू दिन पहिने यानि धन्वंतरि जयंती अर्थात धनतेरससँ जे पावनि-तिहार व्रत-पूजनोत्सव शुरू होइत अछि, से कार्त्तिक पूर्णिमा पर्यंत प्रति दिन किछु ने किछु रहैत अछि।
एहिमे छठिक बाद गोपाष्टमी आ तकर अगिला दिन होइत अछि अक्षय नवमी। अक्षय नवमी तिथि परम पवित्र अक्षय पुण्य देबयवाला तिथि अछि। एहि तिथिकेँ धात्री गाछक पूजन, धात्रीक गाछक छायामे भोजन आदिक विशेष महत्व अछि, तें ई तिथि आन प्रदेशमे आंवला नवमीक नामसँ सेहो जानल जाइत अछि।
अक्षय नवमी सतयुगक आरंभ तिथि अछि। देवी अहिल्याक जन्म सेहो एही तिथिकेँ भेल अछि। नामानुरुप एहि तिथिकेँ कयल गेल दान-पुण्य अक्षय रहैत अछि। एहि तिथिकेँ पापाचरणसँ निश्चित रुपसँ बँची। एहि दिन जरुरतमंद, विप्र, समाज आदिक प्रति कयल गेल कोनो प्रकारक सेवा, दान-पुण्य-स्नान, परोपकार अक्षय फल प्रदान करयवाला होइत अछि।
एहि तिथिकेँ धात्री गाछक पूजनसँ भगवान विष्णु एवं शिवजीक कृपा प्राप्त होइत अछि एवं मनोकामनाक पूर्ति होइत अछि। स्नान कय भक्ति भावसँ धात्री गाछक पूजन एवं गाछतर भोजन आदि सभ मिलि करम केर चाही। अक्षय नवमी तिथिकेँ पितरक निमित्त सेहो अन्न, वस्त्र, कंबल, दक्षिण आदि दान करय केर चाही, ई सभ कर्म अनंत गुणा पुण्य देबयवाला कहल गेल अछि।
धात्री माहात्म्य (पुराणमे कहल गेल) :-
“धात्रीच्छाया समाश्रित्य भुङ्क्ते योऽत्र हि मानव।
ब्राह्मणान् भोजयित्वा तु वार्षिक किल्विष हरेत्।।
धात्रीफलविलिप्ताङ्गो धात्रीफलविभूषितः।
धात्री फलकृताहारो नरो नारायणो भवेत्।।”