०१) प्राचीनतम भाषाक श्रेणीमे मैथिली
०२) उत्कृष्ट, समृद्ध आ मिठगर भाषा मैथिली
०३) अपन प्राचीनतम लिपि मिथिलाक्षरसँ समृद्ध मैथिली
०४) साहित्यक प्रचूर भंडारसँ युक्त मैथिली
०५) प्रायः ०९ करोड़ जनसमूहक भाषा मैथिली
०६) भारतमे तीसटा विशाल जिलाक भू-भागक मैथिली (संगहि प्रायः आधा नेपाल)
०७) संवैधानिक भाषा मैथिली
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आ ई मैथिली तरसि रहल अछि अपन स्थान लेल, एकरा संग सरकार अन्याय कय रहल अछि, एक तरफ सरकार समस्त स्थानीय भाषा पर बल दैत कहैत छैक जे प्राथमिक वर्गमे पढ़ौनीक माध्यम मातृभाषा हेबाक चाही, मुदा एहि लेल मैथिली अपवाद छैक, मैथिली पर ई लागू नहिं होईत छैक, कारण सरकारक दृष्टिमे एहि भाषाक ९ करोड़ जनता मृतप्राय अछि, तें एकरा बारि देल गेल छैक। प्राथमिक वर्गमे पढ़ौनीक माध्यम मैथिली होबय नहिं देल जा रहल अछि, नहिं सरकार विद्यालयमे आदेश दैत छैक आ नहिं एकरा लेल पठन सामग्री उपलब्ध कराबैत अछि। मिथिलावासीक बच्चाक मस्तिष्क केर विद्यालयमे प्रवेश करैत अपंग बना देल जाइत छैक, जबरन हिन्दी-अंग्रेजी ओकरा पर थोपि कऽ , आ ताहि कारण बच्चाक माय-बाप घरोमे बच्चासँ हिन्दी-अंग्रेजी बाजय लगैत अछि, फलतः मैथिली घरोमे छूटल जा रहल अछि आ एहि प्रकारें मैथिली भाषाकेँ मारय केर षड्यंत्र चलाओल जा रहल अछि, बल्कि बहुत हद तक सफल भऽ गेल अछि
तऽ की एकर आब कोनो उपाय नहिं, आ कि एक बेर जोर लगायब सभगोटे ? की एक बेर अपन आबयवाला पीढ़ीक खातिर हूंकार नहिं भरि सकैत छी ? की एक बेर अपन मातृभाषा बचाबय लेल हुंकार नहिं भरि सकैत छी ? की एक बेर अपन मिथिलाक गौरव, सभ्यता, संस्कार, संस्कृति बचाबय लेल हूंकार नहिं भरि सकैत छी ? जँ एक बेर स्वाभिमान केर जगाबै जाइ, एक बेर पुरुषार्थ केर जगाबय जाइ, एक बेर शक्तिक संवाहक मातृशक्ति जागि जाइथ, एकमात्र लक्ष्य जे मिथिला क्षेत्रीय समस्त तीसो जिलाक विद्यालयमे प्राथमिक वर्गमे पढ़ौनीक माध्यम मैथिली अनिवार्य रुपसँ शिघ्र लागू कयल जाय, तकर आदेश पारित कयल जाय आ ताहि लेल पठन सामग्री उपलब्ध कराओल जाय, तऽ एहि स्वतंत्र देशमे मिथिलावासीक स्वतंत्रताक प्रथम एहसास होयत आ मिथिलावासी सेहो अपन भारत देश पर गर्व करताह जे हमरो भारत अछि, एहि देशक संवैधानिक अधिकार हमरो प्राप्त अछि, हमहूं एही देशक हिस्सा छी।
यात्राक युग छैक, सांगठनिक क्षमता यात्रा निकालि दर्शाओल जाइत छैक, यद्यपि यात्राक मुख्य उद्देश्य जन-जागरण होइत अछि, आ जन-जागरणक नितान्त खगता अछि अपनो सभकेँ , तऽ निकलै जाउ ने एक बेर सड़क पर, निकलू ने एक बेर गाम-घर, शहर-नगरमे मैथिली लेल।
निकलै जाइ जायब तऽ बजै जाउ, तखनि पुनः आगूक विचार-विमर्श हेतै, दिन केर ११ बजेसँ दू बजे तक हम कतौह आबि सकैत छी, सभ गोटे ठाम-ठाम बैसार कय एकटा योजनाक प्रारुप बनाउ आ निकलू केम्हरो, हथ-पर हाथ धय बैसलासँ किछु नहिं होयत, संचार माध्यमक उपयोग करु, दुरुपयोग नहिं, मोबाइलक वशसँ निकलै जाइ जाउ कनी। मंचसँ उतरय जाइ जाउ कनी, किछु वास्तविक करै जाउ….