धर्म-संस्कृति

प्रायः ३८ साल पर लागि रहल दुर्लभ हरिवासर व्रतक योग, एना अछि व्रत

अजय नाथ झा शास्त्री
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व्रत सभमे प्रायः अत्यधिक कठिन व्रत होइत अछि हरिवासर व्रत। दू दिन दू राति निर्जला व्रत आ व्रत शुरु करय केर एक दिन पुर्व एकभूक्त अर्थात ६० घंटाक प्रायः ई व्रत होइत अछि। मुदा एहि व्रतक योग सेहो दुर्लभ होइत छैक। अपवाद छोड़ि साधारण दूसँ तीन टा हरिवासर व्रतक योग जीवनभरिमे प्रायः लोककेँ पकड़ाइत छैक। जानकारीक अनुसार एहि व्रतक प्रचलन मुख्य रुपसँ मिथिलेमे अछि, कारण आन क्षेत्रक अधिकतर लोक एतेक कठिन व्रत करय केर प्रायः साहस नहिं जुटा पाबैत छथि, तथापि संभव अछि बहुत आनो क्षेत्रक लोक करैत होथि। भारत भूमि तपस्याक भूमि अछि।

तऽ ई हरिवासर व्रतक योग प्राप्त जानकारी केर अनुसार एहि बेर देवोत्थान एकादशी पर लगभग ३८ साल पर लागि रहल अछि।

कार्त्तिक मासक देवोत्थान एकादशी व्रत एहि बेर १२ नवम्बर २०२४ ईस्वी मंगलकेँ अछि आ एही व्रतक अगिला दिन अर्थात द्वादशीकेँ हरिवासर योग लगैत छैक, अर्थात एकादशी-द्वादशी लगातार दू दिन दू राति निर्जला व्रत रहत आ १३ नवम्बर बृहस्पतिकेँ सूर्योदय उपरांत पारण हेतैक।

अर्थात एहि प्रकारसँ व्रत होएत -:
११-११-२०२४, सोम : एकभूक्त
१२-११-२०२४, मंगल : देवोत्थान एकादशी निर्जला व्रत
१३-११-२०२४, बुध : हरिवासर निर्जला व्रत
१४-११-२०२४, बृहस्पति : सूर्योदय उपरांत पारण।

बहुत साल बाद इ हरिवासर व्रतक योग आयल अछि, यद्यपि बहुत कठिन ई व्रत होइत छैक, मुदा तहिना ई अक्षय पुण्य देबयवाला ई व्रत होइत अछि। मिथिलामे कहबी सूनयमे अबैत अछि जे जीवनमे तीन टा हरिवासर व्रत करय केर चाही, सभ पाप-ताप, संकटसँ मूक्त भऽ परमानन्द ओ मोक्षक प्राप्ति होइत छैक।

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