पर्यावरण

आब दुनियाकेँ हर सीमासँ ऊपर उठि एकसंग करय पड़त पर्यावरणक रक्षा, अन्यथा भऽ जाएब नष्ट : प्रो. विद्यानाथ झा

दरभंगा समदिया
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वर्ल्ड नेचुरल डेमोक्रेसी (डब्ल्यूएनडी) केर तत्वावधानमे
पर्यावरण नागरिकता विषय पर आभासी व्याख्यान सत्रक आयोजनक सङ्ग पर्यावरण नागरिकता उत्सव २०२४ सफलतापूर्वक संपन्न भेल। लेखक आ पृथ्वी अधिकार कार्यकर्ता डॉ. जावेद अब्दुल्लाह मालवीय सेंटर फॉर पीस रिसर्चक विभागाध्यक्ष आ काशी हिन्दू विश्वविद्यालयक प्रोफेसर मनोज कुमार मिश्रक अध्यक्षतामे बतौर वक्ता ‘एनवायरमेंटल सिटीजनशिप’ (पर्यावरण नागरिकता) पर अपन व्याख्यान प्रस्तुत कयलनि। अध्यक्ष डॉ. अब्दुल्लाह एहि विषय पर प्रकाश दैत कहलनि जे जलवायु आ पर्यावरणक अन्तरकेँ बुझबामे हमसभ गलती करैत छी। जलवायु कोनो क्षेत्रमे दीर्घकालिक मौसमक स्वरूप छैक, जकर औसत सामान्यतः ३० सालमे होइत छैक। जखन कि पर्यावरण पृथ्वी ग्रहक भौतिक परिवेश अछि। पर्यावरण पर दीर्घकालिक दूषित प्रभावसँ जलवायुमे परिवर्तन होइत छैक। ओतहि जीवित जीव आ भौतिक पर्यावरणक सम्बन्ध पारिस्थितिकी कहल जाइत अछि, जेना मनुष्य, गाछ-वृक्ष आ जानवर। एहि विषयकेँ आगू बढ़बैत डॉ. अब्दुल्लाह कहलनि जे ब्रिटेनमे जन्मल राजनीतिक सिद्धांतकार एंड्रयू डॉब्सन पहिल बेर २०१२मे संयुक्त राष्ट्र रियो+२० सम्मेलनक दौरान ‘इकोलाॅजिकल सिटीजनशिप’ अर्थात ‘पारिस्थितिक नागरिकता’क बात कयलनि। ओहिसँ पहिने, ई टर्म हुनक पुस्तक ‘सिटीजनशिप एण्ड दी एनवायरमेंट’ (२००४), ‘ग्रीन पाॅलिटकल थाॅट’ आ अन्य लेखनमे भेटैत अछि। एहीठामसँ पर्यावरणीय नागरिकता शब्द अकादमीक विमर्शक हिस्सा बनय लागल। प्रो. डॉब्सन ‘डीप ग्रीन’क सेहो अवधारणा गढ़लनि, जे गैर-मानव दुनियाक चरम रुपसँ फिक्र करैत अछि। अर्थात्, एकटा व्यक्ति, वा विशेष रूपसँ एकटा राजनेता, जे पर्यावरणवादी मुद्दासँ निपटबाक लेल चरम उपाय तकबाक पक्षमे अछि। ओतहि ‘लाइट ग्रीन’क अवधारणा मात्र एकटा मानव-केन्द्रित पारिस्थितिकीय अवधारणा अछि। विश्वमे इकोलॉजीक जनक अर्नस्ट हेकेल, डीप इकोलॉजीक जनक, अर्ने नाएस आ पर्यावरणीय आन्दोलनक जनक रिचेल कार्सन छलाह। १९६२ मे आयल हुनक पुस्तक ‘साइलेंट स्प्रिंग’क विषयमे मानल जाइत अछि जे पर्यावरण आधारित आन्दोलनक युग एहि पोथीक प्रकाशनक बादे प्रारम्भ भेल छल।

जलवायु परिवर्तन पर डॉ. अब्दुल्ला कहलनि जे दुनियाक पहिल पर्यावरणविद् जर्मनीक अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट लगभग २०० साल पहिने अपन पुस्तक ‘कॉसमॉस’मे जलवायु परिवर्तनक संकटकेँ रेखांकित कयने छलाह। अपन व्याख्यानक अन्तमे डॉ. अब्दुल्लाह कहलनि जे भारतीय पारिस्थितिकीक जनक प्रो. रामदेव मिश्र १९३७ मे लीड्स विश्वविद्यालय, यूकेसँ पारिस्थितिकीमे पीएचडी कयलनि आ सागर आ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयमे प्रोफेसर बनलाह। वनस्पति वैज्ञानिक आ एमएलएसएम कॉलेजक पूर्व प्रधानाचार्य प्रो. विद्यानाथ झा अपन वक्तव्यमे कहलनि जे पर्यावरणक कोनो सीमा नहिं अछि। आब दुनियाकेँ सेहो हर सीमासँ ऊपर उठय पड़त आ मिलि कऽ पर्यावरणक देखभाल करय पड़त आ ओकर रक्षा करय पड़त। अन्यथा, हम सब एक संग नष्ट भए जाएब। डब्ल्यूएनडी ५ जूनसँ २२ जून धरि दुनियाक पहिल १८ दिवसीय पर्यावरण नागरिकता महोत्सवक आयोजन कयलक आ एहिमे कतेको कार्यक्रम आयोजित कयलक। एहि अवसर पर विभिन्न स्थानसँ डॉ. अमर जी कुमार, अमन कुमार, मोहम्मद आसिफ, ओमकार लब्ध आदि विद्वान लोकनि श्रोतालोकनिक संग शामिल भेलाह। आभासी व्याख्यान सत्रक सफल संचालन एलपीयू केर आदित्य राज कयलनि।

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