शिक्षा

महेन्द्र मलंगियाकेँ ‘प्रबन्ध संग्रह’क लेल भेटल मैथिली भाषाक साहित्य अकादमी पुरस्कार

नई दिल्ली
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महेन्द्र मलंगियाकेँ साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित कयल गेल अछि। महेन्द्रकेँ भारतक पड़ोसी देश नेपालक लगभग सभ उत्कृष्ट सम्मानसँ सेहो सम्मानित कयल गेल अछि।
महेन्द्र मलंगियाकेँ साहित्य अकादमी पुरस्कार २०२४ सँ सम्मानित कयल गेल अछि। महेन्द्र मलंगिया भारत आ नेपालक सबसँ सम्मानित नाटक लेखक आ रङ्गमञ्च निर्देशकमेसँ एक छथि। ओ पछिला चारि दशकसँ नाटक लिखि आ निर्देशन कऽ रहल छथि। मलंगिया द्वारा मैथिली भाषामे लिखल पोथी ‘प्रबन्ध संग्रह’ केँ साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित कयल गेल अछि

महेन्द्र मलंगियाक परिचय :
महेन्द्र मलंगिया मधुबनी जिलाक मलंगिया गामक निवासी छथि। पहिने हुनकर नाम महेन्द्र झा छल मुदा बादमे ओ अपन नाम बदलि महेन्द्र मलंगिया राखि लेलनि। मलंगिया बभनगामा गाममे शिक्षकक पद पर रहि चुकल छथि। ओ भूगोल पढ़ाबैत छलाह। मलंगिया एखन धरि १३टा नाटक लिखि चुकल छथि। ओ कतेको रेडियो नाटक सेहो लिखलनि। महेन्द्र मलंगिया मिथिला नाट्य कला परिषद (एमआईएनएपी ) खोललनि, जकरा नाटकक प्रयोगशाला कहल जाइत अछि।

महेन्द्र मलंगिया मात्र भारतेमे नहि अपितु नेपालमे सेहो कतेको सम्मान प्राप्त कयने छथि। पड़ोसी देश नेपालक लगभग सभ उत्कृष्ट सम्मानसँ हुनका सम्मानित कयल गेल अछि। हुनक शिष्य आइ भारतक कोन-कोनमे छथि। हुनका संस्कृति मंत्रालयसँ फेलोशिप भेटल अछि। सेवानिवृत्तिक बाद मलंगिया अपन गाम आबि गेलाह।

महेन्द्र मलंगिया ‘ओकरा अंगनक बारहमासा, जुआइल कनकनी, गाम ने सुताय, कतका लोक, कमला कातक राम, लक्ष्मण और सीता, लक्ष्मण रेखा खण्डित, एक कमल नोरमे, पूसक जाड़ की माघक जाड़, खिचड़ी, छुटहा पात सन नाटक लिखलनि।

‘प्रबंध संग्रह’मे ४२ सालक शोध अछि।
प्रबंधन संग्रहमे कुल उन्नीस टा लेख अछि। पुस्तकक आरम्भ निबन्ध आ शोध-प्रबंध संग्रहक सन्दर्भसँ होइत अछि, जे निबन्ध आ शोधकेँ नीक तरीकासँ व्याख्या करैत अछि। प्रायः एहि शब्दसभक पहिल नजरिमे एके अर्थ बुझाइत अछि, मुदा एकरा पढ़लाक बादे अहाँकेँ एहसास होइत अछि जे ई कतेक भिन्न अछि। ओ सभ लेखक पृष्ठभूमि, पहिने प्रकाशित सभटा लेखक अन्तर-कथा पीड़ा, कतेको लेखक एकरसताक कारण आदि विवरण दऽ कऽ अपन शोधमे अपन साहस आ आत्मविश्वास देखौलनि अछि।एहि संग्रहमे प्रकाशित लेख सभक श्रृंखला बहुत पैघ अछि – पहिल लेख १९७२ ई.मे प्रकाशित भेल छल। एहि लेल, एहि ‘प्रबंध संग्रह’केँ कुल ४२ वर्षक शोध कहल जा सकैछ।

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