केन्द्र सरकार जेलमे जातिगत भेदभावकेँ समाप्त करबाक लेल एकटा महत्वपूर्ण निर्णय लेलक अछि। केन्द्र सरकार सभ राज्य आ केंद्र शासित प्रदेशकेँ नव परिवर्तनसभ पर ध्यान देबाक आ सभटा निर्देश केर कड़ाईसँ पालन करबाक आदेश देलक अछि।
वास्तवमे जेलमे जातिवादक जहर पर किछु मास पहिने उच्चतम न्यायालयमे विस्तृत सुनवाई भेल छल। तखनि अदालतक फैसलाक आलोकमे गृह मंत्रालय (एमएचए) २०१६ आ २०२३क जेल नियमावली आ जेल सुधार सेवा अधिनियममे संशोधन कयलक। एकर माध्यमसँ हैबिचुअल ओफेंडर – आदतन अपराधीक विद्यमान परिभाषाकेँ बदलि देल गेल अछि। सरकार राज्य आ केंद्र शासित प्रदेशक जेलमे जाति आधारित भेदभाव दूर करबाक प्रयास कऽ रहल अछि।
केन्द्र सरकार सभ राज्य आ केंद्र शासित प्रदेशकेँ नव परिवर्तनसभ पर ध्यान देबाक आ सभटा निर्देश केर कड़ाईसँ पालन करबाक आदेश देलक अछि। सरकारक ई डेग सुप्रीम कोर्टमे दायर रिट याचिका पर निर्णयक बाद लेल गेल अछि। एहि मामिलाक सुनवाई सर्वोच्च न्यायालयमे ‘सुकन्या शान्ता बनाम भारत सरकार आ अन्य’क नामसँ सुनल गेल छल। एहि ऐतिहासिक फैसलामे सर्वोच्च न्यायालय ३ अक्टूबर २०२४ केँ केन्द्र सरकारकेँ किछु दिशानिर्देश देलक।
पत्रकार सुकन्या शान्ता कानून आ सामाजिक मुद्दा पर रिपोर्टिंग लेल जानल जाइत छथि। ओ भारतक जेल आ ओतय रहयवला कैदीसभक विषयमे व्यापक रूपसँ रिपोर्ट कयलनि अछि। सुकन्या सर्वोच्च न्यायालयमे याचिका दायर कयने छलीह आ जेलमे जातिगत भेदभावक पूरा विवरण देने छलीह। ओ वर्णन कयने छलीह जे कोना विमुक्त जनजाति, अर्थात ओहेन समुदाय वा लोक जे कहियो जन्मजात अपराधी मानल जाइत छल, एखनो जेलमे जातिगत यातनाक सामना कऽ रहल अछि।
सुप्रीम कोर्ट ३ अक्टूबरकेँ अपन फैसला देलक। न्यायालय एहि संबंधमे केन्द्र आ ११ राज्य सरकारकेँ नोटिस जारी कयने छल। बादमे अदालत ओहि नियम आ प्रावधानकेँ रद्द कऽ देलक जे जातिगत भेदभावकेँ बढ़ावा दैत छल। तीन न्यायाधीशक पीठ तखनि कहने छल जे जातिक आधार पर भारतक जेलमे होबयवाला भेदभावकेँ जल्दीसँ जल्दी समाप्त करबाक चाही। आब भारत सरकार ओही दिशा दिसि ई डेग बढ़ौलक अछि।