मनुष्यक स्वभाव देवतुल्य होइत अछि। जमानाक प्रपंच आ परिस्थितिक वशीभूत भऽ के अपन देवत्व कें समाप्त कऽ दैत अछि ।साहित्य एहि देवत्व केंअपन स्थान पर प्रतिष्ठित करबाक चेष्टा करैत अछि। उपदेश सं नहि भाव कें स्पंदित
कऽ करें मोनक कोमल तार पर चोट लगाकए प्रकृति सं सामंजस्य उत्पन्न कऽ कें।हमर सभ्यता साहित्य पर आधारित अति।हम जे किछु छी ओ साहित्यक द्वारा छी। विश्व आत्माक अंतर्गत राष्ट्रक आत्मा होइत अछि।नहि आत्मा के प्रतिनिधि छी साहित्य आओर एहि साहित्यक धड़कन छी – राजकमल! जे सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था मे व्याप्त तमस केंअपन ज्ञान- रश्मिक आभा सं दूरकरबाक प्रयास केलैन। हनक रचना मानवीय मूल्यक स्वीकारक उद्घोष थिंक, संगहि-संग नग्न यथार्थक चिंतन सेहो
कहानी के मूल आधार थिक।
संक्रांति के समय मानव -समाज, मूल्यविघटन आओर मूल्य जड़ताक स्थिति मे होइत अछि।राजकमल एहेन व्यक्ति भेलाह जे जीवन विरोधी नहि भऽ कें जीवनक
प्रति स्वीकारक भाव स्वीकार केलैन।ओ कठिनाई के बावजूद समाज के बीच मे ठाढ़ रहलाह संगहि-संग अपन विशिष्ट लेखनीक माध्यम सं ज़िनगी कें उठाबैक कोशिश करैत रहलाह।रोटी, राजनीति संगहि-संग स्त्री- विमर्श पर मुखर रुप संअपन विचार व्यक्त करैत रहलाह।भरिसक एतेक कम उम्र ( लगभग अड़तीस बर्ष) मे कोनो साहित्यकारक एतेक काज नहि केने हेता । लोकसभ हुनका तंग रेखा मे बान्हैक कोशिश केलकैन्ह
लेकिन ओ कम उम्र मे पूरा जिनगी जी कें राष्ट्रीय फलक पर अपन अमिट
छाप छोड़ि गेलाह।
राजकमल अस्तित्ववादी छलाह। स्वतंत्र चिंतन के अनुगामी छलाह। अस्तित्ववादी तर्क के बदला मानव जीवनक अनुभव के आधार पर विश्व सत्ता कें जानबाक प्रयास करैत छथि।ओ केवल श्वानुभूतिमूलक ज्ञान कें ही सिर्फ ज्ञान मानैत अछि।निर्गमन आओर तर्कक ज्ञान कें ज्ञानक उदाहरण नहि मानैत छथि,ओकरा ओ केवल साधन मानैत छथि जे हमरा श्वानुभूति तक पहुंचावैत अति। श्वानुभूतिक आधार मानव अनुभव थिक। अनुभव शुद्ध अर्थात पूर्वाग्रह सं मुक्त होबाक चाहि।
राजकमल मध्यवर्गक समस्या एवं कुंठा सं बेस परिचित छलाह।हुनक मान्यता छल जे सभ समस्याक जैरि थिक अर्थ! अर्थ सं ही स्वतंत्रा आबैत अछि! अर्थ सं ही नैतिकता आबैत अछि नहिं की सिर्फ दर्शन सं! मध्य वर्ग में पीढ़ी दर पीढ़ीक संस्कार आओर कुंठा कें सिर्फ धनराशि ही तोरि सकैत अछि।ओ संयुक्त परिवार क पोषक छलाह। हुनक बेबी समय कठिनाई में बीतल। आजाद ख्याल आओर घुमंतू स्वभावक कारमेन बहुत जगहक यात्रा केलैन।बेबी समय
ओ मसूरी आ कलकत्ता मे बितेलैन।
एहि क्रम मे ओ अपन कलम कें नव धार लेलखिन्ह । हुनक मान्यता छल जे समर्पण मनुष्य के साहस आओर शक्ति दैत अछि।हीनता के कारण मनुष्य निरीहिता आओर परिताप मे अपन जीवन व्यतीत कऽ दैत छथि। मनुष्य स्वभाव सं निरीह होइत अछि मनुष्य प्रकृति सं डरैत
अछि। प्रतिवेशी आओर प्रतिद्वंद्वी सं डरैत अति! ज्ञात सं अज्ञात सं , दृश्य सं अदृश्य सं से हो करैत अछि । सिर्फ समर्पण ही शक्तिवान बनवैत अछि किएक तें समर्पण एक शक्तिसंपन्न जीवन थिक।
ज़िन्दगी सदिखन सुविधा जनक नहि होइत अछि। सभ समस्याक समाधान एक संग नहि भऽ सकैत अछि । निराशा मनुष्यक आवरण थिक जखन कि आशा आत्मीय आविर्भाव! ज़िनगी छोटे नहि होइत अछि ,हम सभ जिनाए देर सं शुरू करैत छी। उच्च वर्ग -निन्न वर्गक वैयक्तिक, आत्मिक, पारिवारिक, सामाजिक, अस्मिताक भिन्न -भिन्न पहलु हुनक आत्म स्थापन आओर जीवन संघर्षक आंतरिक समस्याक पीड़ा , विद्रुप आदिक गांठ हुनक कहानी आओर उपन्यास सं खुलैत अति। समकालीन जीवन के विकृति के अनावृत रुप राजकमलक कहानी सभ जेना- जलते हुए मकान, जीभ पर बूटों के निशान, भूगोल का प्राकृतिक ज्ञान ,कांच की दीवार पिरामिड, एक चंपा एक विषधर,ललका पाग, आंदोलन , मछली मरी हुई, अग्नि स्नान, तास के पत्तों का शहर ,शहर था शहर नहीं था,नदी बहती थी,सांझक गाछ आदि सभ कहानी सामाजिक विकृति कें चित्रित करैत अछि।
राजकमल मैथिली आओर हिंदी के समर्थ साहित्यकार छलाह। पैनी निगाह, प्रतिभा, हुनक रचना कौ्ल, सूक्ष्म जीवन दृष्टि हुनक रचनाक उपस्कर छलैन्हि। ओ अपन दौर के लेखक सं आंगाक बात करैत छलाह।
राजकमलक साहित्य के आलोचना सेहो होइत रहल छल।हमरा विचार सं आलोचनाक लेल विश्लेषण आओर संश्लेषण दुनूक भेनाए आवश्यक अछि। विश्लेषण सूक्ष्म बौद्धिकताक काज थिक जखन
की संश्लेषणक पाछु अंतर्ज्ञान या अंतर्बोध होइत अछि।
आलोचना निष्पक्ष होबाक चाही ,ओहि लेल बौद्धिकताक जरुरत होइत अछि।जे लेखक आओर आलोचक हुनक आलोचना करैत रहैत ओ सभ लेखक ,पाठक लोकैन राजकमलजीक रचनाक गंभीरता कें मुक्त कंठ सं स्वीकार करबाक संगहि-संग प्रशंसा कऽ रहल छथि।हुनक रचना आए राज्य विश्वविद्यालय सं लऽ कें केंद्रीय विश्वविद्यालयक पाठ्यक्रम में शामिल अछि । संघ लोकसेवा आयोग के पाठ्यक्रम मे सेहो हिनकर रचना शामिल अति। राजकमल सनक विद्वान पर आए संपूर्ण मिथिलावासी कें गौरवान्वित होबाक चाही।
अंत में संपूर्ण ग्रामवासी ( महिषी) के दिन सं विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करैत
राजकमल क बारे में एतबेक कहबाक
अछि—
“के कहैत अछि जे मौत आएत तें मरिजायब!
हम तें दरिया छि समुद्र में उतरि जाएं!
ज़िन्दगी शम्मा के मानिंद जराबय छि!
बुझि तें जायब मगर साहित्य जगत के लेल इजोत करि जायस” ।
एहि प्रकार सं अपन कालजयी रचनाक माध्यम सं नव पीढ़ीक लेल प्रेरणा के श्रोत बनि साहित्याकाशक ध्रुवतारा बनि कें अमर भऽ गेला।