जनसरोकार हद करै छी मुदा यार ? October 19, 2024 Maithil Punarjagran Prakash अजय नाथ झा शास्त्री * हद करै छी मुदा यार टांगकेँ काटि कहै छी रेंगि रहल अखबार ? पड़ल छल अकाल तऽ कयलक ई फुहार बिया बाग करबै नै तऽ भेटत कोना अनाज हद करै छी मुदा यार, टाँग काटि कहै छी रेंगि रहल अखबार मोल देलासँ मोल बढ़ैत छै मुदा पड़ल आदति खैरातकेँ कनिके मोलमे मूलकेँ छोड़लौंह मंगनी चाही देखाबी औकातकेँ हद करै छी मुदा यार, टाँग काटि कहै छी रेंगि रहल अखबार। सट्ठा नहिं तखनि राह देखेलक अनुभव पाबि जे बजाबय ढ़ोल तकरा संगे नाची बिनु लाजक आगूक जनमल लगाबय गोर। हद करै छी मुदा यार, टाँग काटि कहय छी रेंगि रहल अखबार। अपन कर्तव्य नहिं देखैत छी मुदा बाजी मुँहसँ बड़का बात मरल स्वाभिमान परान्न खाय अपने भाषाक करी उपहास। हद करै छी मुदा यार, टाँग काटि कहै छी रेंगि रहल अखबार। निज मत्सर-डाहसँ पार ने पाबी आ दोष लगाबी अनका पर माँटिक मर्यादाक भान रहैत तऽ लैतहुँ एकरा अपना पर हद करै छी मुदा यार, टाँग काटि कहै छी रेंगि रहल अखबार। जहिना-तहिना शुरू तऽ भेल छै सट्ठा अछि तऽ बढ़ाउ ने एकरा निज रक्तसँ कहिया धरि पटतै तीन साल आब कहै छी ककरा हद करै छी मुदा यार, टाँग काटि कहै छी रेंगि रहल अखबार। Spread the love